अमेरिका में आर्थिक तंगी की लगातार ख़बरें आ रही हैं। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पहले ही कंगाल हो चुकी है। चीन में भी भयावह संकट के संकेत बताए जा रहे हैं। कई और देशों के श्रीलंका जैसी स्थिति होने की आशंका है। और इसी बीच अब मशहूर अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी ने 2022 में भयावह आर्थिक मंदी की चेतावनी दी है।
नूरील रूबिनी वो अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने 2008 के आर्थिक संकट की सटीक भविष्यवाणी की थी। कहा जाता है कि जब उन्होंने आर्थिक संकट के बारे में सबसे पहले बात की थी, तब किसी ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन उनकी सारी बातें सही साबित हुईं। तब अमेरिका गंभीर आर्थिक संकट से गुजरा था। नूरील रूबिनी को उनकी 2008 की सटीक भविष्यवाणी के लिए डॉ. डूम का उपनाम दिया गया था।
अब वही नूरील रूबिनी ने अमेरिका में और विश्व स्तर पर 2022 के अंत में एक ऐसी ही आर्थिक मंदी की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि यह भयावह हो सकती है और लंबे समय तक रह सकती है। उन्होंने संदेह जताया है कि यह 2023 तक चल सकती है।
रूबिनी मैक्रो एसोसिएट्स के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी रूबिनी की यह चेतावनी सोमवार को एक साक्षात्कार में आई है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, रूबिनी ने कहा, 'यहाँ तक कि एक सामान्य मंदी में भी एसएंडपी 500 अंकों तक, यानी 30 प्रतिशत तक गिर सकता है।' इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें आशंका है कि यह 40 प्रतिशत तक भी गिर सकता है। एसएंडपी 500 अमेरिका का एक शेयर बाज़ार सूचकांक है।
रूबिनी को संदेह है कि अमेरिका और वैश्विक मंदी पूरे 2023 तक चलेगी और यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपूर्ति के झटके और वित्तीय संकट कितने गंभीर होंगे। रूबिनी ने कहा कि 2% मुद्रास्फीति दर हासिल करना फेड के लिए एक असंभव मिशन की तरह होगा। उन्हें मौजूदा बैठक में 75 आधार अंकों की वृद्धि और नवंबर और दिसंबर दोनों में 50 आधार अंकों की वृद्धि की संभावना है। माना जा रहा है कि इस साल के अंत में फेड फंड की दर को 4% और 4.25% के बीच ले जाया जाएगा।
नूरील रूबिनी ने यहाँ तक कहा कि एक बार जब दुनिया मंदी की चपेट में आ जाएगी, तो फिर किसी तरह के सरकारी प्रोत्साहन वाले उपायों की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि बहुत अधिक कर्ज वाली सरकारों के पास वैसा करने के लिए कुछ बचा नहीं होगा।
नूरील ने पिछले साल जुलाई में द गार्जियन में लिखा था, ‘आज की बेहद अस्पष्ट मौद्रिक और राजकोषीय नीतियाँ, जब कई नकारात्मक आपूर्ति संकटों का सामना करती हैं, तब नतीजा 1970 के दशक में आए स्टैगफ्लेशन (मंदी के साथ उच्च मुद्रास्फीति) जैसा हो सकता है। असल में उस समय की तुलना में आज जोखिम भी बड़ा है।’
बता दें कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्था इस साल ख़राब हालत में है। हाल ही में चीन की अर्थव्यवस्था को लेकर बुरी ख़बर आई थी। चीन में आर्थिक मंदी का अंदेशा जताया जाने लगा था। चीन के रियल एस्टेट डेवलपर्स डीफॉल्ट कर रहे हैं। एशिया की सबसे अमीर महिला यांग ह्यूयान ने अपनी आधी दौलत गंवा दी है। वह चीन की प्रॉपर्टी मार्केट की दिग्गज शख्स थीं। बीते एक साल में उनकी संपत्ति 11 अरब डॉलर से ज़्यादा घट चुकी है। चीन के बैंकों की हालत दयनीय है। चीन का कुल कर्ज तेजी से बढ़ रहा है, जो उसके जीडीपी का कई गुना ज़्यादा है। ये वे संकेत हैं जिसे मंदी की आहट के तौर पर देखा जा रहा है। इस साल श्रीलंका की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई थी। उसके सामने भी कुछ वैसा ही संकट था।
दुनिया के कई छोटे देश आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं और इससे दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ मामूली रूप से प्रभावित हुई हैं। लेकिन यदि चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी आती है तो इसका असर उन छोटे देशों की तरह नहीं होगा। आशंका है कि यह पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला देगी और दुनिया में लंबी मंदी चलने की आशंका को बल देगी।