हर दिन बढ़ते जा रहे किसान आंदोलन के कारण जहां मोदी सरकार पहले से परेशान है, वहीं विपक्षी दलों ने भी उस पर सियासी दबाव बढ़ा दिया है। विपक्षी दलों में कांग्रेस विशेषकर कृषि क़ानूनों को लेकर खासी मुखर है और राहुल गांधी इस मसले पर पंजाब में ट्रैक्टर यात्रा निकालने से लेकर लगातार ट्वीट कर सरकार की मुश्किलें बढ़ाते रहे हैं। किसान आंदोलन पर चर्चा के लिए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी शनिवार को पार्टी नेताओं के साथ वर्चुअल बैठक कर इस मामले में रणनीति तय करेंगी।
सोनिया के साथ इस वर्चुअल बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रभारी भाग लेंगे। कांग्रेस किसानों को अपना समर्थन दे चुकी है और पार्टी के नेता लगातार मोदी सरकार से इन क़ानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। सोनिया गांधी ने कुछ दिन पहले मोदी सरकार को आज़ादी के बाद की सबसे अहंकारी सरकार बताते हुए इन क़ानूनों को वापस लेने की मांग को दोहराया था।
एएनआई के मुताबिक़, कांग्रेस अब इस मसले पर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आक्रामक तेवर अख्तियार करने जा रही है। शुक्रवार को पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि पार्टी को इन क़ानूनों को रद्द करने के सिवा कुछ भी स्वीकार नहीं है।
राष्ट्रपति से मिले थे राहुल
राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पार्टी नेताओं के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाक़ात की थी और उन्हें दो करोड़ हस्ताक्षर सौंपे थे। कांग्रेस नेताओं की योजना विजय चौक से राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च निकालने की थी लेकिन पुलिस ने कोरोना के चलते धारा 144 लागू होने का हवाला देते हुए मार्च निकालने की इजाजत नहीं दी थी। मार्च निकालने की कोशिश के दौरान प्रियंका गांधी समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया गया था।
किसानों के आंदोलन पर देखिए वीडियो-
संघर्ष का मौक़ा
कांग्रेस जानती है कि बिहार, हैदराबाद के बाद जम्मू-कश्मीर में भी पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है। इसके अलावा बीते कुछ महीनों में पार्टी के भीतर चले घमासान के कारण भी पार्टी आलोचना का सामना कर रही है। ऐसे वक़्त में ज़रूरी है कि कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के साथ ही उन्हें एकजुट भी किया जाए और इसके लिए किसान आंदोलन एक सुनहरा मौक़ा है। किसानों के मुद्दों को उठाकर पार्टी ख़ुद को फिर से खड़ा कर सकती है।
आठवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा
कृषि क़ानूनों के मसले पर केंद्र सरकार और किसानों के बीच शुक्रवार को हुई आठवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही। यह बैठक नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में हुई। बातचीत के दौरान सरकार ने कृषि क़ानूनों में संशोधन की बात कही जबकि किसानों ने फिर कहा कि उन्हें संशोधन नहीं चाहिए, बल्कि उनकी मांग क़ानूनों को रद्द करने की है। अगली बैठक 15 जनवरी को दिन में 12 बजे होगी।
कोई और विकल्प दें किसान: सरकार
बैठक के बाद कृषि मंत्री तोमर ने कहा, ‘तीनों क़ानूनों को लेकर चर्चा हुई और सरकार का यह आग्रह रहा कि किसान संगठन क़ानूनों को रद्द करने के अतिरिक्त कोई विकल्प दें तो सरकार उस पर विचार करेगी लेकिन चर्चा के बाद भी विकल्प नहीं आ सका।’ उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि किसान नेता अगली बैठक में कोई विकल्प लेकर आएंगे।
तोमर ने आगे कहा, देश भर में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो क़ानूनों का समर्थन कर रहे हैं और जो चाहते हैं कि क़ानून निरस्त हों उनके साथ सरकार बातचीत कर रही है। फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़े जाने की चर्चा पर तोमर ने कहा, ‘हम लोकतांत्रिक देश हैं और लोकसभा और राज्यसभा से पास हुए किसी क़ानून के विश्लेषण का सुप्रीम कोर्ट को अधिकार है और कोर्ट में इस मामले में 11 जनवरी को सुनवाई होनी है।’ यह भी ख़बर सामने आई कि बैठक के दौरान किसान नेताओं ने मौन धारण कर लिया।
कड़ाके की ठंड और दिल्ली में हो रही बारिश के बीच किसानों के आंदोलन से देश की सियासत पूरी तरह गर्म है। भारत बंद से लेकर भूख हड़ताल तक कर चुके किसान ट्रैक्टर रैली निकालकर दम दिखा चुके हैं और अब 26 जनवरी को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड की तैयारी है।
अड़े किसान, सरकार परेशान
टिकरी, सिंघु और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों का साफ कहना है कि उन्हें इन कृषि क़ानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। किसानों से बातचीत करने तक से पीछे हटती रही सरकार अब इन क़ानूनों में संशोधन करने की बात कह चुकी है, एमएसपी पर लिखित आश्वासन की बात कह चुकी है लेकिन किसान इसके लिए राजी नहीं हैं। सरकार के लिए भी इस मसले का हल निकालना बेहद मुश्किल हो गया है।