यूपी के मुसलमानों के वोट को लेकर लामबंदी शुरू हो गई है। यह अलग बात है कि प्रदेश का बीस फीसदी मुसलमान तटस्थ बना हुआ है और किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। अभी तक ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असद्दुदीन ओवैसी मुसलमानों वोटों के दावेदार बनकर घूम रहे थे। लेकिन अब नया नाम सुन्नी बरेलवी मसलक के बड़े मौलाना तौकीर रजा खान का नाम भी जुड़ गया है। तौकीर ने कांग्रेस पार्टी के समर्थन का ऐलान किया है। मौलाना तौकीर पहले भी राजनीतिक ऐलान करते रहे हैं लेकिन इस बार का ऐलान यूपी की जिन परिस्थितियों में किया गया है, उसके बहुत अर्थ लगाए जा रहे हैं।
ओवैसी अभी तक सौ से ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशियों का ऐलान कर चुके हैं। उन्होंने चुन-चुन कर मुस्लिम बहुल इलाकों से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। वो पिछले दो महीने से यूपी के तमाम मुस्लिम बहुल शहरों में रैलियां करते घूम रहे थे। उनकी रैलियों में भीड़ जुटने के बाद भी यूपी के मुस्लिम ओवैसी की पार्टी के पक्ष में कोई पॉजिटिव रेस्पॉन्स नहीं दे रहे हैं। ओवैसी को यूपी के मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने सुझाव दिया कि वो सपा प्रमुख अखिलेश यादव से चुनावी गठबंधन कर लें। लेकिन बात न बननी थी और न ही बनी।
सुन्नी बरेलवी मसलक के मौलाना तौकीर रजा आला हज़रत परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बरेलवी मसलक की शुरुआत बरेली के मुहल्ला सौदगरान से आला हजरत ने की थी। अब इसके अनुयायी भारत से लेकर पाकिस्तान तक फैले हुए हैं। तौकीर रजा खान आला हजरत परिवार का राजनीतिक चेहरा हैं। उन्होंने अपना खुद का संगठन इत्तेहाद-ए- मिल्लत काउंसिल बना रखा है।
मौलाना इससे पहले भी तमाम राजनीतिक दलों को आशीर्वाद देते रहे हैं, लेकिन वे अपने खुद के शहर बरेली में मुसलमान मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सके, जहां बरेलवी मसलक के मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा है। बरेली की शहरी सीट बीजेपी को जाती रही है। बरेली कैंट सीट विपक्ष को जाती रही है। बरेली लोकसभा सीट पूर्व मंत्री संतोष गंगवार न जाने कितनी बार जीत चुके हैं।
बरेलवी मसलक का असर पड़ोस के जिले रामपुर, मुरादाबाद, पीलीभीत और शाहजहांपुर में भी है लेकिन मौलाना तौकीर रजा वहां के मुस्लिम मतदाताओं को भी प्रभावित नहीं कर सके।
मौलाना तौकीर जब भी इस तरह की राजनीतिक घोषणा करते हैं तो अपना बचाव पहले तैयार रखते हैं। जब पत्रकार उनसे सवाल करते हैं कि आप मौलाना होकर राजनीतिक दल को समर्थन दे रहे हैं तो उनका जवाब होता है यह इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल की ओर से है। न कि बरेलवी मसलक के मौलाना की ओर से। इस तरह मौलाना ने अपनी काउंसिल और बरेलवी मसलक का घालमेल कर रखा है। आला हजरत परिवार के कई लोग मौलाना तौकीर के स्टैंड से सहमत नहीं रहते हैं लेकिन वे सार्वजनिक बयान नहीं देते, लेकिन ऐसा एक बार जरूर हुआ जब मौलाना तौकीर का विरोध उनके चाचा मौलाना मन्ना रजा खान ने किया था।
विवादों से मौलाना का नाता
मौलाना तौकीर रजा खान का विवादों से पुराना नाता है। 1992 में अयोध्या की घटना के बाद पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को नाराज मुसलमानों का दिल जीतने की धुन सवार हुई। दिल्ली में सत्ता के दलालों ने मौलाना तौकीर रजा को इस तरह पीएमओ में पेश किया कि नरसिम्हा राव मौलाना से प्रभावित हो गए। मौलाना ने बतौर प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का बरेली आने का कार्यक्रम रखवाया। राव को आला हजरत की दरगाह पर जियारत के लिए आना था। चूंकि बाबरी मस्जिद नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान गिराई गई थी, इसलिए मुसलमान उनसे नाराज थे। मौलाना तौकीर रजा खान के चाचा मन्नान रजा खान ने खुलकर राव की इस यात्रा का विरोध किया।
मन्नान रजा बरेली के मुसलमानों को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का बहिष्कार करने की अपील जारी कर दी और यह भी कहा कि जिस दिन पी.वी. नरसिम्हा राव बरेली आएं लोग घरों में रहकर राव को लानत भेजें।
मन्नान रजा खान की इस अपील का जबरदस्त असर हुआ। राव का कार्यक्रम बुरी तरह पिट गया। जैसा कि हर कार्यक्रमों में होता है, इधर-उधर से कुछ स्वयंभू मौलानाओं और मौलाना तौकीर के समर्थक कार्यक्रम में पहुंचे और उन्होंने प्रधानमंत्री की ओर से आयोजित भोज में लजीज खानों का स्वाद लूटा। लेकिन बरेली शहर को एक फायदा यह हुआ कि नरसिम्हा राव ने वहां से आला हजरत एक्सप्रेस ट्रेन भुज (गुजरात) तक चलाने की घोषणा की।
मौलाना तौकीर की ताजा घोषणा कांग्रेस को बहुत फायदा पहुंचा सकेगी, इसमें संदेह है। नाम न छापने की शर्त पर बरेलवी मसलक के ही तमाम मौलाना कांग्रेस को समर्थन वाले बयान से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि इस बार यूपी में जिन हालात में चुनाव हो रहे हैं, उसे देखते हुए सिर्फ मौलाना तौकीर रजा ही नहीं, तमाम मौलानाओं को इस तरह के राजनीतिक बयान से बचना चाहिए।