कांग्रेस में नहीं थम रही बुज़ुर्ग बनाम नौजवानों की जंग

06:09 pm Dec 21, 2020 | यूसुफ़ अंसारी - सत्य हिन्दी

शनिवार को पांच घंटे तक चली कांग्रेस की मैराथन बैठक के बाद भले ही अध्यक्ष पद को लेकर चला आ रहा गतिरोध ख़त्म होने का दावा किया गया हो। लेकिन सच्चाई यह है कि पार्टी में बुज़ुर्ग बनाम नौजवानों के बीच चली आ रही जंग ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही। बैठक में भले ही अगस्त में सोनिया गांधी को नेतृत्व के सवाल पर चिट्ठी लिखने वाले नेताओं ने अपने तेवर ढीले कर राहुल गांधी के दोबारा अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ़ कर दिया हो लेकिन उनकी नाराज़गी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है।  

बैठक के बाद पार्टी की तरफ़ से बताया गया कि राहुल गांधी पार्टी में कोई भी ज़िम्मेदारी निभाने को तैयार हैं। इससे उनके दोबारा अध्यक्ष पद संभालने का रास्ता साफ़ हो गया है। यह भी बताया गया कि जब बैठक में राहुल ने यह बात कही तो सभी नेताओं ने मेज़ थपथाकर बेहद गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। 

राहुल का समर्थन करना इस बात का संकेत माना जा रहा है कि पार्टी में असंतोष की आग पूरी तरह बुझ गई है। लेकिन असंतोष की बुझ चुकी आग की बची हुई राख में अभी चिंगारियां बाक़ी हैं और ये कभी भी शोला बनकर भड़क सकती हैं।

वरिष्‍ठ नेताओं की उपेक्षा!

दरअसल, बैठक में कई वरिष्ठ नेताओं ने साफ़ तौर पर आरोप लगाया कि कांग्रेस में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि अब पार्टी में वरिष्‍ठ नेताओं की कोई पूछ नहीं रही। उन्‍हें प्रासंगिक नहीं समझा जाता। उन्हें पार्टी पर बोझ समझा जाता है। नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्यों के सामने कांग्रेस के कुछ नेताओं की ये शिकायत इस बात का सुबूत है पार्टी में सबकुछ ठीकठाक नहीं हुआ है।

हालांकि सोनिया और राहुल गांधी ने शिकायत करने वाले नेताओं को भरोसा दिया कि उनकी राय और काम को पार्टी में महत्‍व दिया जाता है। अगर उन्हें लगता है कि उनकी अनदेखी हो रही है तो उनकी ये शिकायत दूर की जाएगी। 

नेताओं के बीच तीखी बहस 

ग़ौरतलब है कि सोनिया गांधी के बुलावे पर इस बैठक में वो नेता भी शामिल हुए जिन्‍होंने अगस्त में नेतृत्व के सवाल पर असहमति जताते हुए उन्हें चिट्ठी लिखी थी। बैठक में बुज़ुर्ग बनाम नौजवानों के मसले पर तीखी बहस हुई। इस पर राहुल ने सफ़ाई पेश करते हुए कहा कि वो सभी वरिष्ठ नेताओं का सम्‍मान करते हैं। इनमें से कई उनके पिता के साथी रहे हैं।

बैठक में शामिल एक नेता के मुताबिक, राहुल गांधी ने कहा कि वह ग़ुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा का बेहद सम्‍मान करते हैं क्‍योंकि ये सभी उनके 'पिता के दोस्‍त' रहे हैं। इन्‍होंने मौजूदा कांग्रेस को मज़बूत बनाने में अहम योगदान दिया है। राहुल ने भविष्य में भी वरिष्‍ठ नेताओं को सम्‍मान का भरोसा दिया। 

असंतुष्ट नेताओं के साथ राहुल गांधी की अगस्‍त के बाद आमने-सामने यह पहली मुलाकात थी। तब इन समेत 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी को प्रभावी और पूर्णकालिक नेतृत्‍व देने और कार्यसमिति के चुनाव कराने की मांग की थी। इससे पार्टी के भीतर तूफ़ान खड़ा हो गया था।

ख़त्म नहीं हुई तल्ख़ी

पिछले पांच महीने से कांग्रेस इसी तूफ़ान के थपेड़े झेल रही है। शनिवार की बैठक उसी तूफान को साधने की कोशिश रही। दोनों धड़ों के बीच तल्ख़ी कम तो हुई लेकिन पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई। दोनों धड़ों के बीच सीधी बहस भले ही न हुई हो लेकिन इशारों में एक-दूसरे पर तीर चलाने में कोई किसी से कम नहीं रहा। कई तीर निशाने पर भी लगे। जिगर के पार भी हुए। ख़लिश भी छोड़ गए।  

एंटनी ने दिया दख़ल

सूत्रों के मुताबिक़ बुज़ुर्ग और नौजवानों के मुद्दे पर चल रही बहस का पटाक्षेप करते हुए एके एंटनी ने कहा कि वो, आज़ाद और आनंद शर्मा समेत कई अन्‍य लोग काफी कम उम्र में ही नेता बन गए थे। उस ज़माने में भी पुरानी पीढ़ी को ऐसी ही दिक़्क़त हुई थी। 

एंटनी ने ऐसा कह कर आज़ाद और आनंद शर्मा जैसे नेताओं को आइना दिखाया। दरअसल, ये दोनों ही नेता पार्टी में बुज़ुर्गों की अनदेखी का मुद्दा उठाते रहते हैं। एंटनी ने भरी सभा में बता भी दिया और जता भी दिया कि नौजवानी के आलम में की गई ग़लतियों की सज़ा बुढ़ापे में भुगतनी पड़ती है।   

अगस्त में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी पर आरोप लगा था कि कि उन्होंने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वालों को बीजेपी का एजेंट कहा। हालांकि बैठक के बाद राहुल गांधी ने इससे इनकार किया था। लेकिन इस बहस से चिट्ठी लिखने वालों की पार्टी के प्रति निष्ठा पर सवाल उठे थे। उन्हें पार्टी से निकालने तक की मांग हुई थी। इसकी टीस इन नेताओं को थी। 

शनिवार की बैठक में मौक़ा देख कर ग़ुलाम नबी आज़ाद और आनंद शर्मा ने कहा कि वो कांग्रेसी थे, हैं और मरते दम तक कांग्रेसी ही रहेंगे। यह इन नेताओं पर बीजेपी से सांठगांठ के लगे आरोपों का जवाब था।

कार्यसमिति के चुनाव का मुद्दा 

बैठक में संगठन के चुनाव का भी मुद्दा उठा। महाराष्‍ट्र के पूर्व सीएम पृथ्‍वीराज चव्‍हाण ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि पार्टी को नामांकन की संस्‍कृति से बाहर निकलना चाहिए और कार्यसमिति के चुनाव कराने चाहिए। इस पर कई नेताओं ने सहमति जताई। सोनिया गांधी को लिखी गई चिट्ठी में भी पार्टी संगठन में चुनाव कराने की मांग की गई थी। 

चिट्ठी पर बवाल मचने के बाद कई वरिष्ठ नेताओं ने टीवी चैनलों पर दिए इंटरव्यू में यही मांग दोहराई थी। अब बैठक में भी यह मांग उठी है। लेकिन इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई कि पृथ्वीराज की इस मांग पर सोनिया और राहुल ने क्या कहा।

बैठक में कई नेताओं ने इस पर हैरानी जताई कि बैठक से पहले ही पार्टी की तरफ़ से यह क्यों कहा गया कि पार्टी में सभी मतभेद ख़त्म हो चुके हैं। बता दें कि शुक्रवार की शाम कांग्रेस कम्युनिकेशन विभाग के चेयरमैन और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता ऱणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि उनके समेत 99.9 फीसदी नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष बनें। बैठक ख़त्‍म होते-होते ग़ुलाम नबी आज़ाद ने तंज़ किया कि अगर प्रवक्‍ता ने शुक्रवार को कह दिया था कि सभी मुद्दे सुलझ गए हैं तो शनिवार को इतनी लंबी चर्चा क्‍यों हुई।

कांग्रेस में घमासान पर देखिए चर्चा- 

राहुल के आक्रामक तेवर

बैठक में राहुल गांधी काफ़ी आक्रामक दिखे। उन्होंने वरिष्ठ नेताओं को कई बार टोका। दरअसल, चिदंबरम ने कहा था कि कांग्रेस तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनाव में अच्‍छा प्रदर्शन करेगी। इस पर राहुल ने फ़ौरन उन्हें टोकते हुए कहा कि पार्टी को किसी मुग़ालते में नहीं रहना चाहिए। तमिलनाडु में डीएमके चुनाव लड़ रही होगी, कांग्रेस तो महज़ उसकी सहयोगी है। सूत्रों के मुताबिक राहुल के टोकने पर चिदंबरम सकपका कर ख़ामोश हो गए। 

राहुल ने कहा कि पार्टी के लिए सिर्फ़ चुनावी मोर्चे पर जीतना ही काफी नहीं है। उसे प्रशासन में बीजेपी और संघ परिवार के लोगों की घुसपैठ से भी लड़ना है।

उन्होंने कहा कि बीजेपी और संघ ने शासन और प्रशासन में इतनी अंदर तक घुसपैठ कर ली है कि कई राज्यों में कांग्रेस सत्ता में वापसी कर भी ले तो ये उसे सरकार नहीं चलाने देंगे। उन्होंने मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हुए बताया कि जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे तो भी संघ सरकार में अपने लोगों के ज़रिए हुक़ुमत चलाता था। उन्‍होंने कहा कि कमलनाथ एक प्रभावी मुख्यमंत्री की तरह कभी काम नहीं कर पाए और सरकार 15 महीनों में गिर गई।

बैठक में जब कुछ नेताओं ने राहुल गांधी से फिर से पार्टी की कमान संभालने की गुज़ारिश की तो वो पहले चुप रहे। लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि बैठक केवल इसी एक बात पर सीमित नहीं रहनी चाहिए। राहुल ने पार्टी की कार्यप्रणाली को लेकर खुलकर बात की। उन्होंने बीजेपी की मज़बूती का उदाहरण दिया। 

उन्‍होंने मध्य प्रदेश और राजस्‍थान को लेकर कहा कि कांग्रेस इन दो राज्‍यों में जीती नहीं, बल्कि बीजेपी हारी। उन्‍होंने छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जीत को असली जीत करार दिया। राहुल ने 'कम्‍युनिकेशन गैप' की बात स्वीकारी और भरोसा दिलाया कि वो अब उन नेताओं से नियमित तौर पर मिला करेंगे जो असहमति जताते हैं। 

दरअसल, शनिवार को हुई इस अहम बैठक को पार्टी के भीतर नेतृत्व के सवाल पर चली आ रही अंदरूनी कलह को ख़त्‍म करने की कोशिशों की शुरुआत माना जा रहा है। इसे पूरी तरह कामयाब तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना कहा जा सकता है कि इससे दोनों तरफ़ जमी बर्फ पिघलनी शुरू हो गई है। लेकिन राख तले चिंगारियां अभी मौजूद हैं।