प्रसन्न चित्त तोताराम ने हमें बताया- 'भारत जोड़ो यात्रा' में कुछ माता पिता अपने बच्चों को ला रहे हैं और उन्हें राहुल गाँधी से मिलवा रहे हैं। बच्चों पर कितना बड़ा अत्याचार है। यह उम्र क्या बच्चों को ऐसी यात्रा में ले जाने की है? इस घोर बाल अत्याचार पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने स्वयं संज्ञान लिया और केंद्रीय चुनाव आयोग से शिकायत की है कि बच्चों का राजनीतिक औजार के रूप में दुरुपयोग हो रहा है। राहुल के साथ चल रहे किसी भी मानवाधिकार संगठन ने चूँ तक नहीं की। क्यों करेंगे? यदि मोदी जी का सजग और सतर्क शासन-प्रशासन नहीं होता तो कौन उठाता इस घोर अत्याचार के विरूद्ध आवाज़ को?
कितनी सूक्षम दृष्टि है और कितना जिम्मेदारी पूर्ण तत्काल एक्शन।
हमने कहा- ठीक है, यह उम्र क्या कोई रैलियों में जाने की है? यह उम्र तो मोबाइल पर किसी देशद्रोही को ट्रोल करने की है। किसी देशद्रोही की फिल्म का बहिष्कार करवाने की है। बुल्ली-सुल्लू करने की है। चरित्र निर्माण के लिए मोदी जी के मन की बात सुनकर गौरवान्वित होने की है।
बोला- लेकिन अब मोदी जी आ गए हैं। देश का गुलामी का इतिहास बदलने के धुआंधार कार्यक्रम के बीच भी उनकी सूक्ष्म दृष्टि बाल-हित के प्रति सचेत रहती है।
अब राहुल गाँधी को क्या पता बाल अत्याचार क्या होता है?
हमने भी तोताराम की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा- तोताराम, वास्तव में इस देश का इतिहास ही बाल अत्याचार का रहा है। बाल कृष्ण को ही देख।
बोला- बालकृष्ण कौन? क्या रामदेव जी वाले। एलोपैथी को गरियाने वाले, किसी भी उत्पाद को दिव्य कर देने वाले? लेकिन अपना इलाज एम्स में करवाने वाले बालकृष्ण?
हमने कहा- नहीं, हम तो साक्षात् कृष्ण की बात कर रहे हैं जिनकी मां यशोदा उन्हें जरा सा मक्खन खाने पर फटकारती थीं, जंगल में गाय चराने के लिए भेज देती थी। बाल श्रम का कैसा जीता जगाता उदाहरण है। एक दिन तो वे विद्रोह पर उतर आये और कहा- ले संभाल अपनी यह लाठी और कम्बल। बहुत नाच नचाया है।
इसके गवाह हैं सूरदास।
द्रोणाचार्य की पत्नी अपने बेटे को आटा घोलकर दूध के नाम से पिला देती थी। जिस काल में भारत में घी-दूध की नदियाँ बहती थीं उस काल में भी इतनी कंजूसी!
बोला- गाँधी जी के आन्दोलन में इंदिरा से वानर सेना में बालश्रम करवाया था। वास्तव में बड़ा दुखद इतिहास है। और इसमें नेहरू सबसे ज्यादा दोषी हैं। खुद तो अपनी शादी उचित आयु प्राप्त करने पर की लेकिन जब मोदी जी की शादी 17 वर्ष की आयु में की जा रही थी तो नेहरू जी कुछ नहीं बोले। उनसे स्कूल जाने की उम्र में चाय बिकवाई जा रही थी तब भी उन्होंने आपराधिक चुप्पी बनाये रखी।
हमने कहा- जब मोदी जी की शादी 17 साल की उम्र में करवाई गई तब तो नेहरू जी का निधन हो चुका था। वे इसके लिए कैसे दोषी हो सकते हैं।
बोला- जिस तरह से आज भी नेहरू हमारी राष्ट्रहित की योजनाओं और देश को वास्तव में गुलामी से मुक्त करवाने की कोशिशों में ऊपर स्वर्ग या नरक में बैठे भी दखल दे रहे हैं तो क्या उस समय किसी को स्वप्न में ही सन्देश नहीं दे सकते थे कि अमुक अमुक बालक का बाल विवाह किया जा रहा है, रुकवाओ।
हमने कहा- तोताराम, हमारी शादी भी 1959 में सत्रह साल से भी कम आयु में कर दी गई थी लेकिन नेहरू जी ने उस समय सदेह उपस्थित होते हुए भी मदद नहीं की।
बोला- नेहरू जी ने तो गाँधी जी की बारह वर्ष की उम्र में होने वाली शादी को नहीं रुकवाया। तुम और गाँधी जी दोनों सहते रहे इस अत्याचार को लेकिन जिनमें साहस होता है वे मोदी जी की तरह अटल जी वाले 'काल के कपाल' पर पैर रखकर समय की गति को बदल देते हैं। और बुद्ध की तरह मानवता के कल्याण के लिए सभी बंधनों को तोड़ डालते हैं।
हमने कहा- क्या स्कूल के बच्चों को खेलने-कूदने और अपने मन का कुछ करने देने की बजाय अपने मन की बात सुनाना अत्याचार नहीं है? और देख, हमने उसके सामने एक रैली का फोटो करते हुए पूछा- यह क्या है?
बोला- इसे चरित्र निर्माण और देश भक्ति का पहला पाठ कहते हैं।