खबर है कि कांग्रेस ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) को 23 सीटें देने से मना कर दिया है। लोकसभा चुनाव के लिए महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के सहयोगियों शिव सेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी के बीच सीट बंटवारे पर चर्चा के लिए नेताओं की मुलाकात के बाद यह घटनाक्रम सामने आया। कांग्रेस की एक कमेटी तमाम राज्यों में वहां के क्षेत्रीय दलों से इस समय सीट बंटवारे पर बैठक कर रही है।
दो गुटों में बंटी शिवसेना (यूबीटी) ने 23 लोकसभा सीटें मांगी। बावजूद इसके कि उसके अधिकांश सांसद एकनाथ शिंदे के साथ हैं। बातचीत की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि शिवसेना के उद्धव ठाकरे के गुट को एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि पार्टी के विभाजन के कारण उसके पास पर्याप्त उम्मीदवारों की कमी है। इसके बावजूद वो 23 सीटें मांग रही है।
सूत्रों के अनुसार, बैठक में कांग्रेस प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी में विभाजन के बाद, सबसे पुरानी पार्टी राज्य में स्थिर वोट शेयर वाली एकमात्र पार्टी लगती है। यानी उद्धव और पवार की पार्टियां बंट चुकी हैं। इनके मुकाबले कांग्रेस का जो भी मतदाता है, वो अपनी जगह कायम है। वो इधर-उधर नहीं हुआ है।
इंडिया टुडे के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण ने कहा कि पार्टियों के बीच एडजस्टमेंट की जरूरत है। उन्होंने कहा, "हालांकि हर पार्टी सीटों की बड़ी हिस्सेदारी चाहती है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए शिवसेना की 23 सीटों की मांग अत्यधिक है।"
कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा कि नेताओं को जीतने वाली सीटों पर विवाद से बचना चाहिए। उन्होंने कहा- "शिवसेना 23 सीटों की मांग कर सकती है, लेकिन वे उनका क्या करेंगे? शिवसेना के नेता चले गए हैं, जिससे संकट पैदा हो गया है। उम्मीदवारों की कमी शिवसेना के लिए एक समस्या है।"
सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, यूपी, पश्चिम बंगाल और बिहार में भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना चाहते हैं। बिहार में आरजेडी, यूपी में सपा और बंगाल में टीएमसी अपनी-अपनी शर्तें सीटों को लेकर बता रहे हैं। इससे लगता है कि इंडिया गठबंधन का पटरी पर आ पाना मुश्किल लग रहा है। इंडिया गठबंधन अगर यूपी और बिहार में एकजुट नहीं रह पाता है तो जाहिर है फिर विपक्षी एकजुटता के सपने हवा हो जाएंगे।