इस लोकसभा चुनाव के बीच ही कलकत्ता हाईकोर्ट के कई फ़ैसले सुर्खियों में रहे हैं। इन फ़ैसलों से टीएमसी नाराज़ भी हुई और बीजेपी के ख़िलाफ़ कई गंभीर आरोप भी लगाए। चाहे वो सुवेंदु अधिकारी के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने से पहले हाईकोर्ट से अनुमति लेने का मामला हो या फिर पूरे राज्य के ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द करने का मामला या फिर 25 हज़ार स्कूली शिक्षक और स्टाफ़ की नियुक्तियों पर रोक का फ़ैसला। हर फ़ैसले का बीजेपी ने इस चुनाव में फायदा उठाया है।
ताज़ा मामला सुवेंदु अधिकारी से जुड़ा है। कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस अमृता सिन्हा ने पिछले हफ़्ते शुक्रवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता और भारतीय जनता पार्टी के विधायक सुवेंदु अधिकारी के आवास-सह-कार्यालय में कथित तौर पर पाए गए हथियारों और बड़ी मात्रा में नकदी के संबंध में शिकायतों की जांच करने से पश्चिम बंगाल पुलिस को रोक दिया।
चुनाव आयोग के मानक के अनुसार किसी भी पार्टी कार्यकर्ता के पास पाए जाने वाले 50,000 रुपये से अधिक की नकदी को कब्जे में ले लिया जाना चाहिए, क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि मतदाताओं को लुभाने के लिए इसका इस्तेमाल कर लिया जाए। स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार हाईकोर्ट ने इस मामले में अधिकारी के ख़िलाफ़ किसी भी जाँच पर 17 जून तक रोक लगा दी है। जब यह फ़ैसला आया था तब दो चरणों के चुनाव बाक़ी थे। हालाँकि अब एक चरण का चुनाव ही बाक़ी है।
हाईकोर्ट की मंजूरी के बिना FIR नहीं
स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2022 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के जस्टिस राजशेखर मंथा ने एक अभूतपूर्व आदेश में न केवल अधिकारी के खिलाफ दर्ज 17 एफ़आईआर पर रोक लगा दी थी, बल्कि आदेश दिया कि अधिकारी के खिलाफ दर्ज की जाने वाली किसी भी नई एफ़आईआर के लिए पुलिस को पहले उच्च न्यायालय की अनुमति लेनी होगी।
एफ़आईआर यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज किए बिना, पुलिस किसी कथित अपराध की शिकायत की जांच नहीं कर सकती। रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस मंथा का तर्क यह था कि अधिकारी के खिलाफ सभी शिकायतें राजनीति से प्रेरित थीं, उनका उद्देश्य उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में बाधा डालना और उन्हें अपने सार्वजनिक कार्यों का निर्वहन करने से रोकना था।
25 हज़ार स्कूली नौकरियों पर रोक
कोलकाता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया था। उच्च न्यायालय ने सीबीआई को आगे की जांच करने और उन सभी व्यक्तियों से पूछताछ करने का निर्देश दिया था, जिन्होंने नियुक्ति पैनल के ख़त्म होने के बाद और खाली ओएमआर शीट जमा करने के बाद नियुक्तियाँ पाई थीं। यह लोकसभा चुनाव के पहले चरण के ठीक तीन दिन बाद आया।
इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने 25 हज़ार स्कूली नौकरियों को रद्द करने वाले कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश पर फ़िलहाल रोक लगा दी है। यह निर्णय उन हजारों व्यक्तियों के लिए राहत के रूप में आया, जिनकी नौकरियां 22 अप्रैल को उच्च न्यायालय के फैसले के बाद ख़तरे में थीं। हालाँकि, इसके साथ ही अदालत ने कहा है कि सीबीआई जाँच पर रोक नहीं लगेगी और यह जारी रहेगी।
जब तक सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया तब तक बीजेपी ने राज्य सरकार के खिलाफ उच्च न्यायालय की टिप्पणियों को लेकर टीएमसी पर ख़ूब भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।
2010 के बाद सभी ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द
क़रीब हफ़्ते भर पहले ही कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक बड़े फ़ैसले में 2010 के बाद से बंगाल में जारी ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद्द कर दिया है। इससे क़रीब 5 लाख ओबीसी सर्टिफिकेट पर असर पड़ने की संभावना है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह इस फ़ैसले को नहीं स्वीकार करेंगी।
ओबीसी प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर अदालत ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 के आधार पर पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा ओबीसी की एक नई सूची तैयार की जाए।
फ़ैसले ने बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदायों को 'चुनावी लाभ के लिए' ओबीसी के रूप में अधिसूचित करने और मुसलमानों को 'राजनीतिक उद्देश्यों के लिए एक वस्तु' के रूप में मानने के लिए राज्य सरकार की आलोचना की। यह चुनाव के छठे चरण से ठीक तीन दिन पहले हुआ।
भले ही बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का वादा किया है, लेकिन भाजपा ने इस फ़ैसले का इस्तेमाल तृणमूल कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर हमला करने के लिए किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दोनों ने इस फैसले पर भरोसा करते हुए आशंका जताई है कि यदि इंडिया गठबंधन को वोट दिया गया तो वह अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों के अलावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से आरक्षण का लाभ छीन लेगा और उन्हें मुसलमानों को सौंप देगा।