22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। भारत एक बार फिर ‘राम-नाम’ की भक्ति में सराबोर है। राम मंदिर के भव्य और दिव्य आयोजन की तैयारियों के बीच उमा भारती के कई इंटरव्यू सामने आए हैं। लेकिन ‘सत्य हिन्दी’ को दिया गया उमा भारती का इंटरव्यू कई और पहलुओं पर रोशनी डालता है। पेश है, उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
- उमा भारती, आप कब जा रही हैं दर्शन के लिए अयोध्या?
जवाब: निमंत्रण जब आया था, तब चंपत राय जी से पूछा था - कब आ जाऊं? उन्होंने कहा, ‘आपको तो निमंत्रण औपचारिकता के लिए भेजा है, 22 जनवरी के पहले कभी भी आ जाइये।
जवाब: आने वाली 17 या 18 को चली जाऊंगी। फिलहाल स्लिप डिस्क की प्रॉब्लम है। थेरेपी चल रही है। तीन चार दिन फिजियोथेरेपी चलेगी। डॉक्टरों की अनुमति मिलेगी तब चली जाऊंगी।
- यानी आपको औपचारिक न्यौता मिल गया?
जवाब: बहुत पहले। अयोध्या के लिए हमें निमंत्रण की दरकार नहीं है। हम गोलियों की बौछार का निमंत्रण लेकर गये थे। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। वे कहते थे, परिंदा भी पर नहीं मार पायेगा, तब भी हम पहुंच गए थे। अयोध्या के हम बिन बलाये मेहमान हैं। पहुंच जायेंगे।
- कितने दिनों का प्रवास रहेगा?
जवाब: बने रहेंगे। आनंद का क्षण हैं। दो कारण हैं, आनंद के, एक तो राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। दूसरा, आनंद का कारण यह है कि कितनी शांतिपूर्ण व्यवस्था में हो रही है। सामंजस्य को समसरता को बिगाड़ने वाले विघ्न संतोषियों की कोई सुन ही नहीं रहा है। हकीकत जो थी, लोग जानते हैं, बाबर से हिन्दुस्तान के मुसलमानों का कोई लेना-देना ही नहीं था। दूसरा वो जो ढांचा था, उसमें नमाज नहीं हो रही थी तो वैसे भी वह खाली छोड़ दिया गया ढांचा हो गया था। तो इसलिए वो स्ट्रक्चर भी उनके लिए धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं था, लेकिन जिस तरह का माहौल बना दिया गया था कि वो (ढांचा) उनकी पहचान का सिंबल है। ढांचे को नुकसान पहुंचा तो उनको (मुसलमानों को) देश में रहना मुश्किल पड़ेगा, वैसा नहीं हुआ। कई राज्यों और केन्द्र में 6 दिसंबर 1992 के हमारे दल की सरकारें बनीं। किसी भी राज्य और केन्द्र में सरकार के रहते कहीं कोई दिक्कत नहीं आयी। हमने (भाजपा की सरकारों ने) उनके (मुसलामानों के) खिलाफ कोई फैसले लिए हों, ऐसा भी नहीं हुआ। एक विश्वास अपने आप स्वभाविक अर्जित हो गया। इस कारण से भी शांति रहती है। बाकी खुशी तो उसी दिन हो गई थी जब ढांचा गिर गया था। मैं समझ गई थी, अब रामलला को तो यहां से कोई भी हटा नहीं पायेगा।
- राम मंदिर आंदोलन की अगुवाई के वक्त उम्मीद थी कि राम मंदिर बन पायेगा?
उमा भारती: आपको मैं आश्चर्य की बात बताऊंगी, आडवाणी जी जब रथ यात्रा निकाली और पूरी रथ यात्रा में सभाओं के दौरान उन्होंने एक प्रस्ताव रखा कि जर्मनी जैसे देशों में एक टेक्नोलॉजी आ गई है पूरा ढांचा एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट हो सकता है, आपस में एक सहमति का वातावरण बन जाये आसान हो जायेगा। उधर कोर्ट में राम जन्म भूमि न्यास और वक्फ बोर्ड की याचिकाओं को लेकर जो कुछ चल रहा था, उससे मुझे लगता नहीं था कि आडवाणी जी के प्रस्ताव पर सहमति बन पायेगी। दरअसल हमारे साथ मीडिया था नहीं। टेलीविजन में सरकारी मीडिया दूरदर्शन भर था। वो पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में था। उस दूरदर्शन में सब के सब वामपंथी थे। प्रिंट मीडिया की संख्या भी कम थी। उसमें भी जो बैठे हुए थे सब वामपंथी थे। हमारे खिलाफ थे। खाली जनता हमारे साथ थी। इसके कारण ऐसा माहौल ही नहीं बन पा रहा था कि आपस की सहमति हो पावेे। तब मुझे यह समझ नहीं आता था कि क्या होगा?
जवाब: हम देख रहे थे, दादा (लालकृष्ण आडवाणी जी) जो बात कह (प्रस्ताव रख) रहे हैं, उस पर बात बन नहीं रही है, उल्टा उनका रथ रोक दिया गया। बिहार में रोक दिया गया। तो मुझे लगने लगा था कि यह वातावरण बिगाड़ने की एक कुचेष्ठा है। भारत के मुसलमानों का बाबर से कोई लेना-देना नहीं और ना उन्हें ढांचे से कोई लेना-देना। कोई मक्का-मदीना तो था नहीं। धार्मिक दृष्टि से वो महत्व का स्थान नहीं था। बाबर उनके कोई पीर-पैगंबर नहीं थे। ढांचे से जुड़े इतिहास को वे भी पढ़ रहे थे। इस सबसे मुझे लग रहा था कि ऐसा कब होगा। मुझे नहीं मालूम था कि ऐसा कुछ होने वाला है, कि ढांचा गिर जायेगा, तो ढांचा गिर गया मेरी आंखों के सामने। मैं वहां थी। मैं तो मुख्य अपराधी मानी गई। जो 6 लोग अपराधी बनाये गये। जिन्हें जेल भेजा गया। मुख्य तो मुझे माना गया। जब मैं बोलने खड़ी हुई तब कार सेवक ढांचे पर चढ़े। इशारा किया। मैं आधा किलोमीटर दूर थी। मैं तैयार थी, फांसी चढ़ा दो। जेल भेज दो। मंत्री मुख्यमंत्री पद कोई मायने नहीं रखता। ढांचा जब गिर गया, शाम को जब रामलला को प्रणाम करने गये। अम्मा जी को लेकर राजमाता सिंधिया को लेकर, तब मुझे लगा था अब देरी होगी। समाधान होने में। क्योंकि एक विवादास्पद ढांचा था वो हटा दिया गया, अब रामलला यहां बैठे हैं अब मंदिर बनाने को लेकर जो वातावरण बनेगा वह मुश्किल होगा और कोर्ट में बहुत लंबी सुनवाई चलेगी। लेकिन कोर्ट में सुनवाई ठीक से हो गई। मोदी जी प्रधानमंत्री बन गये। मोदी जी, वही व्यक्ति हैं जो गुजरात के संगठन मंत्री थे। सोमनाथ से यात्रा शुरू हुई थी। प्रमोद महाजन यात्रा के सारथी थे। यात्रा के आर्किटैक्ट मोदी थे। पूरी योजना बनाई थी। वे ही आज रामललाल की प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन के मुख्य हैं। बैठेंगे पूजा में। रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा मान ही नहीं हूं। राम प्राणहीन नहीं। यह राष्ट्रीय सम्मान की प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन है।
- बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना उचित था?
उमा भारतीः मैं यह कह रही हूं वह मस्जिद थी ही नहीं। वो तो विवादास्पद ढांचा था। मीर बकी की सेना को नमाज ही पढ़ना थी तो अगल-बगल में मस्जिद बना सकते थे। हमारा मंदिर क्यों तोड़ा? क्योंकि वह (मीर बकी) हमें हमारी औकात बताना चाहते थे। हमारे आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाना चाहते थे।
- बहुत लंबा वक्त लगा, 30 साल लगे सुप्रीम कोर्ट फैसला आने में? पहले फैसला आना चाहिए था?
जवाबः लड़ाई तो 500 साल पुरानी थी। कानूनी लड़ाई 1949 से चल रही थी। रामलला प्रकट हुए थे। रामचंद्र दास परमहंस जी और अंसारी जी गलगहियां करते हुए एक साथ कोर्ट जाते थे। लड़ाई 6 दिसंबर से शुरू हुई कहना सही नहीं है। यह लड़ाई तो 500 सालों से थी। इतिहास में प्रमाण मिलते हैं। अकबर बादशाह ने मामले के निराकरण का प्रयास किया था। कहा था, बाहर बैठकर भजन-कीर्तन करने का अधिकार दे दो। फिर वाजिद अली शाह ने कोशिश की थी। शाहजहां के समय भी प्रयास हुए थे। पहले ओरंगजेब और फिर अंग्रेजों के समय तमाम प्रयासों को बिगाड़ा गया।
- आंदोलन की कोई खास बात जो आप शेयर करना चाहें?
उमा भारतीः सामंजस्य बनने देते आडवाणी जी के प्रस्ताव पर तो हटाना आसान हो जाता। हटाना भर ही समाधान था। वो नहीं होने दिया गया तो 6 दिसंबर हो गया। मैं इसके लिए आडवाणी जी अथवा कार सेवकों को जिम्मेदार नहीं मानती। जिम्मेदार वो लोग थे जो हमारी हंसी उड़ाते थे। अपमान करते थे। बेइज्जती करते थे। कहते थे, राम हुए नहीं। राम तो छत्तीसगढ़ में कहीं हुए थे जो कहते थे।
- बाबरी मस्जिद गिरी थी तब आडवाणी ने कहा था, उनके जीवन का सबसे दुःखद पल है? क्यों कहा था उन्होंने?
जवाब: यह तो आडवाणी जी से पूछना पड़ेगा आपको। मैं तो उनकी प्रवक्ता नहीं बनूंगी। उन्हीं से पूछना होगा आपको। यह जरूर कहूंगी आडवाणी जी ने जो किया था उससे एक सबक सीखने को मिला है। आप एक ऐसे आंदोलन की अगुवाई करते हैं तो रेगुलेटरी लागू नहीं कर सकते। हम एक दिन आगरा की जेल में रखे गए थे। बाबरी विंध्वंस के बाद 7 दिसंबर को दिल्ली पहुंचे और 8 को हमें अरेस्ट कर लिया गया। हम छह लोग महरौली गेस्ट हाउस कुतुब मीनार के पास रखे गए। पहले आगरा लाया गया था हम लोगों को। फिर नैनी जेल मेें मुझे शिफ्ट किया गया। ललितपुर जिले की माताटीला गेस्ट हाउस में उन लोगों को जेल का दर्जा देकर रखा गया। वहां देखा आडवाणी कुछ लिख रहे हैं तो मैं उनके पीछे खड़ी थी। मैंने पूछा क्या लिख रहे हो दादा तो पता चला वह रिग्रेट (खेद) लिख रहे थे। प्रेस के लिए। मैंने उनके हाथों से कागज छीना। वे खंडन नहीं करेंगे। मैंने कहा, ‘दादा आप आर्मी के जनरल हो, आर्मी ने जो किया है आपको उसे स्वीकार करना है। आपने उन्हें अयोध्या बुलाया। उनने जो किया आप उसे अस्वीकार नहीं कर सकते। आप उसे स्वीकार करिये, जो हुआ है। सम्मान के साथ स्वीकार कीजिये।’
- आडवाणी आज वहां (अयोध्या) दिखाई नहीं पड़ रहे, क्यों?
उमा भारतीः मैं आपको कुछ कह नहीं सकती। न्यास ने उन्हें आमंत्रित किया है। आप प्रतिभा आडवाणी जी से पूछिए कीजिये वे (आडवाणी जी) क्यों नहीं आ पा रहें, सही जवाब वही दे पायेंगी।
- आडवाणी की अनुपस्थिति खलेगी नहीं?
जवाबः नहीं, उनके बिना कुछ नहीं हो रहा है। वे हैं, हमें देखेंगे। वे टीवी पर देखेंगे। शिलान्यास देखेंगे। उन्हें प्रसन्नता है। इतनी शांति के साथ सब हो रहा है।
- राममंदिर आंदोलन की अगुआ नेताओं में आप रहीं, लेकिन आज आप हाशिये पर हैं, आपको अफसोस होता होगा कि न्याय नहीं हुआ?
जवाबः नहीं, मुझे नहीं लगता कि मैं अन्याय की शिकार हूं। मुझे लगता है मैंने अन्याय किया। मैंने कह दिया कि मुझे चुनाव नहीं लड़ना है। मुझे तो उल्टा लगता है, मुझे हमेशा लगता है मैंने भगवान के साथ अन्याय किया। क्योंकि मैंने संन्यास ले लिया लेकिन भजन-पूजन में जितना समय लगाना चाहिए उतना नहीं लगाती हूं। भगवान को यदि किसी से दुनिया में शिकायत होगी तो मुझसे जरूर होगी। भाजपा ने हमेशा मुझे महत्व दिया। मैंने कहा यह छोड़ा मुख्यमंत्री का पद। यह छोड़ा अब नहीं लड़ना मुझे चुनाव, तो इसलिए मैं हूं जो अन्याय करती हूं और मेरी पार्टी मुझे बर्दाश्त करती है। मुझे तो ऐसा लगता है।
- राम मंदिर आंदोलन से क्या भारत के मुसलिमों में असुरक्षा का भाव नहीं आया?
जवाबः ना, पहले आया था। वो पैदा किया गया था। यह तय किया गया था उन्हें डराकर रखना है। आजादी के बाद जब यह तय हुआ कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहेगा। वोट के लिए माहौल बनाया गया। उस ढांचे के साथ उनकी कोई पहचान ही नहीं है। जबरदस्ती भय फैलाया गया। पक्षकार अंसारी साहब कह रहे हैं घर-घर दिए जलाइये। हैदराबाद से मुसलिम महिला पैदल अयोध्या आ रही है। शांतिपूर्ण माहौल को आप (मीडिया वाले) भी और मजबूती प्रदान करें।