यूपी में 'मोदी मैजिक' पर लौट रही है बीजेपी, मोदी फिर उतरेंगे मैदान में

03:29 pm Feb 09, 2022 | यूसुफ किरमानी

यूपी में चुनाव जीतने के लिए बीजेपी क्या अपनी रणनीति में कोई बदलाव करने जा रही है? क्या वो प्रधानमंत्री मोदी की छवि को अंतिम हथियार के रूप में भुनाने और इसके सहारे यूपी चुनाव जीतने का बंदोबस्त करने जा रही है? इन दोनों सवालों का जवाब हां में है। यानी मोदी मैजिक के सहारे बीजेपी फिर चमत्कार की उम्मीद कर रही है। मोदी कल यानी 10 फरवरी को सहारनपुर में और  11 फरवरी को कासगंज में रैली को संबोधित करेंगे। इससे पहले उनकी बिजनौर रैली 7 फरवरी को कथित खराब मौसम के बहाने से रद्द कर दी गई, जिस पर बीजेपी की काफी फजीहत भी हुई। 

यूपी में चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले जब कोरोना की कथित तीसरी लहर चरम पर थी तो पीएम मोदी की रैलियां यूपी में लगातार हो रही थीं। लेकिन मतदान की तारीखों की घोषणा का समय नजदीक आते-आते और इलाहाबाद हाईकोर्ट के अनुरोध पर मोदी ने अपनी रैलियां यूपी में रोक दीं। अलबत्ता अमित शाह जरूरत से ज्यादा सक्रिय रहे।

यूपी में पहले चरण का चुनाव एक तरह से मोदी की रैलियों के बिना निकलने जा रहा है। कल की रैली भी उस इलाके में हो रही है, जहां 14 फरवरी को वोट डाले जाने हैं। सरकार समर्थित मीडिया यूपी में बीजेपी की जीत को लेकर आश्वस्त है लेकिन खुद बीजेपी को भरोसा नहीं हो पा रहा है। ध्रुवीकरण कराने की नाकाम कोशिश से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बिगड़े बोल भी वो लहर पैदा नहीं कर पा रहे हैं, जिससे बीजेपी को भरोसा हो सके कि जीत अब सामने खड़ी है। पश्चिमी यूपी की जाट बेल्ट में उसके नेताओं की जो छीछालेदर हुई है, उसके वीडियो वायरल होते रहे हैं। सरधना से चुनाव लड़ रहे विवादित संगीत सोम के काफिले को दो बार गांवों से भगाया गया। बीजेपी सांसद डॉ महेश शर्मा को लौटाया गया। ये अभी ज्यादा पुरानी घटनाएं नहीं हैं। 

प्रधानमंत्री की दो दिन में दो रैलियां कराने से बहुत साफ है कि बीजेपी अपने पुराने हथियार यानी मोदी का इस्तेमाल अब आक्रामक ढंग से करने जा रही है। हालांकि पहले यह कहा गया था कि बीजेपी ने अब इस चुनाव में मोदी का इस्तेमाल नहीं करके चुनाव को योगी बनाम अखिलेश कर दिया है। क्योंकि सरकार समर्थित मीडिया ने भी अपने ओपिनियन पोल में बीजेपी की सीटें और वोट प्रतिशत घटा दिया है। लेकिन बीजेपी फिर से पुरानी रणनीति की तरफ लौट आई है। अब वो पीएम मोदी की छवि के सहारे ही चुनाव जीतने की कोशिश में जुट गई है।

याद कीजिए, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर जब मोदी बार-बार यूपी के दौरे कर रहे थे। हालांकि तब तक चुनाव की तारीखें घोषित नहीं हुईं थीं औ न ही स्वामी प्रसाद मौर्य समेत अन्य मंत्रियों और विधायकों ने बीजेपी छोड़ा था। उस समय मोदी के दौरे से लगता था कि मानों अभी चुनाव हो रहा हो। 20 अक्टूबर को कुशीनगर इंटरनैशनल एयरपोर्ट का उद्घाटन, फिर 16 नवंबर को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का उद्घाटन, 17 नवंबर को बुंदेलखंड में कार्यक्रम, 7 दिसंबर को गोरखपुर में खाद कारखाने का उद्घाटन, 13 दिसंबर को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन और गंगा स्नान, 18 दिसंबर को गंगा एक्सप्रेसवे का शाहजहांपुर में शिलान्यास आदि कार्यक्रमों के दौरान मोदी की रैली का हर भाषण यूपी के चुनाव से जुड़ा था। मोदी मैदान में थे लेकिन उनकी पार्टी से चुनाव लड़ने वाले संभावित प्रत्याशी मोदी छवि पर आत्ममुग्ध और जब वो चुनाव का सामना करने पहुंचे तो गांवों में पोस्टर चिपक गए कि इस गांव में बीजेपी नेताओं का आना मना है। 

मोदी ने इधर कई वर्चुअल रैलियां यूपी के कई जिलों के लिए कीं। 7 फरवरी को जब बिजनौर की रैली रद्द की गई तो उसी दिन मोदी ने वहां के लिए वर्चुअल रैली की। लेकिन मोदी की इन वर्चुअल रैलियों से यूपी चुनाव में कोई असर नहीं दिखा। बीजेपी सांसदों, प्रत्याशियों पर जिम्मेदारी दी गई थी कि वे प्रधानमंत्री की वर्चुअल रैली को सुनवाने का इंतजाम अपने क्षेत्रों में करें लेकिन ये इंतजाम भी बेमन वाले रहे। जिला बीजेपी कार्यालयों तक में सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ता आए, जबकि वहां आम मतदाताओं को लाने का निर्देश था। इसी तरह होटलों में केंद्रीय मंत्री  स्मृति ईरानी से लेकर राजनाथ सिंह, धर्मेंद्र प्रधान तक ने प्रभावी मतदाता सम्मेलन आयोजित किए लेकिन होटलों में आयोजित ये सम्मेलन लंच-डिनर तक सीमित रहे।

बीजेपी ने यूपी चुनाव जीतने के लिए सामाजिक प्रतिनिधि सम्मेलन की भी योजना बनाई थी। उसने अक्टूबर 2021 में ऐसे 27 सम्मेलन आयोजित किए, जिसमें विभिन्न जाति प्रतिनिधियों को आने का न्यौता भेजा गया।  ब्राह्मण, दलित, प्रजापति, केवट, यादव प्रतिनिधि सम्मेलन भी पार्टी कार्यकर्ता सम्मेलन बन कर रह गए।

फिर इस कार्यक्रम को प्रभावी मतदाता सम्मेलन में बदल दिया गया। बहुत साफ है कि आम मतदाताओं की भागीदारी बीजेपी के इन दोनों कार्यक्रमों में नहीं हो सकी। इधर कई दिनों से प्रभावी मतदाता सम्मेलन भी बंद कर दिया गया है। पश्चिमी यूपी की लगभग सीटें पहले चरण (10 फरवरी) और दूसरे चरण (14 फरवरी) में कवर हो जाएंगी। इसके बाद सेंट्रल यूपी में तीसरा चरण (20 फरवरी) और उसके आगे पूर्वांचल का समर शुरू होगा।

बहुत मुमकिन है कि चुनाव आयोग 15 फरवरी के आसपास फिर से कोरोना के हालात की समीक्षा करे और रैलियों की अनुमति दे दे। क्योंकि अब ये प्रचार सरकार की तरफ से शुरू हो चुका है कि कोरोनाकाल खत्म होने वाला है। इस तरह मोदी की ज्यादातर रैलियां अब पूर्वांचल की तरफ होंगी। इन रैलियों में बड़ी-बड़ी भीड़ जुटाकर और दिखाकर बीजेपी यूपी की सत्ता पर अपना दावा मजबूती के साथ रख सकेगी। फिर वहां अयोध्या और काशी भी हैं।

पश्चिमी यूपी में मोदी की जितनी भी वर्चुअल रैलियां हुईं, उनमें अखिलेश यादव और उनका परिवार निशाने पर रहा। जयंत चौधरी पर मोदी खामोश रहे लेकिन अमित शाह और बाकियों ने उन्हें जरूर पुचकारा। लेकिन पूर्वांचल में अयोध्या और काशी के अलावा किसको निशाने पर रखा जाता है। यह देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि ये इलाका ओबीसी के छोटे छत्रपों यानी  मौर्य, राजभर, केवट, मल्लाह, कुर्मियों या फिर बहनजी के दलितों का है। यहां के वोटरों को स्वामी प्रसाद मौर्य, ओमप्रकाश राजभर, पुष्पा पटेल और दीगर नेता डील करते हैं। इसी तरह बीएसपी प्रमुख मायावती की पार्टी को भी यहां ठीकठाक वोट मिलते हैं। 

पश्चिमी यूपी में उसे जिन हालात का सामना करना पड़ा, उसे वैसे हालात पूर्वांचल में नहीं लग रहे हैं। पूर्वांचल के मुकाबले पश्चिमी यूपी खुशहाल है। यहां के किसानों की हालत पूर्वांचल के किसानों से बेहतर है। लेकिन जब पश्चिमी यूपी के लोग इतना नाराज हैं तो पूर्वांचल में होने वाली मोदी की आगामी रैलियां कितना मदद कर पाएंगी, इसका जवाब 10 मार्च को मिलेगा।

चुनाव वाले दिन रैलियां क्यों

पश्चिमी यूपी की 58 सीटों पर 10 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। लेकिन उसी दिन सहारनपुर में मोदी की और मुख्यमंत्री योगी, अन्य केंद्रीय मंत्रियों की पश्चिमी के विभिन्न इलाकों में रैलियां हैं। यह कैसे मुमकिन नहीं है कि 10 फरवरी को होने वाली रैलियां आसपास के इलाकों को प्रभावित नहीं करेंगी। होना तो यह चाहिए जिन दिन जिन सीटों पर मतदान हो, उसके आसपास के इलाकों में रैलियों और रोड शो पर बैन लगना चाहिए। लेकिन न अभी तक इसका संज्ञान न तो केंद्रीय चुनाव आयोग ने और न ही यूपी के विपक्षी दलों ने लिया है। बीजेपी चूंकि साधन संपन्न पार्टी है, वो इस छूट का जबरदस्त फायदा उठा रही है। बाकी दल इस मामले में फिसड्डी हैं। लेकिन उनका ऐतराज न करना भी हैरान करने वाला है।