बाग़ियों से मिलेंगी सोनिया, ख़त्म होगा कांग्रेस का घमासान!

09:02 am Dec 18, 2020 | पवन उप्रेती - सत्य हिन्दी

कुछ महीने पहले कांग्रेस में उस वक़्त जबरदस्त भूचाल आया था, जब पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद हुई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में भी जमकर बवाल हुआ था। हालात उस वक़्त और ज़्यादा बिगड़ गए थे जब चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को दूसरे नेताओं ने निशाने पर ले लिया था और कांग्रेस की लड़ाई चौराहे पर आ गई थी। 

कमलनाथ आए आगे

लेकिन लगता है कि पार्टी में लंबे वक्त चला घमासान अब थम जाएगा। क्योंकि सोनिया गांधी और पार्टी के बाग़ी नेताओं के बीच बैठक होने वाली है। एनडीटीवी के मुताबिक़, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बाग़ी नेताओं और सोनिया की इस बैठक को करवाने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने गांधी परिवार को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं से मिलने के लिए मनाया है। 

कहा गया है कि चिट्ठी लिखने वाले सारे नेता बैठक में शामिल नहीं होंगे बल्कि पांच से छह नेता सोनिया गांधी से बातचीत करेंगे। यह बैठक शनिवार को होगी। एनडीटीवी के मुताबिक़, चिट्ठी लिखने वाले नेताओं से इतर भी पार्टी के कई नेता इस बैठक में हिस्सा लेंगे।

कांग्रेस के ताज़ा हाल पर देखिए चर्चा- 

चुप्पी पर उठे थे सवाल

अगस्त महीने में जब कपिल सिब्बल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि लोग अब पार्टी को प्रभावी विकल्प नहीं मानते और नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे तो अधीर रंजन चौधरी से लेकर सलमान खुर्शीद और कई नेता उन पर हमलावर हो गए थे। तब यह सवाल उठा था कि आख़िर कांग्रेस आलाकमान पार्टी नेताओं के मीडिया में दिए जा रहे इन बयानों को लेकर उन पर कार्रवाई क्यों नहीं करता। क्योंकि इससे पार्टी को तगड़ा नुक़सान हो रहा था।

पहले पार्टी नेताओं के बीच घमासान और फिर बिहार, हैदराबाद और अब केरल में भी ख़राब प्रदर्शन के बाद आम लोग सवाल पूछते हैं कि क्या कांग्रेस अब कभी बीजेपी का विकल्प बन पाएगी।

कांग्रेस को ऐसे वक़्त में और ज़्यादा सतर्क रहना होगा जब बाक़ी दल नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ फिर से एक राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन वे कांग्रेस को इसमें शामिल नहीं करना चाहते। क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि राहुल गांधी इस मोर्चे का नेतृत्व करने के लिए सक्षम नेता हैं।

यूपीए अध्यक्ष पर पवार की चर्चा

इसके अलावा हाल ही में यूपीए अध्यक्ष पद के लिए एनसीपी मुखिया शरद पवार के नाम की चर्चा होने और शिव सेना का इसको समर्थन देने से भी साफ है कि कांग्रेस को उसके सहयोगी दल भी अहमियत नहीं देते, जिनके साथ वह सरकार में शामिल है। सिर्फ़ चार राज्यों में पार्टी की अपने दम पर सरकार है और उसमें भी राजस्थान में कब फिर से बवाल हो जाए, कोई नहीं जानता। पंजाब में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ बग़ावत की चिंगारी सुलग रही है। 

ऐसे वक़्त में जब किसानों के आंदोलन के कारण देश में सियासी पारा चरम पर है तो मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस को इस मुद्दे को सक्रियता से उठाना चाहिए। लेकिन साथ ही स्थायी अध्यक्ष के चयन का मसला और पार्टी में जोर पकड़ रही आंतरिक चुनाव की मांग को भी आलाकमान को गंभीरता से लेना होगा क्योंकि बाग़ियों की यही दो मांगें अहम हैं। 

इस प्रस्तावित बैठक से पहले नवंबर में भी ऐसा लगा था कि आलाकमान पार्टी नेताओं के बीच चल रही कलह को थामने के लिए सक्रिय हुआ है। तब सोनिया गांधी ने आर्थिक, विदेश और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों के लिए तीन कमेटियों का गठन किया था और इनमें ग़ुलाम नबी आज़ाद, शशि थरूर, वीरप्पा मोइली और आनंद शर्मा को जगह दी थी। ये सभी लोग चिट्ठी लिखने वालों में शामिल थे। 

 

देखना होगा कि बाग़ी नेताओं की सोनिया गांधी से मुलाक़ात में क्या कोई रास्ता निकल सकता है। क्या पार्टी लगातार मिल रही हार पर गंभीर चिंतन करेगी और क्या वह विजय रथ दौड़ा रही बीजेपी के सामने ख़ुद को खड़ा करने के लिए तैयार होगी।