बिहार में रोज़गार चुनावी मुद्दा बन गया है। इसकी शुरुआत राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के द्वारा दस लाख नौकरियां देने की घोषणा से हुई। गुरुवार को बीजेपी ने अपना संकल्प पत्र जारी किया। इसमें उसने 19 लाख नौकरियों का सपना दिखाया है।
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी नेता और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने तेजस्वी के बयान के बाद बजट प्रावधानों का हवाला देते हुए पूछा था कि दस लाख नौकरियों के लिए एक लाख करोड़ से अधिक रुपयों की ज़रूरत होगी और इतने पैसे कहां से आएंगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपने चुनावी भाषण में तेजस्वी के बयान का मजाक उड़ाया था।
बीजेपी की नौकरियों के सपने में एक पेच है। पार्टी के मुताबिक़, सिर्फ चार लाख नौकरियां सरकारी होंगी और बाकी पंद्रह लाख आईटी हब और कृषि हब बनने के बाद मिलेंगी। केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में बीजेपी के संकल्प पत्र का विमोचन हुआ। इसमें कोरोना वायरस का टीका मुफ्त में देना का भी वादा किया गया है।
बीजेपी के नौकरी के वादे में तीन लाख सरकारी शिक्षक के पद हैं और एक लाख सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के अनुसार, पांच लाख नौकरियां आईटी हब से मिलेंगी और बाकी दस लाख एफ़पीओ यानी फ़ॉर्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन से।
‘पइसवा कहां से लाओगे’
नीतीश कुमार ने गोपालगंज की एक चुनावी जनसभा में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव की दस लाख नौकरी देने की घोषणा का यह कहकर मजाक उड़ाया कि ‘पइसवा कहां से लाओगे।’ इसके जवाब में तेजस्वी यादव ने कहा है कि उनकी बात विशेषज्ञों से हुई है और इसका रास्ता है। सरकार बनी तो कैबिनेट की पहली बैठक में इस प्रस्ताव पर दस्तख़त करेंगे।
नीतीश कुमार के उस भाषण का अंश पढ़िए- ‘बाकी लोग खाली बयानबाजी करेगा। करने का न कोई ज्ञान है, न कोई जानकारी है। आजकल हम देखते हैं कि कहते हैं कि एतना लोग को नौकरी देंगे। और उतने लोगों को नौकरी दोगे तो बाकी लोगों को काहे नहीं दोगे। सबको दे दो और पइसवा कहां से लाओगे।’
इसके बाद नीतीश कुमार इशारे में यह भी कहते हैं, ‘जिसके चलते जेल गये हो उसी पैसवा से होगा। काहे राज्य में तो पैसा होगा नहीं।’
नीतीश ने इतनी नौकरियों को अपने ही अंदाज में असंभव भी बताया। उन्होंने कहा, ‘और जो होना नहीं है और जो हो ही नहीं सकता।’ इसके बाद वह फिर से पैसे का सवाल उठाते हैं और कहते हैं, ‘पइसवा आएगा कहां से। ऊपर से आएगा। कहां से आएगा कि नकली नोट मिलेगा‘।
नीतीश का पुराना बयान
आरजेडी ने नीतीश कुमार को भी अपने अंदाज में नौकरी के मुद्दे पर निशाना बनाया है। इसके ट्विटर हैंडल पर नीतीश कुमार का वह बयान दिखाया गया है जिसमें वे शिक्षकों को चेतावनी दे रहे हैं कि अगर ‘जाकर दस्तख़त कर देंगे तो सड़क पर आ जाओगे टहले हुए, समझे न। ज्यादा होशियार मत बनो।’ इसके बाद तेजस्वी यादव अपने दस्तख़त के बारे में बताते हैं कि कैबिनेट की बैठक में पहले दस्तख़त से लगभग दस लाख नौकरियों की व्यवस्था होगी। तेजस्वी के शब्दों में ‘यह वादा नहीं, मजबूत इरादा है।’
तेजस्वी का कहना है कि बिहार में 46 प्रतिशत बेरोजगारी दर है, जो सबसे ज्यादा है। वे कहते हैं कि अगर झूठ बोलना होता तो एक करोड़ नौकरी का भी वादा कर सकते थे। उनके अनुसार सरकारी नौकरियों के जितने पद खाली हैं उसे पूरा कर इतनी नौकरियां दी जा सकती हैं।
तेजस्वी मणिपुर का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वहां एक लाख की आबादी पर एक हजार से ज्यादा सिपाही हैं जबकि बिहार में महज 77 हैं। यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद खाली हैं। अस्पतालों में डाॅक्टरों-नर्सों के पद खाली हैं। इसी तरह अन्य विभागों में भी पद खाली हैं।
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बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि अगर इतने पैसे वेतन पर खर्च किये जाएंगे तो पेंशन, छात्रवृत्ति, साइकिल, यूनिफाॅर्म, दोपहर के भोजन, किसानों की सब्सिडी, आधारभूत संरचना और बिजली के लिए पैसे कहां से आएंगे। नीतीश कुमार और सुशील मोदी के पैसे के सवाल पर तेजस्वी यादव बिहार के बजट की चर्चा करते हैं।
तेजस्वी यादव अपने ट्विटर हैंडल पर कहते हैं- ‘नीतीश जी, आजकल कुछ भी बोल रहे हैं। शायद वो भूल गए हैं कि बिहार का वित्तीय बजट 2,11,761 करोड़ है, जिसका 40 प्रतिशत उनकी सरकार अपनी ढुलमुल, गैर-जिम्मेदारना, भ्रष्ट और लचर नीतियों के कारण खर्च ही नहीं कर पाती है और अंत में नाकामियों के कारण 80 हजार करोड़ रुपया हर वर्ष सरेंडर होता है।‘
बिहार के लोग सोशल मीडिया पर इस बात के लिए खुशी का इजहार कर रहे हैं कि बहुत सालों के बाद यहां रोज़गार चुनावी मुद्दा बन रहा है। कई लोग कह रहे हैं कि जिस रोज़गार की घोषणा का नीतीश कुमार ने मजाक उड़ाया अब उन्हीं के गठबंधन की पार्टी भी रोजगार के इतने बड़े वादे कर रही है।
एक युवा ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है, ‘जनता को बधाई हो! मजबूरी ही सही, सभी दल रोज़गार की बात कर रहे हैं। रोज़गार इस चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा है।’ राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि बिहार में अब रोज़गार के मुद्दे पर बहस तेज होगी।