केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असम विधानसभा चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए असम के लोगों को चेतावनी दी कि आंदोलन करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, सिर्फ़ शहीदों की संख्या बढ़ेगी। शाह के इस बयान से असमिया समाज स्वाभाविक रूप से आहत हुआ है और विभिन्न नागरिक संगठनों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (अजायुछाप) और असम जातीय परिषद (एजेपी) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान की कड़ी आलोचना की है जिसमें उन्होंने कहा था कि आंदोलन से विकास की प्रक्रिया बाधित होती है।
आसू के अध्यक्ष दीपांक कुमार नाथ और महासचिव शंकर ज्योति बरुवा ने एक संयुक्त बयान में कहा, ‘केंद्रीय गृह मंत्री ने असम के आंदोलन और असम के शहीदों के ख़िलाफ़ इस तरह अपमानजनक टिप्पणी कर अपनी फासीवादी मानसिकता का परिचय दिया है।’
आसू के नेताओं ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने अब तक असम के लोगों को आंदोलन किए बगैर कोई अधिकार नहीं दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री ने मोदी सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा की गई सिफारिशों के कार्यान्वयन के संबंध में एक भी शब्द क्यों नहीं कहा? असम के लोगों की तरफ़ से शुरू किए गए प्रत्येक अहिंसक लोकतांत्रिक आंदोलन में कई लोग शहीद होते रहे हैं। यहाँ तक कि सीएए विरोधी आंदोलन में भी पिछले साल असम में पाँच व्यक्ति शहीद हुए।’
अजायुछाप के महासचिव पलाश चंगमाई ने कहा,
“
ब्रह्मपुत्र घाटी के युवा मौत से डरते नहीं हैं। अमित शाह जैसे नेताओं को यह पता नहीं है कि शहीद क्या होता है। यह बिल्कुल भी आश्चर्य की बात नहीं है। शाह यहाँ तनाव पैदा करने आए थे।
पलाश चंगमाई, महासचिव, अजायुछाप
उन्होंने आगे कहा, ‘वह असम में आग लगाकर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वोटों की फ़सल काटना चाहते हैं। यदि केंद्र सीएए को लागू करता है तो असम की जनता सड़कों पर उतरेगी जैसा कि 11 दिसंबर, 2019 को हुआ था। हम असम में सीएए के कार्यान्वयन की अनुमति नहीं देंगे।’
एजेपी अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने मीडिया को बताया, ‘इस तरह की टिप्पणी करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़िलाफ़ आचरण किया है और लोगों को शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक आंदोलन के अधिकारों से वंचित करने की मंशा ज़ाहिर की है। उन्होंने शहीदों के बलिदान और राज्य की जनता का उपहास किया है।’
ग़ौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को उत्तर गुवाहाटी में बीजेपी के 2021 असम चुनाव अभियान की शुरुआत की। इस मौक़े पर राजनीतिक दलों को पछाड़ने की रणनीति तय की। इसके साथ ही उन्होंने शैक्षणिक परियोजनाओं की शुरुआत की और वैष्णव समुदाय को लुभाने के लिए नई योजना शुरू की।
रोज़गार और उद्योगों का वादा करते हुए शाह ने कहा कि राज्य में पिछले साल बड़े पैमाने पर हुए सीएए विरोधी आंदोलन से असम को कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
उन्होंने कामरूप ज़िले के अमीनगांव में एक शिलान्यास समारोह में कहा, ‘वे (नई पार्टियाँ) कभी सरकार नहीं बना सकते। वे बीजेपी के वोटों को बर्बाद करना चाहते हैं और कांग्रेस को जीतने में मदद करना चाहते हैं... वे कुछ नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ असम में सरकार बनाएगी।’
शाह के निशाने पर जो नए राजनीतिक दल थे उनके नाम हैं- 1. असम जातीय परिषद (एजेपी)- इसकी स्थापना राज्य के दो सबसे शक्तिशाली छात्र-युवा संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (AJYCP) ने किया है और 2. राइजर दल- इसकी स्थापना किसान अधिकार संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति ने की है, जिसके नेता अखिल गोगोई जेल में बंद हैं। दोनों नई पार्टियों का जन्म सीएए-विरोधी आंदोलन की कोख से हुआ है।
शाह ने कहा, ‘मुझे बताइए, जो लोग आंदोलन करते हैं, या जो कांग्रेस पार्टी असम के युवाओं पर गोलियाँ चलाती है, क्या वे कभी असम में निवेश और उद्योग ला सकते हैं?’ उन्होंने कहा, ‘मैं पूछना चाहता हूँ कि असम ने आंदोलन (विरोध) के माध्यम से क्या हासिल किया है? क्या असम का विकास हुआ है, क्या रोज़गार उत्पन्न हुआ है? क्या असम के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएँ मिलीं? क्या लोगों को रोज़गार मिला? क्या असम का बुनियादी ढाँचा विकसित हुआ? केवल यही हुआ कि असम के जवान शहीद हो गए।’
126 सदस्यीय असम विधानसभा के चुनाव अगले साल की शुरुआत में होंगे।
इस बीच एजेपी ने शनिवार शाम एक बयान दिया, जिसमें पूछा गया कि असम में विरोध के बावजूद सीएए को लाने के लिए कौन जिम्मेदार था और इसके परिणामस्वरूप ही असम के लोगों को विरोध में सड़क पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
शाह ने कहा कि असम में दो प्रमुख मुद्दे हैं- घुसपैठ और बाढ़। उन्होंने यह भी कहा, ‘आप मुझे बताएँ, क्या कांग्रेस और अन्य पार्टियाँ घुसपैठ रोक सकती हैं? बीजेपी सरकार द्वारा ही घुसपैठ को रोका जा सकता है। घुसपैठ हमारी संस्कृति, हमारे साहित्य को प्रभावित करती है, युवाओं से अवसर छीनती है और हमारे विकास को बाधित करती है।’
असम की वैष्णव धरोहर पर ध्यान केंद्रित करते हुए शाह ने वैष्णव सुधारक श्रीमंत शंकरदेव की जन्मस्थली बरदोवा थान को विकसित और सुशोभित करने के लिए 188 करोड़ रुपये की परियोजना की आधारशिला रखी।
शाह जिस नई पार्टी की बात कर रहे हैं, उसने विवादास्पद नागरिकता क़ानून को अपनी राजनीतिक संघर्ष का आधार बना दिया है। और जैसा कि वे पिछले साल बड़े पैमाने पर हुए सीएए विरोधी आंदोलन को भुनाना चाह रही हैं, विपक्षी कांग्रेस ख़ुद को एक अप्रत्याशित स्थिति में पाती है। अनुभवी नेता तरुण गोगोई के देहांत के बाद, पार्टी आंतरिक क़लह से उबरने के लिए संघर्ष कर रही है। कांग्रेस भी बीजेपी के ख़िलाफ़ महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है।
शाह ने औपचारिक रूप से असम दर्शन योजना के तहत 8,000 नामघरों (वैष्णव उपासना गृह) को 2.5 लाख रुपये की वित्तीय सहायता वितरित की। नामघरों को सामुदायिक केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा और परियोजना के लिए निर्धारित कुल राशि 200 करोड़ रुपये है।
उन्होंने कहा, ‘मैं मुख्यमंत्री (सर्बानंद सोनोवाल) और वित्त मंत्री (हिमंत विश्व शर्मा) को बधाई देना चाहता हूँ। आपने जो काम किया है, उसके कारण असम के गाँवों के अंदरूनी हिस्सों में जो लोग कभी अलगाववाद की भाषा बोलते थे, अब भक्ति के माध्यम से एकजुट होंगे। नामघर का संदेश गुरु शंकरदेव का संदेश असम को भारत और दुनिया के साथ एकजुट करेगा।’
ज़ाहिर है शाह असम के हिंदू तबक़े को अपनी तरफ़ लाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। उन्हें पता है कि पाँच साल सरकार में रहने से बीजेपी के ख़िलाफ़ नाराज़गी हो सकती है। लेकिन आंदोलनकर्मियों के शहीद होने की बात कह उन्होंने भावनाओं को आहत किया है। क्या इसकी क़ीमत चुनाव में बीजेपी चुकायेगी, यह देखने वाली बात होगी!