बिहार: नीतीश का साथ देने की ‘सजा’ मिली सुशील मोदी को? 

09:00 am Nov 16, 2020 | पवन उप्रेती - सत्य हिन्दी

बिहार बीजेपी में ये क्या हो गया। ताज़ा ख़बर है कि बिहार में सबसे वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी इस बार डिप्टी सीएम के पद पर नहीं रहेंगे। रविवार को जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पटना एयरपोर्ट पर उतरने के बाद बीजेपी दफ़्तर न जाकर सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास चले गए तभी ख़बरनवीसों को उलटफेर की बू आने लगी थी। 

कहा ये गया कि सुशील मोदी ही राजनाथ सिंह को नीतीश के आवास पर ले गए क्योंकि उन्हें यह भनक लग गई थी कि विधायक दल की बैठक में उनका विरोध होने वाला है। राजनाथ के भी डिप्टी सीएम के मुद्दे पर गोलमोल जवाब देने से बिहार के राजनीतिक आसमान में आशंकाओं के बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे थे। 

शाम होते-होते तारकिशोर प्रसाद को बीजेपी विधायक दल का नेता चुने जाने की बात सामने आ गई। इसके साथ ही बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री रहीं रेणु देवी को उपनेता बनाया गया है। 

क्या रही वजहें

सुशील मोदी जैसे पुराने नेता को किनारे लगाने का क्या मतलब हो सकता है। सुशील जेपी आंदोलन से निकले नेता हैं और नीतीश के साथ उनकी पुरानी मित्रता रही है। चारा घोटाले को लेकर लालू प्रसाद को घेरने वालों में नीतीश के साथ सुशील मोदी ही सबसे आगे रहे हैं। आख़िर ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी ने सुशील मोदी से एनडीए की सरकार में उसके हिस्से आने वाले इस बड़े पद पर बैठने का मौक़ा इस बार छीन लिया। 

इसकी दो वजहें नज़र आती हैं। दोनों पर बारी-बारी से बात करते हैं। पहली यह कि सुशील मोदी को नीतीश से दोस्ती भारी पड़ गयी है। इस वजह को समझाने के लिए आपको पिछले साल की कुछ घटनाओं की याद दिलाते हैं। 

तारकिशोर प्रसाद।

ये वक़्त लोकसभा चुनाव के बाद का था। समझ लीजिए कि अक्टूबर-नवंबर, 2019 के दौरान का। बिहार बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार पर हमला कर रहे थे लेकिन उनके समर्थन में जो शख़्स सबसे आगे खड़ा था, उसका नाम था सुशील मोदी। सुशील मोदी ने जिस तरह नीतीश का बचाव किया था, उससे राजनीतिक विश्लेषकों के कान खड़े हो गए थे।

नीतीश विरोधी नेताओं के तर्क

बीजेपी के जो नेता नीतीश को निशाना बना रहे थे, वे बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी बीजेपी के पास देखना चाहते थे और आलाकमान को बताना चाहते थे कि देश में 303 सीटें लाने वाली पार्टी का बिहार में डिप्टी सीएम का पद लेना उसका अपमान है। उनका तर्क था कि बिहार में लोकसभा सीटें बीजेपी की ही ज़्यादा हैं और 2014 में 2 सीट लाने वाली जेडीयू 2019 में जो 16 सीट लायी है, उसके पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ मोदी का करिश्मा है। 

गिरिराज को सुशील मोदी का जवाब

ऐसे नेताओं में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और वरिष्ठ नेता संजय पासवान प्रमुख थे। पटना में आई बाढ़ में बदइंतजामी को लेकर जब नीतीश कुमार विपक्षी दलों के निशाने पर आए तो गिरिराज सिंह ने एक ट्वीट कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। गिरिराज ने कहा था, ‘ताली सरदार को मिलेगी तो गाली भी सरदार को मिलेगी।’ लेकिन उन्हें इसका जवाब देने फ्रंटफुट पर आए थे सुशील मोदी। सुशील ने अपने एक ट्वीट में लिखा था, ‘नीतीश जी ने बिहार में न्याय के साथ विकास की राजनीति को नई ऊंचाई दी और आपदा की चुनौतियों को भी जनता की सेवा के अवसर में बदलने का हुनर साबित किया।’ 

इससे पहले ऐसा एक और वाक़या हुआ। संजय पासवान ने नीतीश कुमार को जब केंद्र की राजनीति करने की सलाह दी तो तब भी सुशील मोदी आगे आ गए थे। सुशील मोदी ने एक ट्वीट में लिखा था, ‘नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के कैप्टन हैं और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी वही कैप्टन रहेंगे और जब कैप्टन चौके और छक्के लगा रहा हो और सियासी विरोधियों की पारी से हार हो रही हो तो किसी भी प्रकार के बदलाव का सवाल ही कहां उठता है’ 

इसके बाद एक कार्यक्रम में भी जब सुशील मोदी ने कहा था कि जीतने वाले कप्तान को बदलने की क्या ज़रूरत है तो इसका सीधा मतलब निकाला गया कि बिहार एनडीए में नीतीश-सुशील मोदी की जोड़ी जम चुकी है। 

लेकिन जब सुशील मोदी को अपने इस ट्वीट को डिलीट करना पड़ा था तो राजनीति के जानकार समझ चुके थे कि मोदी और शाह की जोड़ी नीतीश की तारीफ़ से ख़ुश नहीं है।

नीतीश से मोदी का ‘बदला’

दिल्ली में बैठे बीजेपी के चाणक्य यानी अमित शाह के दिमाग में कुछ और भी चल रहा था। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष रहते हुए भी और इस बार चुनाव प्रचार के दौरान भी इस बात को तो साफ किया कि बिहार में चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे। लेकिन ये उनके मन में ज़रूर रहा होगा कि नरेंद्र मोदी को कई सालों तक बिहार में चुनाव प्रचार न करने देने वाले नीतीश कुमार से ‘बदला’ लेना है। और नीतीश का खुलकर साथ देने वाले सुशील मोदी को इसका खामियाज़ा उठाना पड़ेगा, यह खुसफुसाहट शुरू हो चुकी थी। 

देखिए, बिहार के चुनाव नतीजों पर चर्चा- 

सुशील मोदी ने जताई नाराज़गी

अब आइए आप 15 नवंबर के घटनाक्रम पर। जैसे ही तारकिशोर प्रसाद को बीजेपी विधायक दल का नेता चुनने की ख़बर आई तो सुशील मोदी ने ट्वीट कर अपनी नाराज़गी का भी इजहार कर दिया। ख़ुद को दी गई जिम्मेदारियों के लिए बीजेपी व संघ परिवार का आभार व्यक्त करते हुए सुशील मोदी ने कहा, ‘कार्यकर्ता का पद तो कोई छीन नहीं सकता।’ इसका सीधा मतलब यही है कि सुशील मोदी लोगों को बताना चाहते हैं कि उनसे डिप्टी सीएम का पद छीना गया है। 

सुशील मोदी के इस ट्वीट पर जवाब भी सबसे पहले गिरिराज सिंह का आया। गिरिराज ने कटाक्ष करते हुए उनसे कहा, ‘आगे भी आप बीजेपी के नेता रहेंगे, पद से कोई छोटा बड़ा नहीं होता।’

सुशील से बीजेपी कार्यकर्ता नाराज़

अब आते हैं दूसरी वजह पर। दूसरी वजह के लिए इस बार एलजेपी के टिकट पर लड़े बीजेपी के कुछ नेताओं के बयानों को याद करना होगा। ऐसे नेताओं ने कुछ टीवी चैनल्स की डिबेट में कहा था कि सुशील मोदी पार्टी में समर्पित कार्यकर्ताओं को किनारे लगा रहे हैं और उनकी नाराज़गी सुशील मोदी से ही है। इस तरह की भी ख़बरें आईं कि सुशील मोदी बीजेपी के कार्यकर्ताओं के काम नहीं करते और पार्टी नेताओं ने इसकी शिकायत ‘ऊपर’ तक की है। 

हो सकता है कि इस तरह की बातें सुशील मोदी के विरोधियों ने उनके ख़िलाफ़ माहौल बनाने या आलाकमान को उनके ख़िलाफ़ उकसाने के लिए फैलाई हों। लेकिन ऐसी बातें बिहार में चर्चा में थीं। और यह नीतीश के लिए खुलकर बैटिंग करने से भड़की आग में घी डालने जैसा था। 

सुशील मोदी के पर कतरने से साफ है कि बीजेपी ने नीतीश को संदेश दिया है कि अब उनके लिए सरकार चलाना आसान नहीं रहेगा। वैसे भी बीजेपी जेडीयू से 31 सीटें ज़्यादा होने के कारण नीतीश को खुलकर नहीं खेलने देगी, यह तय है।

दो डिप्टी सीएम की चर्चा

कहा जा रहा है कि बीजेपी राज्य में दो उप मुख्यमंत्री बनाने जा रही है। इसमें वह सवर्ण और दलित-पिछड़े वर्ग के नेताओं को जगह दे सकती है। 

बीजेपी के इस क़दम का मतलब साफ है कि वह नीतीश कुमार को खेलने के लिए आसान पिच नहीं देना चाहती। अगर वह अपने दो नेताओं को डिप्टी सीएम बनाती है तो हालात और बिगड़ेंगे। अगर नहीं बनाती है तो भी नीतीश के लिए स्थितियां पहले जैसा नहीं रहेंगी क्योंकि उनके जोड़ीदार और मित्र सुशील मोदी उनके साथ नहीं होंगे। इस सबके बीच देखना होगा कि क्या वह सुशील मोदी को कहीं एडजस्ट करेगी या नीतीश का साथ देने के एवज में उन्हें आगे और ‘सजा’ देगी। 

मोदी और शाह अपने सियासी विरोधियों को कभी नहीं भूलते। वे नहीं भूले हैं कि नीतीश ने बीते वक़्त में क्या कुछ कहा और किया है। उन्हें मौक़े की तलाश थी और मौक़ा मिल गया है। नीतीश की नकेल कसने के साथ ही उनके दोस्त सुशील मोदी के भी राजनीतिक करियर पर ग्रहण लगने के आसार हैं।