उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माने जा रहे उपचुनावों में सफलता हासिल कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न केवल साख बचाई है, बल्कि एंटी-इनकंबेंसी के दावों को भी भोंथरा किया है। मंगलवार को उत्तर प्रदेश में जिन 7 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव के नतीजे आए हैं, उसने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की आगे की तैयारियों की बानगी दी है, वहीं विपक्ष को भी आईना दिखाने का काम किया है। तमाम दावों के बाद भी विपक्ष को इन उपचुनावों में सफलता नहीं मिल सकी। प्रदेश में विकल्प होने का दावा कर रही सपा हो या बसपा, सभी को मुंह की खानी पड़ी है।
बीजेपी की पकड़ बरक़रार
बीजेपी ने 7 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनावों में 6 सीटें जीतकर अपनी पहले की स्थिति बरक़रार रखी है, जबकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को एक सीट मिली है। प्रियंका गांधी के प्रदेश का प्रभारी बनने से उत्साहित कांग्रेस ने कोई सीट तो नही जीती, पर उसने कई जगह मुख्य मुक़ाबले में आकर अपना दम दिखाया। उपचुनावों में भारी जीत का दावा कर रही सपा को निराशा हाथ लगी है, जबकि बहुजन समाज पार्टी की कई सीटों पर बुरी गत हुई है।
उपचुनाव में 6 सीटों पर बीजेपी का दबदबा रहा तो सपा अपनी इकलौती जौनपुर की मल्हनी सीट बचा पाई। सात सीटों के लिए उपचुनावों में छह सीटें बीजेपी तो एक सीट सपा के पास थी।
उत्तर प्रदेश में खुद को सशक्त विपक्ष के तौर पर पेश करने वाली और अगले विधानसभा चुनावों में सरकार बनाने का दावा करने वाली बसपा का हाल इन उपचुनावों में बुरा रहा। पार्टी केवल एक सीट पर ही मुख्य मुकाबले में रही, जबकि कई जगहों पर वह कांग्रेस से भी नीचे पहुंच गई।
बसपा ने पहली बार उपचुनावों में अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। मायावती का सपा को हराने के लिए पहले बीजेपी के समर्थन का एलान और फिर उस पर सफाई ने उसे अल्पसंख्यक मतदाताओं से दूर कर दिया।
प्रदेश में अकेले बुंलदशहर की सीट पर ही उसके प्रत्याशी ने कुछ मुक़ाबला किया। बांगरमऊ, मल्हनी जौनपुर सीटों पर तो बसपा चौथे स्थान पर सरक गयी।
कांग्रेस की साख दाँव पर
कांग्रेस में आंशिक सुधार कोरोना काल के दौरान सत्तापक्ष पर हमला तथा सरकार का प्रवासी मजदूरों को रोज़गार से लेकर लोगों की चिकित्सा के इंतजाम तथा लोगों की सेवा के लिए किए गए कामों के दावे भी इन उपचुनाव के नतीजों की कसौटी पर परखे जाने थे। प्रदेश में राहुल-प्रियंका की सक्रियता पर जनता के रुझान का पता चलना था।कुछ घटनाओं को लेकर विपक्ष की तरफ से ब्राह्मणों की उपेक्षा व उत्पीड़न को लेकर सरकार की घेराबंदी तथा हाथरस जैसी घटनाओं के सहारे विपक्ष, खास तौर से कांग्रेस व भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर की पार्टी का सरकार को कठघरे में खड़ा करना तथा क़ानून-व्यवस्था के मुद्दे पर उठाए गए सवालों का जनता में असर भी इन नतीजों से ही सामने आना था।
कांग्रेस ने इन उपचुनावों में ज़रूर अपनी स्थिति में सुधार किया है, कम से कम दो जगहों पर वह मुख्य मुक़ाबले में रही और मत प्रतिशत में भी सुधार हुआ है।
योगी : लगी जनता की मुहर
नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि विधानसभा चुनाव और उपचुनाव के रुझानों से एक बार फिर से साबित हो गया, ‘मोदी है तो मुमकिन है’। उन्होंने कहा कि बीजेपी पर देश की जनता को भरोसा है और इस बात पर जनता ने एक बार फिर से मुहर लगा दी है।उन्होंने कहा कि यूपी में प्रदेश संगठन जिस तरह से एक टीम भावना से काम कर रही है, कोविड-19 में जिस तरह से सेवा कर रही है यह उसी का परिणाम है। योगी ने कहा कि बीजेपी ने 2017 के परिणाम को दोहराया है, 2019 में जिस तरह से बीजेपी ने प्रदर्शन किया था, आज उसी तर्ज पर अगले चुनाव का संकेत दिए हैं।
सात सीटों पर हुए थे उपचुनाव
जिन सीटों पर चुनाव हुए थे इनमें से नौगावां सादात सीट योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान की मृत्यु तो घाटमपुर सीट मंत्री कमलरानी वरुण और बुलंद शहर व देवरिया सदर सीट विधायकों के दिवंगत होने के चलते खाली हुई थी। समाजवादी पार्टी के विधायक पारसनाथ यादव की मृत्यु के चलते जौनपुर जिले की मल्हनी सीट पर उपचुनाव हो रहे थे।अयोग्य साबित होने के नाते बांगरमऊ में उपचुनाव हुआ तो अदालती विवाद में फंसी टूंडला सीट पर भी उपचुनाव संपन्न हुए हैं। इनमें से बुलंदशहर, नौगावां सादात पर ही बीजेपी ने दिवंगत विधायकों के परिजनों को टिकट दिया था जबकि बाकी की सीटों पर पुराने कार्यकर्त्ता या जिताउ प्रत्याशी को उतारा था।