तो लीजिए साहब, अरविंद केजरीवाल अब रामभक्त भी हो गए। दिल्ली में अपनी सरकार को रामराज्य लाने वाली सरकार बनाने का संकल्प भी कर लिया और उन दस सूत्रों को भी गिनवा दिया जिनसे साबित हो सके कि केजरीवाल तो पक्के रामभक्त हैं। एक दिन पहले ही जब दिल्ली का अगले साल का बजट विधानसभा में पेश किया जा रहा था तो केजरीवाल अपने आपको देशभक्त साबित करने में जुटे हुए थे। ऐसा देशभक्त जैसा पहले कभी पैदा ही नहीं हुआ जो पूरी दिल्ली में 45 करोड़ रुपए की लागत से 500 तिरंगे लगवा दे या फिर शहीद भगत सिंह और बाबा साहेब आम्बेडकर के नाम को जपने के लिए 10-10 करोड़ रुपए ख़र्च कर दे।
केजरीवाल अपनी हनुमान भक्ति पहले ही दिखा चुके हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले और चुनाव जीतने के बाद हनुमान मंदिर जाकर सपरिवार पूजा-अर्चना कर चुके हैं। आख़िर केजरीवाल क्या साबित करने में जुटे हुए हैं-वह रामभक्त हैं, देशभक्त हैं, हनुमानभक्त हैं। एक ही सांस में अपने आपको किसका और कितना बड़ा भक्त बता रहे हैं केजरीवाल।
अगर आप दस सूत्रों को देखें तो इनमें से एक भी ऐसा नहीं है कि जिससे लगे कि यह रामराज्य की अवधारणा है। अगर कोई भी पार्टी चुनाव घोषणा पत्र तैयार करती है तो फिर वह इन दस सूत्रों के आसपास ही घूमती है। मसलन, किसी को भूख का सामना नहीं करना पड़े, बच्चों को अच्छी शिक्षा, जनता को बेहतर इलाज, 24 घंटे मुफ्त बिजली और सभी को मुफ्त पानी, सभी को रोज़गार, बेघरों को मकान, महिलाओं को सुरक्षा, बुजुर्गों को सम्मान और सभी को समान अधिकार। कांग्रेस और बीजेपी के साथ-साथ देश की सारी पार्टियाँ ही चुनाव में उतरते वक़्त इन्हीं सूत्रों का तो जाप करती हैं। और तो और, केजरीवाल पिछले छह सालों से जनता के सामने इन्हीं वादों की तो बीन बजाते हुए जनता को सम्मोहित किए हुए हैं। फिर अब आख़िर उन्हें अपने आपको रामभक्त साबित करने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी। आख़िर क्यों उन्हें जानबूझ कर अपने आपको यह कहते हुए रामभक्त साबित करना ज़रूरी हो गया कि अयोध्या में जब राममंदिर बन जाएगा तो वह दिल्लीवालों को मुफ्त राममंदिर दिखाने ले जाएँगे।
उनकी मुफ्त सुविधा देने की आदत से तो सब वाकिफ हैं लेकिन लोगों को अयोध्या के राममंदिर में ही ले जाएँगे, यह वादा करना ही रामभक्त साबित करने के लिए ज़रूरी था। दिल्ली तो क्या बीजेपी का कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता भी जनता से ऐसा वादा नहीं कर पाया। नरेंद्र मोदी, अमित शाह या जे.पी. नड्ढा मंदिर बनाना तो ज़रूरी समझते हैं लेकिन किसी के दिमाग़ में यह नहीं आया कि लोगों को भगवान श्रीराम के मुफ्त दर्शन कराने का वादा ही कर डालें। इस हिसाब से तो केजरीवाल उनसे भी बड़े रामभक्त हो गए।
अब सवाल यह है कि केजरीवाल अपने आपको सबसे बड़ा रामभक्त, देशभक्त और हनुमानभक्त क्यों साबित करने पर तुले हैं?
केजरीवाल कोई भी बात यों ही नहीं कहते। उसके पीछे एक मंशा होती है, कोई योजना होती है। वह जितने चालाक राजनीतिज्ञ बन चुके हैं, उसका लोहा अब विरोधी भी मानने लगे हैं। दिल्ली में कांग्रेस को ठिकाने लगाने के बाद अब वह बीजेपी को ठिकाने लगाना चाहते हैं और उसके लिए उन्हें उन सभी मुद्दों में सेंध लगाना ज़रूरी है जो बीजेपी की जायदाद माने जाते हैं। बीजेपी अपने अलावा किसी को देशभक्त नहीं मानती। जो मोदी विरोधी है, वह देशभक्त नहीं है।
राजीव चौक में एक तिरंगा काफ़ी पहले से ही लगा हुआ है।फ़ोटो साभार: ट्विटर/नवीन जिंदल
अब केजरीवाल देशभक्त होने का टाइटिल हासिल करने के लिए 45 करोड़ रुपए की लागत से 500 तिरंगे लगाएंगे यानी हर तिरंगे पर 9 लाख का ख़र्च। जाहिर तौर पर हर झंडे के साथ यह ज़रूर लिखा जाएगा कि आपको देशभक्त होने की याद दिलाने का काम केजरीवाल ने किया है। केजरीवाल देशभक्ति के संदेश में पहले अपना लाभ देख रहे हैं। भगत सिंह और बाबा साहेब आम्बेडकर की याद में समारोह आयोजित करके वह किन लोगों को अपना पक्षधर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, यह भी बताने की ज़रूरत नहीं है। जहाँ तक अपने आपको रामभक्त दिखाने की बात है तो केजरीवाल उसके बहाने हिंदू वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है।
दिल्ली में अगले साल नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं। हाल ही में हुए नगर निगम उपचुनावों में केजरीवाल ने जिस तरह 5 में से 4 सीटें जीती हैं, उससे पार्टी के हौसले बहुत बुलंद हैं।
आम आदमी पार्टी नगर निगम में बीजेपी को निकम्मा और भ्रष्ट साबित करने के लिए पिछले चार महीनों से जुटी हुई थी। अपनी इस रणनीति में उसने कामयाबी हासिल की है। इसका एक बड़ा सबूत शालीमार बाग की सीट जीतना है जो बीजेपी ने अब तक कभी नहीं हारी थी। यह सच है कि सीलमपुर विधानसभा इलाक़े की चौहान बांगर सीट आम आदमी पार्टी ज़रूर हारी है और कुछ लोग मान रहे हैं कि मुसलिम वोटरों का केजरीवाल से मोह भंग हुआ है लेकिन अभी यह कहना बहुत जल्दी होगा। इसका एक कारण यह है कि चौहान बांगर सीट पर वहाँ के पूर्व विधायक चौधरी मतीन अहमद का बड़ा असर रहा है। हालाँकि वह पिछले दो विधानसभा चुनावों से वहाँ से लगातार हार रहे हैं लेकिन इस बार अपने बेटे जुबेर अहमद को जिताने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके अलावा मरकज के मामले में केजरीवाल सरकार जिस तरह बैकफुट पर चली गई, उसका मुसलिम वोटरों ने काफ़ी बुरा माना है। यह एक मुद्दा भी बना लेकिन मुसलिम इससे हमेशा के लिए केजरीवाल से रूठ गए हैं, यह कहना मुश्किल है।
मगर, ऐसा लगता है कि यह आशंका केजरीवाल को भी है कि मुसलिम उनसे रूठ सकते हैं। इसीलिए चौहान बांगर सीट हारते ही अब वह इस नुक़सान की भरपाई के लिए प्लान ‘बी’ पर चल रहे हैं। अब वह अपने साथ हर तरह का भक्त होने का टाइटिल जुड़वाना चाहते हैं। उनका टारगेट अब वे वोटर भी हैं जो इस भक्ति की रौ में बहकर बीजेपी के साथ चले जाते हैं। वैसे, चुनाव तो पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल, गुजरात, उत्तर प्रदेश और गोवा में भी हैं जहाँ केजरीवाल अपनी पार्टी का भाग्य आजमाने की घोषणा कर चुके हैं लेकिन असल में उनकी परीक्षा नगर निगम चुनावों में ही है। दिल्ली से बाहर जाकर बड़ी कामयाबी हासिल करने की ग़लतफहमी केजरीवाल शायद अभी नहीं पाल रहे। सूरत नगर निगम की 27 सीटें जीतकर भी आम आदमी पार्टी गुजरात में कोई करिश्मा करने जा रही है, ऐसी संभावना किसी को नहीं है। उनका बड़ा टारगेट दिल्ली है और दिल्ली नगर निगम चुनाव जीतना आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
बीजेपी केजरीवाल की इस योजना से आशंकित है। इसीलिए जैसे ही केजरीवाल ने रामराज्य लाने और रामभक्त होने का दावा किया, तमाम छोटे-बड़े नेता कहने लगे हैं कि उन्होंने तो राममंदिर के लिए कोई चंदा तक नहीं दिया। चांदनी चौक में मंदिर तुड़वाने का दोष भी केजरीवाल पर डाल दिया लेकिन केजरीवाल को भी पता है कि इसी तरह के विरोध से ही तो वह आमने-सामने की लड़ाई में आएँगे। इसके लिए किसी भी भक्ति के पापड़ बेलने पड़ें, केजरीवाल उससे पीछे नहीं हटने वाले।