मल्लिकार्जुन खड़गे बने कांग्रेस के नए अध्यक्ष, थरूर को हराया

05:55 pm Oct 19, 2022 | सत्य ब्यूरो

मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं। उन्होंने इस चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर को हराया है। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में कुल 9385 वोट पड़े और इसमें से 416 वोटों को अवैध करार दिया गया। मल्लिकार्जुन खड़गे को 7897 वोट मिले हैं जबकि शशि थरूर को 1072 वोट मिले। 

खड़गे के अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस मुख्यालय के साथ ही तमाम प्रदेश कांग्रेस कमेटियों और उनके गृह राज्य कर्नाटक में भी जश्न मनाया गया। 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार का बेहद भरोसेमंद माना जाता है। कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण यानी सीईए के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में नतीजों का एलान किया। 

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में सीक्रेट बैलेट के जरिए 17 अक्टूबर को मतदान हुआ था। चुनाव प्रचार के दौरान मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर ने तमाम प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के दफ्तर में जाकर अपने लिए समर्थन मांगा था। 

चुनाव नतीजों के एलान के बाद सोनिया गांधी मल्लिकार्जुन खड़गे के घर पहुंचीं और उन्हें जीत की शुभकामनाएं दी। इस दौरान पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी उनके साथ मौजूद रहीं। खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर उन्हें पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शुभकामनाएं दी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर खड़गे को बधाई दी है। 

खड़गे दक्षिण से आने वाले छठे ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं। इससे पहले बी. पट्टाभि सीतारमैया, एन. संजीव रेड्डी, के. कामराज, एस. निजलिंगप्पा और पीवी नरसिम्हा राव कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। जबकि दूसरे ऐसे दलित नेता हैं, जो कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं। इससे पहले बिहार से आने वाले दलित नेता जगजीवन राम कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। 

इसके साथ ही खड़गे कर्नाटक से आने वाले दूसरे ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं। उनसे पहले एस. निजलिंगप्पा 1968-69 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।

हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में गांधी परिवार ने पूरी तरह तटस्थ रहने की बात कही थी लेकिन मीडिया में आई खबरों में यह कहा जा रहा था कि गांधी परिवार का समर्थन मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ है। लेकिन इस तरह की खबरों पर खड़गे ने कई मीडिया चैनलों को दिए इंटरव्यू में साफ किया था कि वह गांधी परिवार के उम्मीदवार नहीं हैं। 

कौन हैं खड़गे?

खड़गे ने छात्र राजनीति से सियासत में पांव रखा। खड़गे साल 1969 में पहली बार गुलबर्ग शहर कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1972 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता। इसके बाद वह 8 बार विधायक का चुनाव जीते। वह लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी रहे। 

तीन बार मुख्यमंत्री बनने से चूके

खड़गे तीन बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे। खड़गे साल 1999, 2004 और 2013 में कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में थे लेकिन वह मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे। इन तीनों मौकों पर क्रमशः एसएम कृष्णा, धर्म सिंह और सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने थे। 

साल 1976 में पहली बार उन्हें देवराज उर्स की सरकार में मंत्री बनाया गया था। 

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, देवराज उर्स ने 1970 के अंत में जब कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी कांग्रेस (यू) बनाई थी तो खड़गे भी उनके साथ गए लेकिन 1980 के लोकसभा चुनाव के बाद वह कांग्रेस में लौट आए। देवराज उर्स ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ मतभेद की वजह से कांग्रेस छोड़ी थी।

खड़गे कर्नाटक में कांग्रेस की कई सरकारों में मंत्री भी रहे और विधानसभा में विपक्ष के नेता भी। इसके अलावा वह कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष जैसे अहम पद पर भी रह चुके हैं। साल 2009 में जब उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता तो वह राष्ट्रीय राजनीति में आए। मनमोहन सिंह की सरकार में उन्होंने श्रम मंत्री रहने के अलावा रेलवे और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भी संभाला। 

2019 में पहली बार हारे 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जब मल्लिकार्जुन खड़गे हारे तो यह पहला मौका था जब उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में हार का सामना करना पड़ा। लेकिन पार्टी ने भरोसा जताते हुए उन्हें राज्यसभा का सांसद भी बनाया और इसके बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता जैसे अहम पद पर नियुक्त किया। 

चुनौतियों का पहाड़ 

खड़गे के सामने कांग्रेस को जिंदा करने की चुनौती है। गुजरात और हिमाचल के विधानसभा चुनाव सामने हैं और साल 2023 में 10 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खा चुकी है। अब उसके सामने 2024 का चुनाव करो या मरो वाला है। ऐसे में खड़गे को राहुल गांधी के साथ ही पार्टी के तमाम पदाधिकारियों, नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ कदम से कदम मिलाते हुए कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में जीत दिलानी होगी। इसके साथ ही विपक्षी दलों के नेताओं से भी तालमेल कायम रखते हुए एक मजबूत फ्रंट बनाने की चुनौती भी खड़गे के सामने है।

सोनिया से हारे थे जितेंद्र प्रसाद 

साल 2000 में जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए मतदान हुआ था तब जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। लेकिन उन्हें बुरी तरह हार मिली थी। 

उस चुनाव में सोनिया गांधी को 7448 वोट मिले थे जबकि जितेंद्र प्रसाद को सिर्फ 94 मत मिले थे। इसी तरह 1997 में सीताराम केसरी ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था तो उन्हें उस वक्त कांग्रेसी रहे शरद पवार और दिवंगत नेता राजेश पायलट ने चुनौती दी थी। उस चुनाव में सीताराम केसरी को 6224 वोट मिले थे शरद पवार को 882 और राजेश पायलट को 300 वोट मिले थे। उसके बाद से सोनिया और राहुल गांधी को अध्यक्ष पद के चुनाव में किसी तरह की चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा।