जूते का ब्रांड 'ठाकुर' था तो जेल भेजा, फजीहत के बाद छोड़ा

10:13 am Jan 06, 2021 | हरि शंकर जोशी - सत्य हिन्दी

बुलंदशहर पुलिस ने काफ़ी फजीहत के बाद 'ठाकुर' लिखा जूता बेचने वाले दुकानदार नासिर को छोड़ दिया है। पुलिस ने धार्मिक भावना भड़काने की धारा भी हटा ली है। सड़क किनारे ठिया लगाकर जूता बेचने वाले नासिर को इसलिए गिरफ़्तार कर लिया गया था कि जूते के तले पर 'ठाकुर' लिखा था। धार्मिक भावनाओं को आहत करने सहित कई धाराएँ लगाई गई थीं। नासिर का दावा था कि उसे नहीं पता था कि जूते पर जाति लिखी है।

जूते बेचने वाले का कुसूर सिर्फ़ इतना था कि उसका नाम नासिर है और साथ में अनपढ़ भी। वह तो सड़क पर पलंग बिछाकर साप्ताहिक मंगल बाज़ार में जूते बेचता है। उसे क्या मालूम था कि वह जिन जूतों को बेचकर अपने परिवार का पेट भरता है वही जूते उसके सिर पर पड़ने की नौबत आ जाएगी। इतना ही नहीं, उसे सलाखों के पीछे जेल की हवा भी खानी पड़ेगी।

मामला बुलंदशहर के गुलावठी कस्बे का है जहाँ बजरंग दल के एक नेता ने न केवल हंगामा किया बल्कि अपनी हनक दिखाते हुए उसे गिरफ्तार करा दिया था क्योंकि उन्हें यह नागवार गुजरा कि नासिर जो जूते बेच रहा था उसके तले पर 'ठाकुर' लिखा है।

अगर मामला बजरंग दल से जुड़ा हुआ न होता और बेचने वाला नासिर न होता तो पुलिस कभी हरकत में न आती। लोग कह रहे हैं कि यह भी सच है कि अगर कोई ठाकुर ही बेच रहा होता तो बजरंग दल के नेता ठाकुर साहब को जूते का तला दिखाई भी न देता। पर विशाल चौहान को जातिसूचक शब्द 'ठाकुर' पैरों तले होना अपमान लगा और उसने पहले जूते के सोल की वीडियो बनाई और बेचने वाले से उलझ गया। उसने पटरी पर जूते बेचने वाले को हड़काया। 

वायरल वीडियो में सुना जा सकता है कि साहब हमारा खाना क्यों बंद करा रहे हो। खाना यानी रोजी-रोटी। इस पर बजरंग दल से जुड़े चौहान साहब ने कहा कि तुम्हें ये जूते पहले ही हटा लेने चाहिए थे तो दुकानदार प्रतिरोध में बोल गया- जूते कोई मैं थोड़े ही बना रहा हूँ...।

नासिर का प्रतिउत्तर भी उसका अपराध था। लिहाज़ा नेता जी ने पुलिस को फ़ोन किया और पुलिस उसे पकड़कर थाने ले गई। जिन जूतों को वह बेच रहा था उन्हें जब्त कर लिया गया। नासिर और जूता बनाने वाली कम्पनी को अज्ञात लिखते हुए भारतीय दंड विधान संहिता की धारा 153-A, 323 और 504 के अंतर्गत प्राथमिकी यानी एफ़आईआर दर्ज कर ली गई। केस रजिस्टर्ड होने पर नासिर को हवालात में बंद कर दिया गया। हालाँकि, अब फजीहत के बाद पुलिस ने धारा 153-A को हटा लिया है।

ठाकुर ब्रांड के जूते प्रमुख ऑनलाइन शॉपिंग या ईकॉमर्स साइटों पर भी उपलब्ध हैं और सोशल साइट्स पर भी ठाकुर ब्रांड के जूते उपलब्ध हैं। आगरा की एक शू-सोप या कम्पनी ठाकुर ब्रांड के जूतों का निर्माण कराकर बेचती है। कभी इस ब्रांड पर किसी ने एतराज़ नहीं उठाया।

ज़ाहिर है कि इस ब्रांड का स्वामी कोई ठाकुर ही होगा और जब तमाम जातिसूचक शब्द दुकानों, कम्पनियों और ब्रांड्स में धड़ल्ले से प्रयोग होते हैं तब एक 'नासिर' के ख़िलाफ़ पुलिस ने क्यों आनन-फानन में मुक़दमा दर्ज कर लिया। 

क्या महज इसलिए कि नासिर साप्ताहिक मंगल बाज़ार में पटरी पर जूते बेचकर अपनी रोजी-रोटी चलाता था? 

क्या ग़रीबी-मजबूरी ही उसका एकमात्र जुल्म है या वह सत्ता के वर्तमान एजेंडे में फिट नहीं बैठता! 

क्या उससे क़ानून को कोई ख़तरा था या एक मुसलमान का 'ठाकुर' जूते बेचना ही अपराध है और समाज व देश के लिए सबसे बड़ा ख़तरा! 

जाहिर है ऐसे बहुत से सवाल लोग उठा भी रहे हैं लेकिन पुलिस की कार्रवाई को तो कोई क़ानूनविद या न्यायपालिका ही बताएगी कि यह कार्रवाई क़ानूनसम्मत है या नहीं लेकिन इसे कोई भी तर्कसंगत नहीं कह सकता सिवाय कुछ जुनूनी लोगों के।

इस पूरे प्रकरण और कार्रवाई को बुलंदशहर पुलिस ने पहले ट्वीट कर स्पष्ट किया था- ‘इस प्रकरण में वर्तमान विधि व्यवस्था के अनुसार जो सुसंगत था वह कार्रवाई की है, यदि पुलिस कार्रवाई न करती तो बहुत से लोग उल्टी/भिन्न प्रतिक्रिया देते। अतः पुलिस ने नियम का पालन किया है। कृपया इसे इसी रूप में देखें।’ 

हालाँकि इस मामले में बहुत से लोगों ने ट्वीट कर इस मामले की निंदा करते हुए लिखा है कि हिन्दू संगठनों ने धर्म की ठेकेदारी उठाते हुए नासिर की दुकान पर हंगामा किया और उसके ख़िलाफ़ मामला दर्ज करवा कर उसे गिरफ्तार करा दिया।

यहाँ ग़ौरतलब है कि प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री ने वाहनों पर जातिसूचक शब्द लिखे जाने वालों के ख़िलाफ़ नियमानुसार कड़ी कार्रवाई करने के आदेश दिए थे जिसके बाद कुछ ऐसी गाड़ियों के चालान भी किए गए लेकिन आज भी सड़क पर जातिसूचक शब्द लिखे वाहन धड़ल्ले से दौड़ते नज़र आते हैं। 

इतना ही नहीं, पार्टियों का झंडा लगाए खिड़कियों पर काली फ़िल्म चढ़े वाहनों को हूटर बजाते हुए हर जगह सड़कों पर देखा जा सकता है लेकिन नियमों की धज्जियाँ उड़ाने वाले दबंगों को देखकर वर्दी वाले अपना मुँह मोड़ कर खड़े हो जाते हैं। अदालतों के आदेशों के बाद भी पुलिस एक-दो दिन दिखावटी कार्रवाई कर इतिश्री करती नज़र आई है। तब क्या यह समझा जाए कि नासिर के ख़िलाफ़ हुई कार्रवाई आकाओं के सामने 'जी हुजूर' के दायरे में आती है।