पराली से दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के उपायों की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी को फ़िलहाल स्थगित कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय तब लिया जब केंद्र सरकार ने कहा कि हर साल होने वाली प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए वह क़ानून के माध्यम से एक स्थायी संस्था गठित करेगी।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे के नेतृत्व वाली बेंच ने यह आदेश पारित किया। इस बेंच में ए एस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यन भी शामिल थे। इससे पहले इसी कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस मदन बी लोकुर के नेतृत्व में मॉनिटरिंग कमेटी बनाई थी। सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया था।
हाल के दिनों में दिल्ली में प्रदूषण काफ़ी बढ़ रहा है और इसी को लेकर पर्यावरण संरक्षण में जुटे दो लोगों ने जनहित याचिका लगाई थी। उन्होंने इसमें माँग की थी कि पराली जलाने पर तुरंत रोक लगाई जाए। उन्होंने इसमें दावा किया था कि कोर्ट के निर्देशों के बाद भी इस पर रोक लगाने के लिए राज्य पर्याप्त क़दम नहीं उठा रहे हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने की शिकायतें आती रही हैं।
लेकिन आज की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा, 'एकमात्र मुद्दा है कि प्रदूषण के कारण लोग घुट रहे हैं और यह कुछ ऐसा है जिस पर अंकुश लगाना चाहिए।' कोर्ट को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि केंद्र ने इस मामले पर समग्र विचार किया है और प्रदूषण को रोकने के लिए प्रस्तावित क़ानून का मसौदा चार दिनों के भीतर शीर्ष अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा।
केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर सीजेआई बोबडे ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि यह वह चीज है जिसे सरकार को करना चाहिए था।
बता दें कि 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी गठित करने के साथ ही जस्टिस लोकुर की सहायता के लिए तीन राज्यों के मुख्य सचिवों को भी निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था, 'इस कमेटी को संबंधित राज्य सरकारें सचिवालयी, सुरक्षा और आर्थिक सुविधाएँ मुहैया कराएँगी। कमेटी को 15 दिन में सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी।'
तब कहा गया था कि इस मामले में अगली सुनवाई 26 अक्टूबर को होगी। तब उत्तर प्रदेश और हरियाणा की तरफ़ से पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पूर्व जज के नेतृत्व में कमेटी गठित करने की जगह ईपीसीए की मॉनिटरिंग का आग्रह किया था, लेकिन कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया था। कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण को गंभीर समस्या बताया था।
कोर्ट की यह टिप्पणी इसलिए अहम थी कि हर साल अक्टूबर का महीना शुरू होते ही दिल्ली में प्रदूषण बढ़ जाता है और फिर ऐसा वक़्त आ जाता है कि साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है। इस प्रदूषण के लिए आसपास के राज्यों में पराली जलाए जाने को प्रमुख कारण माना जाता है। हालाँकि इसके लिए दिल्ली-एनसीआर में आद्योगिक गतिविधियाँ, निर्माण कार्य और बड़ी संख्या में चलने वाले वाहन भी ज़िम्मेदार हैं। इसको लेकर सरकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते रहे हैं और सरकारों की तरफ़ से कई उपाये किए जाने के दावे किए जाते रहे हैं। हालाँकि इस बीच इसका कोई समाधान नहीं निकला है।