दिशा रवि को जमानत मिल गई और ज़मानत देते समय कोर्ट ने जो टिप्पणी की है वह दिल्ली पुलिस के लिए बड़ा झटका है। अदालत ने कहा है कि जिन आरोपों के तहत दिशा को गिरफ़्तार किया गया है उसके लिए रत्ती भर भी सबूत नहीं है। कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि 22 साल की एक ऐसी लड़की जिसके ख़िलाफ़ पहले कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है उसको ज़मानत नहीं देने का कोई कारण नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने असहमति की आवाज़ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर सख़्त टिप्पणियाँ भी कीं।
दिशा रवि को पटियाला हाउस कोर्ट के जज धर्मेंद्र राणा ने 1 लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी है। इसी अदालत ने बीते शुक्रवार को दिशा को तीन दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। दिशा पर आरोप है कि उन्होंने एक टूलकिट को तैयार करने और इसे सोशल मीडिया पर आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। पुलिस का दावा है कि इस टूलकिट के पीछे सिख अलगाववादी संगठन पोएटिक जस्टिस फ़ाउंडेशन (पीजेएफ़) का हाथ है। इसी के मद्देनज़र दिशा पर अंतरराष्ट्रीय साज़िश रचने और राजद्रोह जैसे आरोप लगाए गए।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश राणा ने कहा, '26 जनवरी को हिंसा के अपराधियों को उस पीजेएफ़ (पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन) या याचिकाकर्ता/आरोपी से जोड़ने वाला रत्ती भर भी सबूत मेरे सामने नहीं लाया गया है।'
उन्होंने कहा कि अधूरा और न के बराबर सबूत के आधार पर वह 22 साल की लड़की के लिए जमानत के सामान्य नियम के परे जाने का कोई पर्याप्त कारण नहीं मानते हैं। उन्होंने कहा कि उस लड़की का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। जज ने यह भी कहा कि देशद्रोह के क़ानून का इस्तेमाल सरकार के जख्मी अहंकार पर मरहम के लिए नहीं किया जा सकता है।
न्यायाधीश राणा ने कहा कि यहाँ तक कि हमारे पूर्वजों ने बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक सम्मानजनक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी और अलग-अलग विचारों को सम्मान दिया। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत असहमति का अधिकार दृढ़ता से निहित है।
दिशा रवि ने जब अदालत में न्यूज़ चैनलों के ख़िलाफ़ उनके निजी वाट्सऐप मैसेज को लीक किए जाने या सार्वजनिक किए जाने पर रोक की मांग की थी तब उन्होंने भी संविधान के प्रावधानों का ज़िक्र किया था।
पिछले हफ़्ते कोर्ट में दिशा रवि ने कहा था, 'मीडिया के लिए जाँच सामग्री का लीक करना ग़ैरक़ानूनी है, निजता और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन है, और निर्दोषता की धारणा को ख़त्म करते हुए निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के प्रति पक्षपात करता है। इस प्रकार दिल्ली पुलिस की कार्रवाई भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है।'
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फ़ैसले का ज़िक्र किया था। उन्होंने केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ का हवाला दिया था। इस पीठ ने मान्यता दी थी कि एक फ़ोन पर बातचीत एक अंतरंग और गोपनीय प्रकृति की है, और अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के गोपनीयता के मौलिक अधिकार के तहत संरक्षित किए जाने का हकदार है।'
उन्होंने यह भी कहा था, 'माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ में मान्यता दी है... कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रतिष्ठा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।'
बहरहाल, आज यानी मंगलवार को ज़मानत दिए जाने के बाद दिशा रवि के वकील ने अदालत को बताया कि उनकी मुवक्किल का परिवार जमानत के लिए एक लाख रुपये नहीं दे पाएगा क्योंकि यह उनकी सामर्थ्य से बाहर है। इससे पहले दिशा को जब अदालत में लाया गया तो वह अपने रिश्तेदारों को देखकर रो पड़ीं थीं। दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को इसी अदालत में एक और याचिका दायर कर दिशा रवि की हिरासत को चार दिन के लिए बढ़ाए जाने की मांग की थी।
मंगलवार को दिल्ली पुलिस ने दिशा रवि के साथ ही टूलकिट मामले में अभियुक्त बनाए गए पुणे के इंजीनियर शांतनु मुलुक और मुंबई की वकील निकिता जैकब से पूछताछ की। मुलुक और निकिता को बॉम्बे हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत दे दी थी।
दिल्ली पुलिस के मुताबिक़, दिशा ने निकिता जैकब और शांतनु के साथ मिलकर टूलकिट को तैयार किया था। इस टूलकिट को स्वीडन की पर्यावरणविद् ग्रेटा तनबर्ग (थनबर्ग) ने ट्वीट किया था। दिशा रवि ने अदालत को बताया था कि उसने इस टूलकिट को नहीं बनाया है और वह सिर्फ़ किसानों का समर्थन करना चाहती थी। दिशा के मुताबिक़, 3 फ़रवरी को उसने इस टूलकिट की दो लाइनों को एडिट किया था।