भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के संकेत मिल रहे हैं। महंगाई दर में कमी हो रही है। खुदरा मूल्य सूचकांक सितंबर महीने में 4.35 प्रतिशत रहा जबकि यह अगस्त में 5.30 प्रतिशत था।
इसकी मुख्य वजह खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट है। सब्जी, फल, मछली-मांस व अंडों की कीमतों में काफी कमी इस महीने दर्ज की गई।
सितंबर 2021 की महंगाई को सितंबर 2020 की महंगाई से तुलना करने पर ज़्यादा बड़ा फर्क दिखता है।
सितंबर 2020 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 7.27 प्रतिशत पर था।
उस महीने खाद्य वस्तुओं का सूचकांक दहाई अंक पार कर 10.68 प्रतिशत पर अंक पर पहुँच गया था।
जुलाई से लेकर यह लगातार तीसरा महीना है जब महंगाई की दर में कमी हुई है और लगातार छह प्रतिशत से नीचे रही है। जुलाई में यह 5.59 प्रतिशत, अगस्त में 5.30 प्रतिशत थी तो अब सितंबर में पाँच प्रतिशत से नीचे 4.35 प्रतिशत पर आ गई है।
कितनी हो महंगाई?
महँगाई कितनी होनी चाहिए और कितनी नहीं, यह मसला हमेशा ही विवादास्पद रहा है। कितनी मुद्रास्फीति ठीक है और कितनी ख़तरनाक है, बहुत सारे अर्थशास्त्री इसके लिए जीडीपी इन्फ्लेशन रेशियो यानी विकास दर और मुद्रास्फीति के अनुपात को एक पैमाना मानते हैं।
यह माना जाता है कि यह अनुपात एक के आस-पास रहना चाहिए। अगर यह एक से बहुत ज़्यादा हो जाए वह संकट पैदा होता है जो इस समय यूरोप में दिख रहा है। वहाँ मुद्रास्फीति इस समय शून्य के आस-पास पहुँच गई है।
अगर यह एक से बहुत नीचे पहुँच जाए तो ग़रीबों की कमर तोड़ देती है। यही दूसरी स्थिति इस समय भारत में है।
एक लंबे दौर तक भारत में यह स्थिति रही है जब विकास दर दो फ़ीसदी के आस-पास होती थी और मुद्रास्फीति दहाई अंक में। वे भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे बुरे दिन माने जाते हैं।
लेकिन उस अनुपात की तुलना अगर हम आज के अनुपात से करें तो स्थितियाँ शायद उससे भी बुरी हैं।