चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने जो 'प्लान' कांग्रेस को मज़बूत करने के लिए दिया है, उसे लेकर पार्टी के भीतर लगातार मंथन चल रहा है। याद दिला दें कि कुछ दिन पहले पीके की सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाक़ात हुई थी और इसके तुरंत बाद पार्टी ने जिस तरह पंजाब, उत्तराखंड के सांगठनिक मसलों को सुलझाया, उससे यह संदेश गया है कि यह शायद पीके से मुलाक़ात का ही असर है।
वरना, पंजाब का झगड़ा काफी दिन से चल रहा था और अब पार्टी राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट गुट के झगड़े को सुलझाने के क़रीब दिख रही है।
जो 'प्लान' पीके की ओर से कांग्रेस हाईकमान को दिया गया है, वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी को फिर से चुस्त-दुरुस्त करने का है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्यों के बीच इस 'प्लान' को लेकर बैठकों में लगातार चर्चा हो रही है। सीडब्ल्यूसी पार्टी में अहम फ़ैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, इन बैठकों के बारे में जानकारी रखने वाले एक नेता ने बताया कि पीके कांग्रेस की चुनावी रणनीति बनाने, समन्वय, प्रबंधन और गठबंधन के काम में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं।
एक अन्य नेता ने भी कुछ ऐसा ही कहा कि प्रशांत किशोर पार्टी में शामिल होना चाहते हैं और इस मामले में चर्चा जारी है। उन्होंने बताया कि इस मामले में पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा आगे बढ़कर काम कर रही हैं।
कई राजनीतिक दलों के लिए रणनीति बना चुके प्रशांत किशोर हाल ही में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में अपने चुनावी प्रबंधन का लोहा मनवा चुके हैं। कांग्रेस जिस तरह लगातार दो लोकसभा चुनाव हारी है और कई राज्यों में पस्त हुई है, ऐसे हालात में उसके लिए यह बेहद ज़रूरी है कि वह ऐसे किसी 'प्लान' पर गंभीरता से विचार करे।
अगुवाई कर रही कांग्रेस
पेगासस जासूसी मामले से लेकर किसान आंदोलन तक जिस तरह कांग्रेस ने विपक्ष की अगुवाई की है और विपक्ष ने भी उसका साथ दिया है, उससे लगता है कि विपक्ष लामबंद हो रहा है। उसे इस बात का अहसास है कि इन दोनों मसलों पर सरकार को घेरने का मौक़ा नहीं चूकना है क्योंकि मोदी सरकार इन दोनों मामलों में बुरी तरह फंस गई है।
पेगासस जासूसी मामले पर दुनिया के कई देशों ने जांच बैठा दी है लेकिन मोदी सरकार जांच के मामले में मुंह खोलने को तैयार नहीं है और अभी तक चर्चा से भागती रही है। दूसरी ओर, किसानों ने संसद के बगल में ही डेरा डाल दिया है और उनकी धमक संसद के अंदर तक आसानी से सुनी जा सकती है।
ताज़ा राजनीतिक माहौल कांग्रेस के लिए बेहतर है, जब वह ड्राइविंग सीट पर आकर बीजेपी को घेर सकती है और ऐसा करने में सफल होती भी दिख रही है। इन दोनों ही मामलों को उसने सड़क से संसद तक जोर-शोर से उठाया है। राफ़ेल लड़ाकू विमान सौदे का मुद्दा भी जिंदा होता दिख रहा है।
पीके का ‘प्लान’
पीके ने पार्टी हाईकमान को जो 'प्लान' दिया है, उसके मुताबिक़, पार्टी में एक ताक़तवर समूह बनाया जाना चाहिए जो सारे फ़ैसले ले। इसके साथ ही पार्टी की राज्य और जिला इकाइयों को मजबूत बनाने के लिए क़दम उठाए जाने चाहिए। पीके ने यह भी सुझाया है कि पार्टी को सीधे बूथ लेवल से प्रभावी चुनाव तंत्र खड़ा करना चाहिए।
अख़बार ने कहा है कि सीडब्ल्यूसी के सदस्य इस ‘प्लान’ पर चर्चा के लिए कई बार कांग्रेस के दिल्ली स्थित वॉर रूम में मिल चुके हैं और इनमें पार्टी के बड़े नेता जैसे- ग़ुलाम नबी आज़ाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, पी. चिदंबरम अधीर रंजन चौधरी, एआईसीसी महासचिव (प्रशासन) पवन कुमार बंसल, प्रियंका गांधी वाड्रा, आनंद शर्मा, हरीश रावत, अंबिका सोनी सहित कई बड़े नेता शामिल रहे हैं।
कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती
कांग्रेस जानती है कि 2022 का साल उसके लिए कितना अहम है। यह साल उसके राजनीतिक भविष्य का भी फ़ैसला करेगा क्योंकि 2024 में अगर उसे बीजेपी के सामने खड़े होना है तो इस साल होने वाले सात राज्यों के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना ही होगा। उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल जैसे बड़े राज्यों में वह लगभग शून्य हो चुकी है और अगर 2022 में वह खेत रही तो बीजेपी के ख़िलाफ़ बनने वाली किसी फ्रंट की अगुवाई करने का मौक़ा उसके हाथ से निकल जाएगा।
इसके उलट अगर वह बेहतर प्रदर्शन करती है और पेगासस जासूसी मामले, किसान आंदोलन के साथ ही राफ़ेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर सड़क से संसद तक अपनी मौजूदगी को लगातार बनाए रखती है तो वह एंटी बीजेपी फ्रंट की अगुवाई तो कर रही सकती है, 2004 और 2009 का अपना प्रदर्शन भी दोहरा सकती है।