जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लोबल वार्मिंग घातक होने वाला है! इस बार अक्टूबर की गर्मी भी इसका कुछ संकेत दे रही है। ब्रिटेन में इस मौसम में भी 22 डिग्री तापमान है। क्या यह सामान्य घटना है? इस सदी के आख़िर तक तो हालात बेहद ख़राब होने की आशंका है। औद्योगीकरण के पूर्व के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ने का आकलन किया गया है। नए शोध में भविष्यवाणी की गई है कि इस वजह से सदी के अंत तक दिल का दौरा और हीट स्ट्रोक के मामले बेहद घातक होंगे। इसमें भी भारत और पाकिस्तान सहित दुनिया के कुछ सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में स्थिति ज़्यादा ख़तरनाक होगी।
शोध में कहा गया है कि यदि पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री तक बढ़ गया तो भारत और पाकिस्तान की ही क़रीब 220 करोड़ की आबादी प्रभावित होगी। इसके अलावा चीन की 100 करोड़ और उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र के 80 करोड़ लोग गंभीर हालात का सामना करेंगे। जो शहर इस मुश्किल हालात का खामियाजा भुगतेंगे उनमें दिल्ली, कोलकाता, शंघाई, मुल्तान, नानजिंग और वुहान जैसे शहर शामिल होंगे।
यह शोध पेन स्टेट कॉलेज ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट, पूर्ड्यू यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंसेज और पूर्ड्यू इंस्टीट्यूट फॉर ए सस्टेनेबल फ्यूचर ने किया है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में शोध प्रकाशित हुआ है।
शोध में कहा गया है कि यदि पृथ्वी की ग्लोबल वार्मिंग औद्योगीकरण के पूर्व के स्तर से 3 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा हो जाती है तो ग्लोबल वार्मिंग का अमेरिका के भी अधिकतर हिस्सों, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक पर भी बेहद ख़राब असर होगा।
शोध में कहा गया है कि मानव शरीर गर्मी और आर्द्रता के निश्चित स्तर ही सह सकता है और ज़्यादा गर्मी होने पर हीट स्ट्रोक या दिल का दौरा पड़ने जैसी स्वास्थ्य दिक्कतें बढ़ेंगी। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार शोध में कहा गया है कि इसका असर भारत, पाकिस्तान, चीन जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ज़्यादा होगा क्योंकि लोगों के पास एयर-कंडीशनर या अपने शरीर को ठंडा करने के अन्य तरीकों तक पहुंच नहीं हो सकती है। अमीर देशों में काफ़ी हद तक अधिकतर लोगों तक इसकी पहुँच हो सकती है। विकसित देशों में लोग विकासशील देशों की तुलना में कम पीड़ित होंगे।
शोधकर्ताओं ने कहा है कि तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा। खासकर जीवाश्म ईंधन जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम किया जाना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर रिपोर्टें लगातार गंभीर संकट की चेतावनी दे रही हैं। दो साल पहले ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन में भी इसको लेकर चेतावनी दी गई थी। औसत तापमान 1.1 डिग्री पार कर चुका है और यदि 2030 तक गैसों के उत्सर्जन में 45% की कटौती नहीं की गई तो यह 2.4 डिग्री तक जा सकता है।
कार्बन कटौती की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले यूरोपीय संघ, जापान और अमेरिका जैसे देश 2030 तक अपनी ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ोतरी बंद करने के ही वायदे कर रहे हैं, घटाने के नहीं। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने 2050 तक नेट ज़ीरो बनने का लक्ष्य रखा है। चीन ने 2060 तक और भारत ने 2070 तक। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि यह मान भी लिया जाए कि सारे देश जो कह रहे हैं उसपर अमल भी करेंगे, तो भी 2030 तक गैसों का उत्सर्जन 14% बढ़ जाएगा। जबकि तापमान को 1.5 डिग्री से नीचे रखने का लक्ष्य पूरा करने के लिए 2030 तक हमारा उत्सर्जन 45% घट जाना चाहिए।