कोवैक्सीन के भी अब गंभीर दुष्परिणाम की ख़बरें हैं। हाल ही में स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, किशोर लड़कियों और कोमॉर्बिडीटीज यानी कई बीमारियों से जूझ रहे लोगों पर कोवैक्सीन का दुष्परिणाम ज़्यादा दिखा है। शोध के मुताबिक़ इसमें हिस्सा लेने वाले लगभग एक तिहाई लोगों में कोवैक्सीन के दुष्परिणाम देखे गए हैं। सांस संबंधी इंफेक्शन, स्किन से जुड़ी बीमारियां, ब्लड क्लॉटिंग, महिलाओं में पीरियड से जुड़े दुष्परिणाम देखने को मिले हैं।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किशोरों और वयस्कों में कोवैक्सीन की सुरक्षा को लेकर विश्लेषण किया गया है। इसमें जिन लोगों को शोध में शामिल किया गया है उनमें उत्तर भारत के लोग शामिल हैं और उनपर एक साल के संभावित दुष्परिणाम का आकलन किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के गंभीर दुष्परिणाम क़रीब 1% मामलों में मिले हैं।
रिपोर्ट के अनुसार 1024 लोगों को नामांकित किया गया। इनमें से 635 किशोर और 291 वयस्कों से एक साल के दौरान संपर्क किया जा सका। अध्ययन में कहा गया है कि 304 (47.9%) किशोरों और 124 (42.6%) वयस्कों में साँस संबंधी वायरल संक्रमण की जानकारी मिली।
इसके अलावा शोध में पाया गया कि इसमें हिस्सा लेने वाले किशोरों में स्किन से जुड़ी बीमारियां (10.5%), नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर (4.7%) और जनरल डिसऑर्डर (10.2%) देखे गए। वहीं, वयस्कों में जनरल डिसऑर्डर (8.9%), मांसपेशियों और हड्डियों से जुड़े डिसऑर्डर (5.8%) और नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर (5.5%) देखे गए।
गुलियन बेरी सिंड्रोम का ख़तरा!
शोध में 4.6% किशोरियों में मासिक धर्म संबंधी असामान्यताएं पायी गईं। गुलियन बेरी सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जो लकवे की ही तरह शरीर के बड़े हिस्से को धीरे-धीरे निशक्त कर देती है। यह एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि शोध में हिस्सा लेने वाले जिन किशोरों और महिला वयस्कों को पहले से कोई एलर्जी थी और जिन्हें वैक्सीनेशन के बाद टाइफाइड हुआ उन्हें खतरा ज्यादा था।
इस शोध पर 'द हिंदू' के एक सवाल का जवाब देते हुए भारत बायोटेक ने कहा है कि सुरक्षा में इस तरह के अध्ययन को प्रभावी बनाने और जांचकर्ताओं के पूर्वाग्रह से बचने के लिए कुछ और डेटा की भी ज़रूरत थी। उन्होंने कहा है कि अध्ययन में उनकी भागीदारी से पहले अध्ययन के दौरान बिना टीका लिए लोगों की सुरक्षा प्रोफ़ाइल की तुलना की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध के दौरान दूसरे टीके लिए लोगों की सुरक्षा प्रोफ़ाइल से भी तुलना की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अध्ययन के दौरान केवल एक उपसमूह के बजाय सभी सहभागी लोगों का आकलन किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने कहा है, 'कोवैक्सीन की सुरक्षा पर कई शोध किए गए हैं और पीअर रिव्यू जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं, जो एक उत्कृष्ट सुरक्षा ट्रैक रिकॉर्ड दिखाते हैं।'
बता दें कि हाल ही में एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन के फॉर्मूले में गंभीर दुष्प्रभाव की बात ब्रिटेन में कबूली गई है। इसके बाद भारत में कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर गंभीर चिंताएँ उठने लगीं।
कोविड संक्रमण की शुरुआती लहरों के दौरान एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय ने वैक्सीन विकसित की थी। इस वैक्सीन को बनाने के लिए भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ने क़रार किया और इसको भारत में कोविशील्ड नाम से वैक्सीन बनाना शुरू किया। इस वैक्सीन को लेकर शुरू से ही ब्लड क्लॉटिंग के गंभीर मामले आने की शिकायतें आती रही हैं। लेकिन एस्ट्राज़ेनेका ने इस बात को तब स्वीकार किया जब वह ब्रिटेन में इस वैक्सीन के कारण कुछ केस में स्वास्थ्य को होने वाले गंभीर नुक़सान और कई मौतों के आरोपों से जुड़े मुक़दमों को झेल रही है।
फार्मास्युटिकल्स कंपनी एस्ट्राज़ेनेका ने ब्रिटिश अदालत के सामने कबूल किया है कि इसके कारण होने वाले साइड इफेक्ट के रूप में खून के थक्के जम सकते हैं और प्लेटलेट कम हो सकता है जिसके कारण हार्ट अटैक का ख़तरा बढ़ सकता है।
कोविशील्ड की वैक्सीन को लेकर शुरू से ही सवाल उठते रहे हैं। 2021 में ही एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन पर यूरोपीय यूनियन के बड़े देशों- जर्मनी, इटली, फ्रांस जैसे कई देशों ने तात्कालिक तौर पर रोक लगा दी थी। ब्रिटेन में तो 39 साल से कम उम्र के लोगों को वैक्सीन लगाने के ख़िलाफ़ एवाइजरी जारी की गई थी और ऐसा करने के लिए सहमति लेने को ज़रूरी किया गया था। 2022 में ही एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में कहा गया था कि फाइजर की तुलना में एस्ट्राजेनेका की कोविड वैक्सीन से जुड़े मामलों में ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम ज़्यादा रहा है। इसमें कहा गया कि यह 30 फ़ीसदी तक अधिक था।
ऐसे मामले भारत में भी आए थे। टीकाकरण के बाद दुष्प्रभावों पर नज़र रखने वाले सरकारी पैनल ने कहा था कि कोविड वैक्सीन के बाद हेमरेज और ब्लड क्लॉटिंग के मामले मामूली हैं और ये उपचार किए जाने के अनुरूप हैं।