ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजों से साफ है कि बीजेपी ने तेलंगाना में भी अपनी राजनीतिक ज़मीन मज़बूत करनी शुरू कर दी है। जानकार बताते हैं कि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम यानी मजलिस की मज़हबी राजनीति बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। ओवैसी बंधुओं के भड़काऊ भाषणों और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के कथित मुसलिम तुष्टिकरण को राजनीतिक मुद्दा बनाकर बीजेपी हिन्दू मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में जुटी है।
भले ही बीजेपी ग्रेटर हैदराबाद के मेयर की कुर्सी से काफी दूर रह गयी, लेकिन उसने यह साबित किया कि तेलंगाना में वही टीआरएस को टक्कर दे सकती है। कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी का अब तेलंगाना में कोई वजूद नहीं है और बीजेपी ही टीआरएस का एक मात्र विकल्प है।
बीजेपी दूसरे, मजलिस तीसरे नंबर पर
नगर निगम में पार्टियों की स्थिति बदली है। बीजेपी अब दूसरे नंबर पर आ गई है और एआईएमआईएम तीसरे नंबर पर। चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया है और पिछली बार मिलीं 4 सीटों के मुक़ाबले इस बार उसे 48 सीटें मिली हैं। दूसरी ओर, तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस को ख़ासा नुक़सान हुआ है और पिछली बार मिलीं 99 सीटों के मुक़ाबले वह 56 पर आकर टिक गई है। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम यानी मजलिस पिछली बार जितनी ही यानी 44 सीटों पर जीती है। 150 सदस्यों वाले नगर निगम में मेयर बनाने के लिए 76 सीटें जीतना ज़रूरी है। ऐसे में टीआरएस को 18 जीते हुए उम्मीदवारों का साथ चाहिए।
बड़े नेता उतरे प्रचार में
ग़ौर करने वाली बात यह है कि इस बार नगर निगम के चुनाव में बीजेपी ने अपनी सारी ताकत झोंक दी थी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हैदराबाद की गलियों में प्रचार किया। चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैदराबाद आये, लेकिन प्रचार में हिस्सा नहीं लिया।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अपने सबसे भरोसेमंद नेता भूपेंद्र यादव को प्रचार की कमान थमायी थी। बीजेपी के नेताओं ने हैदराबाद का नाम बदलने, सर्जिकल स्ट्राइक, मुसलिम तुष्टिकरण, ओवैसी बंधुओं के भड़काऊ भाषणों जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर प्रचार किया।
ध्रुवीकरण की कोशिश
ध्रुवीकरण के लिए बीजेपी की कोशिश की वजह से 'विकास' मुख्य चुनावी हथियार नहीं बन पाया। बीजेपी पहली बार ओवैसी के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब रही है। पुराने शहर में बीजेपी ने पाँच वार्डों पर कब्ज़ा किया है।
चुनाव प्रक्रिया शुरू होते ही साफ हो गया था कि बीजेपी की नज़र हैदराबाद के मेयर की कुर्सी पर नहीं बल्कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है।
टीआरएस-मजलिस की दोस्ती
तेलंगाना राज्य के अस्तित्व में आने के बाद हुए दो विधानसभा चुनावों में टीआरएस की जीत हुई। दोनों चुनावों में टीआरएस को ओवैसी की मजलिस पार्टी का कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं अप्रत्यक्ष समर्थन मिला। बीजेपी अब टीआरएस और ओवैसी की इसी दोस्ती को चुनावी हथियार बना चुकी है। पहले बीजेपी मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) पर भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए राजनीतिक हमले करती थी। लेकिन अब ये हमले मज़हबी रंग ले चुके हैं।
बीजेपी नेताओं के भड़काऊ बयान
अमित शाह ने चुनाव प्रचार की शुरुआत चार मीनार से सटे भाग्यलक्ष्मी मंदिर में पूजा-अर्चना कर की। योगी आदित्यनाथ ने एलान किया कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो हैदराबाद के नाम बदलकर भाग्यनगर किया जाएगा। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बांडी संजय कुमार ने कहा कि सत्ता में आने पर बीजेपी हैदराबाद में ग़ैर कानूनी तरीके से पनाह लिए हुए रोहिंग्या मुसलमानों और पाकिस्तानी नागरिकों पर सर्जिकल स्ट्राइक करेगी। लोकसभा सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि ओवैसी की पार्टी को वोट देने का मतलब है राष्ट्र के हितों के विरोध में वोट देना। तेजस्वी सूर्या ने एक बयान में कहा कि ओवैसी मुहम्मद अली जिन्ना का अवतार हैं।
बीजेपी को ओवैसी और टीआरएस पर इस वजह से भी हमला करने का मौका मिला क्योंकि मजलिस ने नगर निगम की कुल 150 सीटों में से सिर्फ़ 51 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। खुद अमित शाह ने आरोप लगाया कि मजलिस और टीआरएस में गुप्त समझौता है।
बीजेपी ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री केसीआर के गृह ज़िले में हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी। इसी के बाद से बीजेपी ने तेलंगाना में आक्रामक तेवर अपना लिये और जमकर ध्रुवीकरण की राजनीति शुरू की।
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम कई कारणों से सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए काफी मायने रखता है। तेलंगाना के राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा यहीं से आता है। निगम का सालाना बजट 7000 करोड़ रुपये है। यहां की आबादी करीब एक करोड़ है। राज्य की 119 विधानसभा सीटों में से 24 यहीं हैं। चार लोकसभा सीटें भी यहीं हैं। आईटी हब और प्रदेश की राजधानी होने की वजह से भी हैदराबाद की काफी अहमियत है।
कांग्रेस का बुरा हाल
चुनाव में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों का बुरा हाल रहा। एक समय नगर निगम में कांग्रेस की सत्ता थी। लेकिन तेलंगाना बनने के बाद कांग्रेस लगातार कमज़ोर होती चली गयी। नतीजे साफ बयान करते हैं कि कांग्रेस को अपना जनाधार वापस हासिल करने के लिए खूब मेहनत करनी होगी। नये माहौल के लिए नयी रणनीति बनानी होगी। वरना कांग्रेस के नेता बीजेपी में अपना भविष्य तलाशने लगेंगे।