कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लॉकडाउन सख़्ती से लागू नहीं किए जाने के बावजूद आर्थिक स्थिति में कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ और न ही रोज़गार की हालत में। लोगों का रोज़गार छिनना जारी रहा।
सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी का कहना है कि इस दौरान 32 लाख लोगों की रोज़ी-रोटी छिन गई।
सीएमआईई का कहना है कि जुलाई 2021 में 76.49 मिलियन यानी 7.6 करोड़ वेतनभोगी लोग थे, जबकि यह संख्या जून में 79.7 मिलियन यानी 7.9 करोड़ थी।
जिन लोगों की नौकरी गई, उनमें से ज़्यादातर लोग शहरों के थे। शहरी इलाकों में 26 लाख बरोज़गार हो गए।
मुंबई स्थित सीएमआईई का यह भी कहना है कि इस दौरान छोटे व्यापारियों और दिहाड़ी मज़दूरों की तादाद 24 लाख बढ़ी।
इसका यह भी कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था V शेप में सुधर रही है यानी उसमें तेज़ी से सुधार हो रहा है।
पहली लहर में क्या हुआ था?
पहली बार लॉकडाउन लगते ही भारत में पिछले साल सिर्फ़ अप्रैल महीने में ही बारह करोड़ लोगों के बेरोज़गार होने की ख़बर आई थी। और इनमें से छह करोड़ लोग चालीस साल से कम उम्र के थे, यानी वो लोग जिनके कंधों पर न सिर्फ़ परिवार बनाने और चलाने की ज़िम्मेदारी थी बल्कि जिनमें से ज़्यादातर लोगों पर किसी न किसी तरह के कर्ज का बोझ भी रहा होगा।
सीएमआईई ने बताया कि इस साल सिर्फ़ मई के महीने में ही फिर डेढ़ करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए। अब जब कोरोना की तीसरी लहर की आशंका बार-बार जताई जा रही है तब कितने और लोगों के रोजगार खतरे में होंगे और जिनकी नौकरियां चली गई हैं उन्हें कब और कैसे वापस मिलेंगी सोचना भी मुश्किल है।
सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आँकड़ों के अनुसार, दिसंबर में राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर 9.06 प्रतिशत पर पहुँच गई। यह नवंबर में 6.51 प्रतिशत थी। इसी तरह ग्रामीण बेरोज़गारी दिसंबर में 9.15 प्रतिशत पर थी, यह नवंबर में 6.26 प्रतिशत पर थी।
उच्चतम स्तर पर बेरोज़गारी
राष्ट्रीय और ग्रामीण बेरोज़गारी की ये दरें जुलाई 2020 से अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं। जून 2020 में बेरोज़गारी की राष्ट्रीय दर 10.18 प्रतिशत और ग्रामीण बेरोज़गारी 9.49 प्रतिशत थी।
दिलचस्प बात यह है कि जिस समय ग्रामीण और राष्ट्रीय बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है, शहरी बेरोज़गारी में कमी आई है। यह 8.84 प्रतिशत आँकी गई है।
मनरेगा
बेरोज़गारी के इन आकड़ों से यह साफ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था भले ही कोरोना और उस वजह से हुए लॉकडाउन से उबरने लगी हो, रोज़गार के नए मौके नहीं बन रहे हैं।
लॉकडाउन के दौरान मनरेगा की बहुत तारीफ हुई और यह कहा गया कि उसमें करोड़ों लोगों को काम मिला। लेकिन इसके पीछे का सच भी जानना ज़रूरी है।