भारत की आज़ादी और आज़ादी के साथ ही 'धार्मिक बहुलता' के आधार पर हुए बँटवारे का ख़्याल आते ही एक सवाल मन में आता है कि अगर बँटवारा नहीं होता तो आज क्या होता? क्या भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश की जनता के हालात आज से बेहतर होते या बदतर होते? क्या अखंड भारत धर्म के नाम पर अधिक बँटा होता या जुड़ा होता? क्या विकास के पायदानों में वह ऊपर चढ़ा होता या नीचे होता? पड़ोसी चीन के साथ हमारे संबंध कैसे होते?
आइए, एक अंदाज़ा लगाते हैं कि देश बँटा नहीं होता तो आज क्या होता?
1. नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री नहीं होते
आप जानते होंगे कि मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना को आशंका थी कि आज़ाद होने के बाद भारत में एक-तिहाई अल्पसंख्यक मुसलमानों के हितों और अधिकारों की रक्षा नहीं हो पाएगी। इसलिए वे चाहते थे कि आज़ाद भारत में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के नाम से दो राज्य (स्टेट) बनें और दोनों भारत नामक महासंघ का हिस्सा रहें। लेकिन इसका मतलब था 'कमज़ोर केंद्र और ताक़तवर राज्यों की व्यवस्था' जो कांग्रेस के नेताओं को मंज़ूर नहीं थी। ऐसे में गाँधीजी ने जिन्ना की आशंकाओं को ख़त्म करने के लिए यह प्रस्ताव दिया कि वे ही अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री बन जाएँ और अपने हिसाब से मंत्री चुनें, संविधान बनाएँ। जिन्ना ने यह बात नहीं मानी, न ही नेहरू और पटेल को यह स्वीकार्य थी। कारण स्पष्ट थे। लेकिन अगर जिन्ना मान जाते तो बँटवारा टल जाता और तब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नहीं, मुहम्मद अली जिन्ना होते।
(पढ़ें - जिन्ना बन जाते प्रधानमंत्री तो क्या टल जाता बँटवारा?)
2. गाँधीजी को तो मरना ही था
देश के बँटवारे के लिए महात्मा गाँधी किसी भी तरह ज़िम्मेदार नहीं थे लेकिन कुछ कट्टर हिंदूवादी दल उन्हीं को विभाजन का दोषी मानते थे। इसी के चलते नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या कर दी। अगर देश नहीं बँटता तो विभाजन के कथित 'अपराध’ में गाँधीजी की हत्या भले ही नहीं होती लेकिन जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने का दोषी ठहराकर उनकी अवश्य हत्या की जाती।
3. भारत ज़्यादा संघीय होता
अगर देश नहीं बँटता और संविधान बनते समय जिन्ना देश के प्रधानमंत्री होते तो निश्चित रूप से अखंड भारत का स्वरूप कुछ और होता। अमेरिका की तरह राज्यों को ज़्यादा अधिकार होते और केंद्र को राज्यों पर अपनी मनमानी थोपने का अधिकार नहीं होता।
4. जम्मू-कश्मीर का विवाद नहीं होता
भारत बँटा नहीं होता तो यह विवाद ही नहीं होता कि जम्मू-कश्मीर भारत में रहे या पाकिस्तान में। चूँकि यह प्रांत एक रजवाड़ा था इसलिए हिंदू राजा की इच्छा के अनुसार ही यह हिंदुस्तान में आता या फिर पाकिस्तान में लेकिन रहता अखंड भारत का ही हिस्सा। और जब अखंड भारत का ही हिस्सा रहना है तो झगड़ा कैसा?
5. भारत-पाक युद्ध नहीं होते, न ही बांग्लादेश बना होता
देश एक रहता तो पहले कश्मीर के नाम पर और बाद में पूर्वी पाकिस्तान के नाम पर चार-चार युद्ध नहीं होते। लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता कि पाकिस्तान में तब पूर्वी भाग को कितनी स्वायत्तता दी जाती।
अगर पूर्वी पाकिस्तान की बंगाली जनता की इच्छा को दरकिनार कर दिया जाता तो भारत महासंघ में दो की जगह तीन राज्य (स्टेट) होते - हिंदुस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान। लेकिन शायद यह नौबत न भी आती क्योंकि अखंड भारत की एक संयुक्त सेना होती और पाकिस्तान में सैनिक शासन की स्थिति शायद नहीं बनती।
6. चीन ही हमारा एकमात्र शत्रु होता
भारत बँटा नहीं होता, तब भी चीन से हमारा युद्ध तो होता ही क्योंकि भारत-चीन युद्ध का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन तब भारतीय सेना ज़्यादा शक्ति के साथ उसका मुक़ाबला कर पाती क्योंकि भारतीय सेना को अपने संसाधन चीन और पाकिस्तान के बीच बाँटने नहीं पड़ते।
7. अयोध्या, काशी, मथुरा का क्या होता?
भारत न बँटा होता, तब भी अयोध्या, काशी और मथुरा के विवाद तो बने ही रहते। मगर क्या एक-तिहाई मुसलमानों वाले अखंड भारत में इतनी आसानी से बाबरी मस्जिद ढहा दी जाती? ख़ासकर तब जबकि मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान में भी कई मंदिर और गुरुद्वारे इसकी प्रतिक्रिया के शिकार हो सकते थे। कहना मुश्किल है।
8. केंद्र में बीजेपी की सरकार होती… या नहीं होती?
अगर भारत बँटा न होता तो आज केंद्र में हिंदू-हितैषी बीजेपी की बहुमत वाली सरकार नहीं होती। 140 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत में 543 सांसदों वाली लोकसभा है जिसमें बीजेपी के क़रीब 300 सांसद हैं यानी आधे से ज़्यादा। लेकिन अगर भारत की आज की आबादी में पाकिस्तान और बांग्लादेश की 40 करोड़ की आबादी जोड़ दी जाए तो आनुपातिक रूप से क़रीब 154 सीटें और जुड़ जाएँगी और तब 687 सीटों वाली लोकसभा में बीजेपी का आँकड़ा 50% से कम पर आ जाता।
यानी विभाजन न होने की स्थिति में अखंड भारत की केंद्र सरकार में बीजेपी की सरकार नहीं भी हो सकती थी। यह भी संभव था कि वह अन्य दलों के सहयोग से तब भी मिली-जुली सरकार बना पाती मगर वह इतना निरंकुश नहीं होती जैसी कि आज है।
9. देश का झंडा तिरंगा होता?
यह भी एक बड़ा सवाल है कि क्या तब भी तिरंगा ही देश का झंडा होता। शायद हाँ, शायद ना। हो सकता है, तिरंगे के केसरिया और हरे रंगों को हिंदुओं और मुसलमानों का प्रतीक मानकर मुस्लिम लीग इसे स्वीकार कर लेती। या फिर इसका रूप थोड़ा-बहुत बदला हुआ होता।
10. ग़रीबी ऐसी ही रहती
ऊपर हमने जिन 9 बिंदुओं पर बात की, उन सबमें होने या न होने की संभावनाएँ बहुत हैं। लेकिन एक बात है जिसके बारे में हम निश्चितता के साथ कह सकते हैं। वह यह कि भारत न भी बँटता, तब भी जनता की स्थिति में कोई फ़र्क़ नहीं आना था। और इसका वाजिब कारण है। भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश के आज के हालात को देखें तो तीनों में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं दिखता। आर्थिक और सामाजिक विषमता, अशिक्षा, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी आदि के मामलों में तीनों में ग़ज़ब की समानता है। इसलिए अगर देश बँटा न भी होता तो भी देश की जनता के हालात आज भी वैसे ही होते।
निष्कर्ष यह कि 1947 में देश बँटा होता या न बँटा होता, इसको सत्ता मिली होती या उसको मिली होती, यह प्रधानमंत्री बना होता या वह प्रधानमंत्री बना होता, अमीर तब भी अमीर होते और ग़रीब तब भी ग़रीब होते। इसलिए आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ पर इस माथापच्ची का कोई मतलब नहीं कि देश बँटा नहीं होता तो क्या होता।