बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2005 से बीजेपी के साथ सरकार चला रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार के गठन के इतने दिनों के बाद भी कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पा रहा है। खुद नीतीश कुमार का बयान है कि इसकी वजह यह है कि बीजेपी से लिस्ट नहीं मिल रही है और पहली बार कैबिनेट विस्तार में इतनी देर हो रही है।
बिहार में पिछले साल 16 नवंबर को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उनके साथ 14 और मंत्री बने थे। संवैधानिक प्रावधानों के हिसाब से बिहार में मुख्यमंत्री समेत कुल 36 मंत्री हो सकते हैं।
गुरूवार को नीतीश कुमार की बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव, प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और दोनों उप मुख्यमंत्रियों- तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी की मुलाकात हुई थी। आमतौर पर यह माना जा रहा था कि इस बैठक में मंत्रिमंडल विस्तार पर भी बात हुई होगी लेकिन नीतीश कुमार ने पत्रकारों को बताया कि जो बातें हुईं उसमें यह बात शामिल नहीं थी।
बकौल नीतीश, बिहार में सरकार जो काम कर रही है, उस पर बात हुई। लक्ष्य पर बात हुई। कोई राजनीतिक बात नहीं हुई। दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन बीजेपी नेताओं की मुलाकात जेडीयू के नये अध्यक्ष आरसीपी सिंह से भी हुई थी।
नीतीश कुमार के जवाब में मायूसी, बेबसी और नाराजगी दिख रही थी। उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल में कभी मंत्रिमंडल विस्तार में इतनी देर नहीं हुई। उन्होंने इसकी वजह बीजेपी से लिस्ट नहीं मिलना बतायी। नीतीश कुमार का ऐसा बयान 25 दिनों में दोबारा आया है। इससे पहले 15 दिसंबर को भी उन्होंने यही बात कही थी।
नीतीश कुमार का यह बयान तब आया है जब बिहार में जेडीयू और बीजेपी के संबंधों में खटास की चर्चा जोरों पर है। खासकर इस वजह से भी कि बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि बीजेपी नीतीश कुमार का कद छोटा करने में लगी है और उन्हें स्वतंत्र रूप से फैसले नहीं करने दे रही है।
नीतीश के हाथ बांधने की कोशिश
सबसे पहले जब नीतीश कुमार के साथ एनडीए सरकार में लगातार उपमुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी को बीजेपी ने बिहार से हटाया और राज्यसभा सांसद बनाकर उनकी नाराजगी कम करने की कोशिश की तो यह माना गया कि उनकी जोड़ी तोड़कर बीजेपी नीतीश कुमार के लिए स्थिति को असहज कर रही है। अब नीतीश कुमार ने इस बारे में यह बयान दिया है कि सुशील मोदी को बिहार लाना या नहीं लाना बीजेपी के हाथ में है। उनका कहना था कि उनका साथ बरसों पुराना है लेकिन सुशील मोदी को बिहार लाये जाने के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। यह बयान भी नीतीश कुमार की बेबसी को उजागर करता है।
बिहार के सियासी हालात पर देखिए चर्चा-
नीतीश को बीजेपी की ओर से दो उप मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी स्वीकार करना पड़ा और दोनों के आरएसएस से जबरदस्त लगाव को देखते हुए उनके लिए यह असहज करने वाली बात मानी गयी। इसी तरह उनके पुराने कैबिनेट सहयोगी और बीजेपी नेताओं नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार को मंत्री नहीं बनाया गया तो यह भी नीतीश की पसंद की बात नहीं थी।
नीतीश कुमार और बीजेपी में खटपट की बात मंत्रिमंडल विस्तार तक सीमित नहीं है बल्कि यह तो उसकी शुरुआत है। विभागों का बंटवारा भी दोनों के बीच असहजता का कारण बना हुआ है।
बीजेपी के नेता गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी को हटाने की बात कह रहे थे। नीतीश कुमार ने इस पद से आमिर सुबहानी की जगह दूसरे आईएएस अधिकारी के नाम की घोषणा की। यह विभाग शुरू से नीतीश कुमार के पास रहा है लेकिन बीजेपी के नेता चाहते हैं कि नीतीश इस विभाग को छोड़ दें।
इसी तरह बीजेपी की ओर से यूपी की तर्ज पर बिहार में भी लव जिहाद क़ानून की मांग की गयी है। इसके जवाब में जेडीयू के सीनियर लीडर केसी त्यागी को कहना पड़ा कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है और इससे जीवनसाथी चुनने का संवैधानिक अधिकार छिनता है। इधर, बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि आलाकमान जल्द ही इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात करेगा। उनके अनुसार मुख्यमंत्री ने जो चिंता जतायी है उसका समाधान जल्द ही कर लिया जाएगा।
बीजेपी नेता यह नहीं बता रहे कि आखिर लिस्ट देने में इतनी देर क्यों हो रही है लेकिन सूत्र बताते हैं कि बीजेपी को मंत्री चुनने में जातीय समीकरण बैठाने में दिक्कत हो रही है। इसकी एक और बड़ी वजह यह भी बतायी जा रही है कि कांग्रेस के जिन विधायकों के बीजेपी में शामिल होने की चर्चा है या बीजेपी जिन कांग्रेसी विधायकों को लाना चाहती है उनका नाम कैबिनेट के लिए कैसे प्रस्तावित किया जाए।
फिर होगी उठापटक
इस बीच, तेजस्वी यादव ने एक बार फिर बिहार में मध्यावधि चुनाव की तैयारी की बात कर राजनीति को गरमा दिया है। पिछले दिनों वे पटना से बाहर थे तो उनपर दिल्ली में सैर करने का आरोप लगा था। तेजस्वी के इस बयान को जेडीयू के नेता नकार रहे हैं और बीजेपी से अरुणाचल समेत मिली अनेक चोटों के बावजूद बिहार में सबकुछ ठीक बता रहे हैं। जो भी हो, अगले कुछ दिनों में बिहार की राजनीति में फिर उठापटक देखने को मिल सकती है।