क्या असंतुष्ट किसानों को संतुष्ट कर पाएंगी निर्मला सीतारमण?

07:26 am Jan 29, 2021 | हरजिंदर - सत्य हिन्दी

सरकार के लिए कम से कम एक डर तो अब खत्म हो गया है। अब यह आशंका नहीं है कि 1 फ़रवरी को जब निर्मला सीतारमण वर्ष 2021-22 का बजट लोकसभा में पेश कर रही होंगी तो किसान दिल्ली में प्रदर्शन के लिए आने और संसद तक पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहे होंगे। लेकिन यह भी तय है कि सबका ध्यान इस ओर रहेगा कि इस बजट में किसानों को या कृषि क्षेत्र को क्या मिला?

पूरे देश में जिस तरह का किसान असंतोष है, वह निश्चित तौर से सरकार पर यह दबाव तो बनाएगा ही कि सरकार इस बजट में किसानों के लिए कुछ ठोस करती हुई दिखे।

सरकार के हाथ बँधे हैं!

यह बहुत आसान नहीं होगा, क्योंकि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण पैदा हुई भीषण मंदी में सरकार का राजस्व काफी घटा है। वह कितना भी दिल खोल ले लेकिन खर्च के मामले में सरकार के हाथ काफी कुछ बंधे हुए ही रहेंगे। फिर महामारी के कारण यह दबाव भी है कि सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में, खासकर स्वास्थ्य के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पहले से ज़्यादा खर्च करे।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा इस क्षेत्र में शोध पर भी खर्च बढ़ाने की माँग हो रही है। मध्यवर्ग को करों में राहत देने का दबाव भी है ताकि वह अधिक खर्च कर सके और अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सके।

फिर कईं उद्योग हैं जो तकरीबन ठप पड़े हैं, उन्हें रियायतें देने के दबाव भी हैं। 

कृषि को प्राथमिकता नहीं

ऐसे में कृषि को बहुत बड़ी प्राथमिकता देना शायद मुमकिन नहीं होगा। लेकिन किसी भी सूरत में सरकार को इस सवाल का सामना तो करना ही होगा कि किसानों के आमदनी दुगनी करने के लिए वह क्या कर रही है।

अगर हम 2020-21 के बजट को देखें तो उसमें कृषि प्रावधान पहले से काफी कम कर दिए गए थे। जो कुल प्रावधान थे उसमें से 35 फ़ीसदी हिस्सा किसान सम्मान निधि में चल गया था। इसके अलावा 34 फ़ीसदी फर्टिलाइज़र सब्सिडी थी। इन दो मदों में कटौती की बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं बाँधी जा सकती।

किसान सम्मान निधि

यह भी हो सकता है कि किसान सम्मान निधि को इस बार बढ़ाया जाए। इसकी माँग भी चल रही है कि मौजूदा छह हज़ार की सालाना धनराशि को बढ़ाकर कम से कम नौ हज़ार कर दिया जाए। देश में जो किसान असंतोष इन दिनों दिख रहा है उसमें किसान सम्मान निधि ही सरकार का सबसे बड़ा तर्क बनी हुई है।

अगर इस निधि को नहीं भी बढ़ाया जाता तो भी बाकी मदों में खर्च के लिए सरकार के पास ज्यादा धन नहीं रह पाएगा और अगर बढ़ा दिया जाता है तो अन्य मदों पर खर्च करने लायक धन और कम हो जाएगा। कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर पर होने वाला सार्वजनिक खर्च पहले ही बहुत कम हो चुका है।

किसान सम्मान निधि के और कम किए जाने की पूरी आशंका है। विशेषज्ञ यह काफी समय से कह रहे हैं कि बदलते पर्यावरण की कृषि क्षेत्र के लिए जो चुनौतियाँ हैं उनका सामाना करने के लिए इस खर्च को काफी तेज़ी से बढ़ाए जाने की ज़रूरत है।

कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर

फसलों की लागत कम करने और इससे किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए यह रास्ता उपयोगी हो सकता है। लेकिन फिलहाल कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर का मामला काफी कुछ निजी क्षेत्र के हवाले हो चुका है।

इस बीच कुछ अख़बारों में यह ख़बर भी छपी या छपवाई गई है कि सरकार कृषि क़र्ज़ के लक्ष्य को बढ़ा सकती है। पिछले बजट में यह 15 लाख करोड़ रुपये था जिसे इस बार 19 लाख करोड़ रुपये किए जाने की उम्मीद है। हालांकि कृषि क़र्ज़ का यह रास्ता जितने समाधान देता है उससे ज़्यादा समस्याएं खड़ी करता रहा है। इसके तहत आमतौर पर सरकार सात फीसदी की रियायती ब्याज दरों पर किसानों केा कर्ज देती है।

घाटे का सौदा

यहीं पर समस्या भी खड़ी होती है। जो क्षेत्र शून्य से चार फ़ीसदी की दर से आगे बढ़ रहा हो वहाँ सात फ़ीसदी की दर वाला ब्याज हमेशा ही घाटे का सौदा बन जाता है। खासकर छोटे किसान कर्ज तो ले लेते हैं लेकिन कभी इसे चुकता करने की स्थिति में नहीं आ पाते। ऐसे में हम किसानों द्वारा आत्महत्याओं की खबरें भी सुनते हैं और सरकारों पर कर्ज माफी का दबाव भी बनता है।

वैसे किसानों की जितनी समस्याएं बजट से जुड़ी हैं उससे कहीं ज्यादा कृषि नीतियों से जुड़ी हैं। फिलहाल जो हमारे बजट का ढांचा है उसमें सरकार के पास किसानों के लिए बहुत कुछ करने की गुंजाइश नहीं है। बजट के दौरान सरकार अपनी किसान समर्थक छवि बनाने के लिए कुछ घोषणाएं जरूर कर सकती है, लेकिन कृषि क्षेत्र की मूल समस्याओं पर इसका बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला।