हंगर वाच सर्वे: गुजरात में 21% को तो भूखा भी रहना पड़ा

06:23 pm Dec 11, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

गुजरात में 21 फ़ीसदी लोगों के सामने कई बार बिना खाना खाए रहने की नौबत आ गई। ऐसा एक ताज़ा सर्वे में दावा किया गया है। यह सर्वे उस गुजरात राज्य में किया गया है जिसके बारे में दावा किया जाता रहा है कि भारत में सबसे विकसित राज्यों में से एक है और अक्सर 'गुजरात मॉडल' के तौर पर पेश किया जाता रहा है।

अन्न सुरक्षा अधिकार अभियान यानी एएसएए गुजरात ने 'हंगर वाच' नाम से सर्वे किया है। कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के बीच कमज़ोर और हाशिए पर पड़े लोगों की भूख की स्थिति जानने के लिए सितंबर और अक्टूबर महीने में यह सर्वे किया गया।

यह सर्वे अहमदाबाद, आनंद, भरूच, भावनगर, दाहोद, मोरबी, नर्मदा, पंचमहल और वड़ोदरा ज़िले में किया गया। इस सर्वे में पता चला है कि 20.6 प्रतिशत घरों में कभी-कभी भोजन की कमी के कारण लोग बिना खाना खाए ही रहने को मजबूर हुए। 21.8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें कभी-कभी तो 24 घंटे में एक समय का भोजन भी नहीं मिला और वे बिना खाना खाए ही सोने को मजबूर हुए। 

इसमें यह भी पता चला कि घरों में खाने की ज़रूरी चीजों की खपत भी कम हो गई है। जवाब देने वालों में से 38 प्रतिशत ने कहा कि चावल/गेहूँ की खपत कम हो गई है जबकि 40.7 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने दाल खाना कम कर दिया है और 57.6 प्रतिशत ने कहा कि वे सब्जियाँ पहले से कम खा रहे हैं।

403 परिवारों से प्रतिक्रियाएँ ली गईं। ये परिवार राज्य के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सबसे पिछड़े समुदायों से आते हैं। सर्वे किए गए लोगों में 91.1 फ़ीसदी ग्रामीण क्षेत्र से थे और 49.4 फ़ीसदी महिलाएँ। जवाब देने वालों में से 64.5 प्रतिशत दिहाड़ी मज़दूर थे और 38.7 प्रतिशत किसान।

हालाँकि, 32 प्रतिशत अपनी आजीविका के लिए एक से अधिक गतिविधियों पर निर्भर करते थे। 35 प्रतिशत जवाब देने वाले या तो बेघर थे या झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले। 403 घरों में से 50.4 प्रतिशत प्रति माह 3,000 रुपये से कम कमाते थे।

रिपोर्ट में कहा गया है, "सरकार ने उन परिवारों को सटीक जानकारी नहीं दी है कि क्यों उनके राशन कार्ड का उपयोग अब उनके आधारभूत अधिकारों का दावा करने के लिए नहीं किया जा सकता है। इनमें से कई वंचित समुदायों से हैं। राशन कार्ड को 'निष्क्रिय' करने की यह प्रक्रिया स्थानीय तालुका और / या ज़िला स्तर पर हुई है। इसके अलावा कई क्षेत्रों में कोविड -19 के कारण तालुका स्तर की समिति की बैठकें नहीं हो रही हैं जिससे परिवारों को खाद्य सुरक्षा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।'

यूपी में भी ख़राब स्थिति

बता दें कि यूपी में भी कुछ ज़िलों के सर्वे में भी सितंबर महीने में ऐसी ही रिपोर्ट आई थी। जेएनयू नई दिल्ली के आर्थिक अध्ययन और नियोजन केंद्र में सहायक प्रोफ़ेसर हैं सुरजीत दास और गिरि विकास अध्ययन संस्थान लखनऊ में सहायक प्रोफ़ेसर मंजूर अली ने 400 से अधिक परिवारों का सर्वे किया था। इस सर्वे में यह तथ्य सामने आया कि सैम्पल लिए गए घरों की औसत आय कोरोना लॉकडाउन के कारण उनकी लॉकडाउन से पहले की आय के पाँचवें भाग से भी कम हो गई है। सर्वे में भाग लेने वालों में से क़रीब आधे ने बताया कि उनकी आय लॉकडाउन के कारण बिल्कुल ख़त्म हो गई है। 

आधे से अधिक परिवारों को अभी तक जन-धन खातों में कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है और 40% से अधिक परिवारों को प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) की घोषणा के 3 महीने बाद भी मुफ्त गैस सिलेंडर नहीं मिला है।