तो अब दिल्ली में केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ाएंगे ओवैसी

08:53 pm Mar 19, 2021 | यूसुफ़ अंसारी - सत्य हिन्दी

देशभर में अपनी पार्टी को फैलाने की जद्दोजहद में जुटे हैदराबाद सांसद असदउद्दीन ओवैसी अब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। अगले साल होने वाले दिल्ली नगर निगम के चुनाव में ओवैसी अपनी पार्टी को दमदार तरीक़े से उतारना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने दिल्ली की प्रदेश कमेटी का गठन करने की क़वायद शुरू कर दी है। 

ओवैसी ने दिल्ली में अपनी पार्टी की कमान कलीमुल हाफ़िज को सौंपी है। कलीमुल कई होटलों के मालिक हैं और कई शिक्षण संस्थान भी चलाते हैं। साथ ही सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय हैं। ओवैसी ने गुरूवार देर रात ख़ुद ट्वीट करके यह जानकारी दी है।

ओवैसी क़रीब हफ्ते भर से दिल्ली में अपनी पार्टी का संगठन खड़ा करने की क़वायद में जुटे थे। इसके लिए दिल्ली के प्रभारी हतीम सेठ भी यहीं डेरा डाले हुए थे। कांग्रेस के कई पूर्व विधायकों और नेताओं के साथ बातचीत चली लेकिन सिरे नहीं चढ़ पाई। सूत्रों के मुताबिक़, कई बार ओखला से कांग्रेस के विधायक, शीला दीक्षित की सरकार में मंत्री और बाद में राज्यसभा सांसद रहे परवेज़ हाशमी से लेकर आरजेडी और कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने आसिफ़ मोहम्मद ख़ान तक के नाम ओवैसी की पार्टी की कमान संभालने वालों की लिस्ट में शामिल थे।

बता दें कि पिछले साल भी ओवैसी ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ने की कोशिश की थी लेकिन उस वक्त केजरीवाल की तरफ मुसलमानों का रुझान देखते हुए उन्होंने क़दम आगे नहीं बढ़ाया था। हालांकि तब भी कई बार विधायक रहे शोएब इकबाल से संपर्क साध कर उन्हें पार्टी की जिम्मेदारी सौंपने की कोशिश की गई थी लेकिन आख़िरी वक्त में शोएब इक़बाल ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया था। 

शाहीन बाग़ प्रदर्शन और बाद में दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में अरविंद केजरीवाल के रुख़ से मुसलमानों में नाराज़गी देखी जा रही है। इसी को कैश करने के लिए ओवैसी दिल्ली में अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं।

मुसलमानों की हिस्सेदारी बढ़ाने की मंशा 

अभी दिल्ली के तीनों नगर निगमों की 278 सीटों में सिर्फ 14 मुसलिम पार्षद हैं। दिल्ली में क़रीब 13 फ़ीसदी मुसलिम वोटर हैं। आबादी के हिसाब से देखा जाए तो दिल्ली में 35 से 40 मुसलिम पार्षद होने चाहिए। ओवैसी की पार्टी का मुख्य एजेंडा विधानसभाओं और नगर निगमों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बढ़ाना है। 

इसी एजेंडे पर चलते हुए ओवैसी की पार्टी ने हाल ही में गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में भी हिस्सा लिया था और करीब 7 सीटें जीतकर दमदार तरीके से अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। दिल्ली में भी ओवैसी मुसलिम पार्षदों की संख्या को दोगुना करना चाहते हैं। इसीलिए पूर्वी दिल्ली में मुसलिम बहुल सीटों पर संगठन बनाने के साथ-साथ बूथ लेवल कमेटी बनाने का भी काम शुरू कर दिया गया है।

दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद देशभर के मुसलिम इलाकों में असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी को लेकर जबरदस्त क्रेज़ है। इसे भुनाने के लिए ओवैसी हर राज्य में अपनी पार्टी का संगठन खड़ा करने की मुहिम में जुटे हैं।

वेस्ट यूपी में मिलेगा फ़ायदा

उत्तर प्रदेश में उन्होंने विधानसभा चुनाव जोरों से लड़ने का एलान पहले ही कर दिया है। दिल्ली में पार्टी से जुड़े लोगों का उन पर यह दबाव था कि अगर दिल्ली में भी संगठन खड़ा किया जाए तो दिल्ली के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी पार्टी को फायदा हो सकता है। दरअसल, पश्चिम उत्तर प्रदेश के काफी लोग पूर्वी दिल्ली में रहते हैं। लिहाज़ा दिल्ली का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पश्चिम उत्तर प्रदेश का असर दिल्ली में पड़ता है।

बंगाल में बिगड़ गया खेल 

हालांकि पश्चिम बंगाल में ओवैसी का खेल बिगड़ गया है। बिहार के चुनाव में 5 सीटें जीतने के फौरन बाद उन्होंने पश्चिम पश्चिम बंगाल के साथ-साथ असम में भी जोर शोर से चुनाव लड़ने का एलान किया था। पश्चिम बंगाल में उन्होंने फुरफुरा शरीफ़ के मौलाना अब्बासुद्दीन सिद्दीक़ी के साथ गठजोड़ भी किया था। लेकिन बाद में मौलाना अलग पार्टी बना कर वामपंथी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल हो गए। मौलाना से धोखा खाने के बाद ओवैसी अपने बूते फिलहाल पश्चिम बंगाल की 10 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।

 

मौलाना से धोखा खाने के बाद ओवैसी दिल्ली में फिलहाल किसी से गठबंधन की बात नहीं कर रहे हैं। उनका ज़ोर अभी पार्टी के संगठन को मज़बूत करने पर है। 

ओवैसी की पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि उनकी पार्टी नगर निगम के चुनाव में चुनिंदा सीटों पर अपने बूते ही चुनाव लड़ेगी। लेकिन आख़िरी वक्त में कुछ सीटों पर बीएसपी या दलितों की नई उभर रही आज़ाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन का विकल्प भी खुला रखा गया है।

फिलहाल दिल्ली का अध्यक्ष बनाने बनाने के बाद पार्टी की रणनीति दिल्ली के तीन नगर निगमों के अलग-अलग अध्यक्ष बनाकर पार्टी संगठन को मज़बूत करने की है।

आप को होगा नुक़सान! 

दिल्ली में ओवैसी की पार्टी अपनी पार्टी को मजबूत करने का सीधा असर आम आदमी पार्टी पर पड़ेगा आम आदमी पार्टी इस बार दिल्ली में बीजेपी से तीनों नगर निगम को छीनने का सपना संजोए बैठी है। ओवैसी के चुनाव मैदान में कूदने से आम आदमी पार्टी का यह सपना चकनाचूर हो सकता है। हाल ही में 5 सीटों पर हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी ने 4 सीटों पर अपना कब्ज़ा बरक़रार रखा है। बीजेपी अपनी एक सीट गंवा चुकी है जबकि कांग्रेस ने एक सीट जीतकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। 

ओवैसी पर उपचुनाव में भी कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का दबाव था। उम्मीदवारों की छंटनी भी की गई थी लेकिन आख़िरी वक्त में उप चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया गया। इन चुनाव के वोटिंग पैटर्न पर ओवैसी की टीम पैनी नज़र रखे हुए थी। इसीलिए उपचुनाव के नतीजे आने के फ़ौरन बाद पार्टी संगठन खड़ा करने की क़वायद शुरू की गई है।

असदउद्दीन ओवैसी पर सेक्युलर वोटों का बंटवारा कराके बीजेपी को फ़ायदा पहुंचाने का आरोप लगता रहा है। बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन की हार का ठीकरा भी ओवैसी पर ही फोड़ा गया है।

जिस तरह से ओवैसी उत्तर प्रदेश में सक्रिय है। उससे भी बीजेपी को वहां फ़ायदा होने की पूरी-पूरी उम्मीद है। बीजेपी के उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज खुले तौर पर कह चुके हैं कि ओवैसी बीजेपी के मित्र हैं। जैसे उन्होंने बिहार में बीजेपी को फ़ायदा पहुंचाया था वैसे वह पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी फ़ायदा पहुंचाएंगे। 

अब दिल्ली में ओवैसी के सक्रिय होने के बाद यह आरोप और पुख़्ता हो जाएगा। इस आरोप से ख़ुद को बरी करवाना ओवैसी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगा।