नए साल की शुरुआत में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का इंडिया नामक गठबंधन दो वजहों से सुर्खियों में है। पहली सकारात्मक वजह तो यह है कि गठबंधन को नीतीश कुमार के रूप में उसका संयोजक मिलने जा रहा है। दूसरी वजह नकारात्मक है। वो ये कि गठबंधन के नेता सीटों के बंटवारे को लेकर तू तो मैं पर तू-तू मैं-मैं पर उतर आए हैं। इस बीच कांग्रेस के सूत्रों ने दावा किया है कि उसने सीटों के बंटवारे का एक फार्मूला तय कर लिया है। कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं की एक समिति ने इस फार्मूले का ड्राफ्ट तैयार किया है। जल्दी ही इसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन के सामने मंज़ूरी के लिए पेश किया जाएगा।
कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने फैसला किया है कि वह 10 बड़े राज्यों के अलावा उत्तर-पूर्व के सभी सात राज्यों और केंदेर शासित प्रदेशों की 234 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। इनके अलावा कंग्रेस करीब 10 राज्यों में 100 सीटों पर सहयोगी दलों के सामने दावा ठोक रही है। लड़ेगी। मोटे अंदाज़े के मुताबिक कांग्रेस करीब 325 सीटों पर चुनाव लड़ने का इरादा रखती है। कांग्रेस आलाकमान की तरफ से सभी राज्यों के नेताओं को गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर होने वाली बातचीत में आइडियल के बजाय लाचीला रुख अपनाने को कहा गया है। साथ ही सींटों के बंटवारे पर सार्वजनिक बयानबाजी से बचने की भी सलाह दी गई है।
इन राज्यों में अकेले चुनाव लड़ेगी कांग्रेस
कांग्रेस की राष्ट्रीय गठबंधन कमेटी ने सीटों बंटवारे को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। इससे मुताबिक कांग्रेस 234 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लडेगी। इनमें उन राज्यों क सीटें शामिल हैं जहा कांग्रेस और बीजेपी या क्षेत्रीय पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला है। इन राज्यों में ‘इंडिया’ गठबंधन के किसी घटक का कोई वजूद नहीं है। इनमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडीशा, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के साथ ही गोवा और सभी उत्तर पूर्वी राज्य शामिल हैं। इनके अलावा लक्ष्यद्वीप को छोड़कर बाकी केंद्र शासित प्रदेशों में भी कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी। इस तरह 20 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में लोकसभा की 234 सीटों पर कांग्रेस अपने दम पर ताल ठोकेगी।
किन राज्यों में होगा गठबंधनः कांग्रेस के सींटों के बंटवारे के ड्राफ्ट के मुताबिक नौ राज्यों में वह क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल बनाकर करीब 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, केरल, तमिलनाडु, वेस्ट बंगाल, दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कांग्रेस सीटों बंटवारे के साथ चुनाव लड़ेगी। केंद्रीय नेतृत्व ने इन प्रदेश के नेताओं से साफ कहा है कि ‘इंडिया’ गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर अंतिम फैसला लोकसभा की तस्वीर को ध्यान में रखकर किया जाएगा। पार्टी ने तय किया है कि पिछले आम चुनावों में कांग्रेस जिन सीटों पर नंबर दो पर थी, वहां किसी भी तरह का तालमेल नहीं होगा। उन सीटों पर कांग्रेस खुद अपने उम्मीदवार उतारेगी। सहयोगी दलो से सीटों के बंटवारे पर वो दो संसदीय चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार बात करेगी।
मैराथन बैठकों में हुआ विचार मंथन
हाल ही में कांग्रेस ने उन राज्यों के स्थानीय नेताओं को दिल्ली बुलाकर लोकसभा की तैयारियों और सहयोगी दलों के साथ सीटों के बंटवारे पर गहन चर्चा की जहां उसे गठबंधन करना है। कई दिनों तक चली इन बैठकों में स्थानीय नेताओं ने आलाकमान को साफ-साफ बता दिया कि गठबंधन करने से लोकसभा चुनाव में फौरी तौर पर कुछ फायदा तो हो सकता है लेकिन कांग्रेस के लिए दूरगामी नुकसान है। जिन सीटों पर कांग्रेस दावा छोड़ देगी, वहां उसका दवा हमेशा के लिए छूट जाएगा। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का आकार पहले से कम हो जाएगा। इस पर कमान का कहना था कि अगर गठबंधन के सहारे कांग्रेस 2024 में सत्ता हासिल कर सकती है तो उसे कुछ त्याग करके भी गठबंधन करना चाहिए। क्योंकि सवाल सिर्फ चुनाव जीतने हारने का नहीं बल्कि संविधान और लोकतंत्र को बचाने का है इसके लिए कांग्रेस कुर्बानी देने को तैयार है।
राज्यवार हुई इन बैठकों में लंबी चर्चा के बाद मोटे तौर पर सीटों के बंटवारे पर पार्टी ने अपना रुख तय किया है। हर राज्य में एक निश्चित संख्या में सीटें हासिल करने की आंकड़ा तयकिया गया है। लेकिन सहयोगी दलों के साथ बातचीत में सीटों की संख्या घट बढ़ सकती है। बढ़ने के असर तो कम ही हैं। लिहाज़ा ये मानकर चलना चाहिए कि गठबंधन में कांग्रेस जितनी सीटें हासिल करने का लक्ष्य रख रही है उससे कम ही उसे मिलेंगी। अब देखते हैं किस राज्य में कांग्रेस कितनी सीटों पर दावा कर रही है और उसके दावे का आधार क्या है।
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा रस्साकशीसूत्रों के मुताबिक देश की सियासत में सबसे ज्यादा अहमियत रखने वाले उत्तर प्रदेश में सीटों के बंटवारे पर सबसे ज्यादा रस्साकशी है। राज्य इकाई के कई बड़े नेता कम से कम 50% सीटे चाहते हैं। इस पर समिति कहा कि जीत ही एकमात्र मानदंड होना चाहिए। लिहाज़ा राज्य इकाई को उन सीटों की तलाश करने को कहा गया जो पार्टी ने 2009 में जीती थी और उन सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के पास मजबूत उम्मीदवार हों। आपको बता दें कि 2009 के चुनाव कांग्रेस के टिकटपर जीतने वालों में से कई पार्टी छोड़ चुके हैं। इनमें आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद, अनु टंडन, संजय सिंह और जगदंबिका पाल जैसे नेता शामिल हैं। उन सीटों पर कांग्रेस के पास वैकल्पिक उम्मीदवार भी नहीं हैं। लिहाज़ा कांग्रेस के पास मजबूत उम्मीदवारों वाली सीटों सी संख्या 10-12 ही रह गई है। कांग्रेस को इतनी ही सीटों पर सब्र करना पड़ सकता है।
महाराष्ट्र में महादुविधाः उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटों वाला राज्य है। कांग्रेस को छोड़कर उसके दोनों सहयोगील दलों में टूट हो चुकी है। शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के बाद नई पार्टियों का गठन हुआ है। इसलिए कांग्रेस का मानना है कि कोई पिछला चुनाव सीट बंटवारे का आधार नहीं हो सकता है। कांग्रेस राज्य में कम से कम 20 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। लेकिन शिवसेना (उधव ठाकरे) पहलरे ही 23 सीटों पर दावा ठोक चुकी है। एनसीपी भी पहले से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है। लिहाज़ा कांग्रेस सींटों के बंटवारे को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रखेगी।
पश्चिम बंगाल में फंसा पेंचपश्चिम बंगाल में कांग्रेस पसोपेश में है। पार्टी अभी तक तय नहीं कर पाई है कि उसे वाम दलों के साथ गठबंधन करना है या टीएमसी के साथ। ममता बनर्जी किसी सूरत वामदलों के साथ गठबंधन को तैयार नहीं है। कांग्रेस का मानना है कि उसे पश्चिम बंगाल में बेहरामपुर और दक्षिण मालदा में दो मौजूदा सांसदों के साथ कम से कम 6 सीटें दी जानी चाहिए। कांग्रेस अब दार्जलिंग और पुरुलिया जैसी सीटों के अलावा उत्तर और दक्षिण मालदा दोनों सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही है, जो सीटें पिछले चुनाव में बीजेपी ने जीती थीं। साथ ही रायगंज से भी, जहां से कांग्रेस दीपादास मुंशी को मैदान में उतारना चाहती है। जबकि टीएमसी कांग्रेस और वामदलो को एक भी सीट नहीं देना चाहती।
दिल्ली में बड़ी मुश्किलः दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन लेकर राज्य इकाई शुरु से ही इंकार करती रही है। लेकिन आलाकमान ने साफ कर दिया कि गठबंधन तो होगा। इस पर दिल्ली के कुछ नेताओं का मानना है कि कांग्रेस को हरियाणा और यूपी की सीमा से लगी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए, हालांकि कुछ नेताओं का मानना था कि पार्टी को ऐसी सभी सीटें तलाशनी चाहिए जहां उनके पास मजबूत चेहरे हों। कांग्रेस दिल्ली में 3 या 4 सीटें मांगेगी। दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, बाहरी दिल्ली और नई दिल्ली जैसी सीटों पर उसका दावा मज़बूत है।
बिहार में बड़ी मांगबिहीर में पिछली बार कंग्रेस ने महज़ एक सीट जीती थी। उसका सहयोगी राजद एक भी सीट नहीं जीत पाया था। इस बार जदयू भी महागठबंधन का हिस्सा है। कांग्रेस उन सभी 9 सीटों की तलाश करेगी, जिन पर उसने पिछले चुनाव में चुनाव लड़ा था। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस 5-6 सीटों पर भी समझौता कर सकती है।
झारखंड में झगड़ाः झारखंड में भी सीटों के बंटवारे की राह आसान नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ ही यहं राजद भी कई सीटों पर दावा ठोक रहा है। बैछक में कांग्रेस ने तय किया है कि वो उन सीटों की मांग करेगी जिन पर उसने पिछला चुनाव लड़ा था। कांग्रेस हजारीबाग, रांची, धनबाद खूंटी, जमशेदपुर, चतरा, पलामू, सिंहभूम, लोहरदगा ये सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहेगी। वहीं, राजद भी चतरा और पलामू जैसी सीटों की मांग कर रहा है।
पंजाब का पेंचपंजाब में दिल्ली वाला पेंच फंसा है। कांग्रेस पिछले चुनाव में जीती हुई सभी 8 सीटों पर चुनाव लेकिन 2022 मे हुए विधानशबा चुनाव में उसका सफाया हो चुका है। 2019 में कैप्टन अमरेंदर सिंह के न्तृत्व में कांग्रेस ने 8 सीटे जीती थीं। लेकिन अब वो कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। उनकी संसद पत्नी कांग्रेस से निलंबित है। ऐसे में आम आदमी पार्टी के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर जबर्दस्त रस्साकशी होनी तयहै। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के ‘पंजाब में एक थी कांग्रेस’ वाली टिप्पणी पर कांग्रेस के पलटवार से संकेत मिल गए हैं कि दोनों तरफ कितनी आग लगीं हुई है।
केरल में पुराना गठबंधनकेरल में कांग्रेस से पिछले कई दशकों से मुस्लिम लीग और अन्य छोटी पार्टियों के गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। ‘इंडिया’ गठबंधन का कोई भी घटक केरल में सीटों का दावेदार नहीं है। लिहाजा केरल में कांग्रेस पुराने फार्मूले पर ही सिरों का बंटवारा करेगी।
कांग्रेस मुख्यालय पर कई दिन चली बैठकों में आलाकमान ने राज्यके नेतओं के तेवर देखे और राज्य को नेताओं ने आलकमान का रुख अच्छी तरह भांप लिया है। राष्ट्रीय गठबंधन समिति को राज्य नेतृत्व की बात समझ आ गई है। वो पार्टी अध्यक्ष को इस बारे में अवगत कराएगी और फिर पार्टी गठबंधन के सहयोगियों के साथ बातचीत शुरू करेगी। जनवरी के पहले हफते के अंत तक गठबंधन वार्ता को पूरा करना चाहती है। कांग्रेस 14 जनवरी से राहुल गांधी की अगुआई में होने वाली ‘भारत न्याय यात्रा’ शुरू होने से पहले सीट बंटवारे का काम पूरा कर लेना चाहती है।