ज्ञानवापी मसजिद मामले में अदालती फ़ैसले को चुनौती देगा सुन्नी वक्फ बोर्ड

11:03 am Apr 09, 2021 | कुमार तथागत - सत्य हिन्दी

वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मसजिद के मामले में जिला अदालत के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से खुदाई करवाने के फ़ैसले को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड चुनौती देगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने तीन दशक पुरानी एक याचिका को लेकर गुरुवार को आए वाराणसी जिला अदालत के फ़ैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का एलान किया है। 

जिला अदालत में दायर एक याचिका में कहा गया था कि वाराणसी में ज्ञानवापी मसजिद का निर्माण एक धार्मिक स्थल के अवशेषों पर किया गया है। याचिका में कहा गया था कि औरंगजे़ब ने प्राचीन भगवान विश्वेश्वर का  मंदिर तोड़कर उसके खंडहर के ऊपर मसजिद का निर्माण किया था। अदालत ने इस मामले में अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को मसजिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण करना चाहिए।

आदेश अनुचित, जांच की प्रथा गलत

सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर अहमद फारूकी ने कहा है कि एएसआई द्वारा मसजिदों की जांच की प्रथा को रोकना होगा। हम इस अनुचित आदेश के खिलाफ तुरंत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। उन्होंने कहा कि हमारी समझ साफ है कि इस मामले को पूजा के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा रोक दिया गया है। उपासना अधिनियम को अयोध्या के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने बरकरार रखा है। ज्ञानवापी मसजिद की स्थिति, किसी तरह के प्रश्न से परे है। 

उन्होंने कहा, “कानूनी सलाह के अनुसार कह सकते हैं कि सर्वेक्षण का आदेश उचित नहीं है क्योंकि तकनीकी प्रमाण केवल कुछ मूलभूत तथ्यों को ही पूरा कर सकते हैं। इस मामले में पहले से कोई सबूत पेश नहीं किया गया है कि मसजिद के स्थल पर पहले से मौजूद मंदिर था।” 

अयोध्या मामले में फायदा नहीं हुआ 

जुफर फारुकी ने कहा कि अयोध्या के फ़ैसले में भी, एएसआई की खुदाई का कोई फायदा नहीं हुआ। एएसआई को इस बात का सबूत नहीं मिला कि बाबरी मसजिद किसी मंदिर को तोड़ने पर बनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से देखा है कि ऐसा कोई सबूत नहीं था। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मामले में अदालत का फ़ैसला नए सिरे से विवाद को जन्म देने वाला है। यह कानून सम्मत नहीं है और देश भर में गलत परिपाटी की भी शुरुआत करेगा। 

सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने कहा कि इस प्रथा को रोकना होगा वरना हर इस तरह के मामले में नयी बहस और परंपरा की शुरुआत हो जाएगी।

मथुरा को लेकर भी दायर है याचिका

उधर, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर भी हिन्दू पक्षकारों ने याचिकाएं दायर कर रखी हैं जिन पर सुनवाई चल रही है। मथुरा में शाही ईदगाह को कृष्ण जन्मभूमि बताते हुए इसे वापस लेने का दावा किया जाता रहा है। मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने के नाम पर एक ट्रस्ट बनाकर आंदोलन चलाने की भी कोशिश की गयी है। मथुरा कृष्ण जन्मभूमि के विवाद का मुकदमा लड़ने के लिए हिन्दू पक्षकारों की ओर से उन्हीं वकीलों की सेवाएं ली गयी हैं जिन्होंने बाबरी मसजिद-राम जन्मभूमि का मुकदमा लड़ा था। 

सुन्नी वक्फ बोर्ड से जुड़े उलेमाओं का कहना है कि अयोध्या विवाद के शांत होने के बाद अब नए सिरे से प्रदेश में विवादों को जन्म देने की कोशिश की जा रही है। मथुरा और वाराणसी इसके अगले निशाने हो सकते हैं।

जिला अदालत का आदेश

ज्ञानवापी मामले में वाराणसी जिला अदालत ने एएसआई के महानिदेशक को आदेश दिया है कि वे पांच सदस्यों की एक कमेटी गठित करें और ये वे लोग होने चाहिए जो विशेषज्ञ हों और पुरातत्व विज्ञान के अच्छे जानकार हों और इनमें से दो लोग अल्पसंख्यक समुदाय से होने चाहिए। 

अदालत ने एएसआई के महानिदेशक से यह भी कहा कि वह किसी जानकार या शिक्षाविद को कमेटी के पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त करे। अदालत का कहना है कि पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश देने के पीछे मक़सद यह है कि इससे पता चलेगा कि विवादित स्थल पर जो धार्मिक ढांचा है क्या वह किसी के ऊपर रखा गया है, इसमें किसी तरह का परिवर्तन किया गया है या जोड़ा गया है या फिर एक ढांचे को परस्पर दूसरे के ऊपर या साथ में रखा गया है।