केरल से कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए। खबरों के मुताबिक़, इस बात की संभावना बन रही है कि शशि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ सकते हैं।
एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि शशि थरूर ने अभी अध्यक्ष का चुनाव लड़ने को लेकर अंतिम फैसला नहीं लिया है लेकिन वह इसे लेकर जल्द ही कोई फैसला कर सकते हैं। थरूर ने मलयालम पत्रिका मातृभूमि में एक लेख लिखा है। इस लेख में थरूर ने कहा है कि कांग्रेस को सीडब्ल्यूसी में भी एक दर्जन पदों के लिए चुनाव की घोषणा करनी चाहिए।
शशि थरूर कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं के गुट G-23 में शामिल हैं। इस गुट के प्रमुख चेहरे गुलाम नबी आजाद पार्टी छोड़ चुके हैं और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी उनके निशाने पर हैं।
G-23 गुट ने साल 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में बड़े बदलाव किए जाने और अध्यक्ष का चुनाव कराए जाने की मांग की थी।
बता दें कि कांग्रेस ने अध्यक्ष के चुनाव के लिए कार्यक्रम जारी कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए नामांकन 24 से 30 सितंबर तक भरे जा सकेंगे जबकि 17 अक्टूबर को वोटिंग होगी और 19 अक्टूबर को मतों की गिनती के साथ ही नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे। पार्टी का कोई भी नेता अध्यक्ष का चुनाव लड़ सकता है।
G-23 गुट के नेताओं ने कुछ दिन पहले द इंडियन एक्सप्रेस से कहा था कि उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में अपना उम्मीदवार जरूर उतारना चाहिए। इस गुट के नेताओं का कहना है कि जिस तरह और जिस तरीके से पार्टी को चलाया जा रहा है उसे बदले जाने की जरूरत है।
शशि थरूर कांग्रेस के जाने-पहचाने चेहरे हैं और पढ़े-लिखे नेता हैं। वह मोदी लहर में भी चुनाव जीतकर आए हैं।
थरूर ने अपने लेख में लिखा है कि एआईसीसी और पीसीसी के डेलीगेट्स को यह तय करने की अनुमति दी जानी चाहिए कि इन प्रमुख पदों पर पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा। इससे आने वाले नेताओं को पार्टी का नेतृत्व करने के लिए एक विश्वसनीय जनादेश देने में मदद मिलेगी।
केरल की तिरुवनंतपुरम सीट से सांसद शशि थरूर ने कहा कि कांग्रेस में नया अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की दिशा में एक शुरुआत है और यह बेहद जरूरी भी है।
गहलोत को अध्यक्ष बनाने की चर्चा
बता दें कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने से इनकार कर चुके हैं और उनकी जगह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अध्यक्ष बनाने की बात सियासी गलियारों में है। लेकिन कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि वे राहुल गांधी को ही कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर देखना चाहते हैं। इस संबंध में थरूर ने लिखा है कि इसे लेकर गांधी परिवार को ही तय करना है कि उनका स्टैंड क्या है लेकिन लोकतंत्र में किसी भी पार्टी में ऐसा नहीं होना चाहिए कि केवल एक ही परिवार उसका नेतृत्व कर सके। उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया से मुद्दे हल हो सकते हैं।
थरूर ने लिखा है कि कांग्रेस अध्यक्ष के पास पार्टी की सभी समस्याओं को दूर करने की योजना होनी चाहिए और भारत के लिए भी उसके पास एक विजन होना चाहिए।
गुलाम नबी आजाद और कई नेताओं के द्वारा पार्टी छोड़ने को लेकर थरूर ने लिखा है कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से इस बात का अफसोस है कि कई नेता पार्टी छोड़ कर गए हैं क्योंकि वह चाहते थे कि यह सभी दोस्त पार्टी में बने रहें और इसमें सुधार के लिए लड़ते रहें।
‘पार्टी को मजबूत करना मकसद’
G-23 गुट का सदस्य होने के बारे में भी थरूर ने अपनी बात सामने रखी है। उन्होंने लिखा है कि G-23 गुट की चिंता पार्टी को फिर से खड़ा करने की है और यह चिंता पार्टी के कामकाज को लेकर थी न कि पार्टी की विचारधारा या उसके मूल्यों को लेकर। कांग्रेस सांसद ने लिखा है कि G-23 गुट के लोगों का मकसद पार्टी को मजबूत करना और इसे फिर से खड़ा करना था न कि इसे बांटना या कमजोर करना।
2001 में हारे थे जितेंद्र प्रसाद
साल 2001 में जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए मतदान हुआ था तब जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। लेकिन उन्हें बुरी तरह हार मिली थी।
उस चुनाव में सोनिया गांधी को 7448 वोट मिले थे जबकि जितेंद्र प्रसाद को सिर्फ 94 मत मिले थे। इसी तरह 1997 में सीताराम केसरी ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था तो उन्हें उस वक्त कांग्रेसी रहे शरद पवार और दिवंगत नेता राजेश पायलट ने चुनौती दी थी। उस चुनाव में सीताराम केसरी को 6224 वोट मिले थे शरद पवार को 882 और राजेश पायलट को 300 वोट मिले थे। उसके बाद से सोनिया और राहुल गांधी को अध्यक्ष पद के चुनाव में किसी तरह की चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा।
टक्कर दे पाएगा G-23 गुट?
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी के कुल 9,100 मतदाता मतदान करेंगे। सवाल यह है कि अगर G-23 गुट ने अपने किसी नेता को चुनाव मैदान में उतार दिया तो क्या वह गांधी परिवार के द्वारा उतारे गए उम्मीदवार को टक्कर दे पाएगा। क्योंकि यहां याद दिलाना होगा कि शरद पवार और राजेश पायलट जैसे बड़े नेता भी सीताराम केसरी से बुरी तरह पराजित हुए थे। देखना होगा कि G-23 गुट क्या करता है।