यूपी: बीजेपी के जाट नेताओं का विरोध, अपनों के बीच ही जाना मुश्किल

02:07 pm Feb 22, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

किसान आंदोलन ने जाट समुदाय में ऐसा ज्वार पैदा कर दिया है जिससे निपटना बीजेपी के लिए बेहद मुश्किल हो रहा है। बीजेपी के दिग्गज नेताओं को अपने ही संसदीय क्षेत्रों में अपने ही लोगों के बीच विरोध का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी से जुड़े जाट नेताओं का अपनी ही बिरादरी के बीच में उठना-बैठना मुश्किल हो गया है। 

बात हो रही है मुज़फ्फरनगर के सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की। बालियान रविवार को बीजेपी आलाकमान के आदेश पर शामली के एक एक गांव में किसानों के बीच पहुंचे थे। 

लेकिन संजीव बालियान को किसानों ने घेर लिया। उनसे गन्ने के समर्थन मूल्य, पेट्रोल, डीजल के बढ़े दामों और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट कब लागू होगी, इसे लेकर सवाल पूछे गए। किसानों ने कहा कि वे केंद्र तक उनकी आवाज़ को पहुंचाएं।  बालियान जब ऐसी ही एक बैठक से निकल रहे थे तो संजीव बालियान मुर्दाबाद के नारे लगे। 

2019 के चुनाव में इस सीट से दिग्गज नेता चौधरी अजित सिंह को हरा चुके और लगातार दो जीत हासिल कर चुके बालियान को क़तई ऐसी उम्मीद नहीं रही होगी। 

बीजेपी ने भेजे जाट नेता

लगातार बढ़ रहे आंदोलन को देखते हुए कुछ दिन पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किसान आंदोलन से प्रभावित राज्य हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बीजेपी विधायकों और सांसदों की बैठक बुलाई थी। इसके अलावा इन इलाक़ों के जाट नेताओं को भी इस बैठक में बुलाया गया था। बैठक की अहमियत का अंदाजा इससे लगता है कि इसमें गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल रहे थे। इसमें जाट नेताओं से कहा गया था कि कि वे किसान और खाप पंचायतों के पास जाएं, उनसे बात करें और कृषि क़ानूनों को लेकर बने भ्रम को दूर करें। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बालियान जाटों की सबसे बड़ी खाप है। किसान नेता राकेश टिकैत भी इसी खाप से आते हैं। 

बालियान का पलटवार

किसानों के तेवरों से घबराए दिखे संजीव बालियान ने पलटवार करने की कोशिश की। उन्होंने पत्रकारों से कहा, “यह आंदोलन किसानों का है न कि खापों का। अगर यह किसानों का आंदोलन है तो फिर इसमें खापों की एंट्री का क्या मतलब है या तो इसे खाप का आंदोलन कहा जाए या फिर किसानों का।” बालियान ने कहा कि वे किसानों की बातों को सरकार तक पहुंचाएंगे।  

जाट आंदोलन का तंज

पंजाब से निकलकर हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में जड़ें जमा चुके किसान आंदोलन में बड़ी भागीदारी जाट नेताओं की है। ये जाट नेता किसानों की राजनीति भी करते हैं, खापों के चौधरी भी हैं और राजनीतिक दलों में भी शामिल हैं। इसलिए बीजेपी के लिए मुश्किल इन तीनों राज्यों में है। दूसरी जातियों के लोग तंज कसते हुए कहते हैं कि ये किसान नहीं जाट आंदोलन है हालांकि ऐसा नहीं है। 

पश्चिमी यूपी में बीजेपी के 11 जाट विधायक हैं। मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद राष्ट्रीय लोकदल को छोड़कर उसके साथ आए जाटों के दम पर उसे ख़ूब जीत मिली लेकिन अब इस समुदाय के साथ छोड़ने का डर उसे सता रहा है।

वेस्ट यूपी में अहम क्यों हैं जाट?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी 17 फ़ीसदी है। मेरठ से लेकर बाग़पत और बिजनौर से लेकर अमरोहा और बाक़ी जिलों तक इस आबादी का ख़ासा दबदबा है। किसानों के सबसे बड़े नेता महेंद्र सिंह टिकैत यहीं से निकले और चौधरी चरण सिंह भी इसी धरती से निकलकर देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। दोनों ही जाट समुदाय से थे, ऐसे में जाट समुदाय का यहां अच्छा सियासी आधार है और किसान आंदोलन ने युवा जाट आबादी में करंट पैदा कर दिया है। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिले ऐसे हैं, जहां उत्तर प्रदेश की कुल जाट आबादी के 96 फ़ीसदी लोग रहते हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि इस समुदाय के बीच बीजेपी नेताओं का विरोध होना इस इलाक़े में पार्टी को कितना भारी पड़ सकता है। 

एक ओर बीजेपी के जाट नेताओं का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विरोध हो रहा है, वहीं चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी को अच्छा-खासा समर्थन मिल रहा है। इससे बीजेपी की चिंता और बढ़ गई है। 

सुखबीर, बेनीवाल निकले बाहर

जाट समुदाय की नाराज़गी के डर को भांपते हुए ही सुखबीर बादल और हनुमान बेनीवाल एनडीए से बाहर निकल आए जबकि अब तक बीजेपी के साथ खड़े दुष्यंत चौटाला पर किसान और जाट जमकर सियासी तीर चला रहे हैं। ये तीनों ही नेता जाट समुदाय से आते हैं। 

पंजाब और हरियाणा के स्थानीय निकाय के चुनाव नतीजे बताते हैं कि बीजेपी का जाट बिरादरी में विरोध बढ़ रहा है। इन राज्यों में सिख और हिंदू जाट मतदाता संख्या और ताक़त के लिहाज से बेहद मजबूत हैं और वे कृषि क़ानूनों को लेकर बीजेपी से अपनी नाराज़गी को खुलकर जाहिर कर रहे हैं।

2022 में हार का डर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट नेताओं का विरोध होना बीजेपी के लिए चिंतित करने वाला इसलिए भी है क्योंकि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव होने वाले हैं। 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद बीजेपी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगातार राजनीतिक फसल काटी है। लेकिन किसान महापंचायतों ने इस फ़सल पर ट्रैक्टर चला दिया है। बीजेपी को पंचायत चुनावों में राजनीतिक नुक़सान होने का डर है और अगर ऐसा हुआ तो साल भर के अंदर होने वाले विधानसभा चुनाव में उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जबरदस्त नुक़सान हो सकता है और यह योगी सरकार की विदाई का कारण बन जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।