अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर ने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ से मंकीपॉक्स वायरस का नाम बदलने के लिए कहा है। इसने कहा है कि इस नाम से नस्लवाद और कलंक जुड़ा है। इस कलंक को ठीक उस तरह से देखा जा सकता है जिसमें कोरोना वायरस के नये वैरिएंट के नाम को लेकर विवाद उठा था। नये वैरिएंट का जिस देश में पता चल रहा था उस देश के नाम से इसको बुलाया जाने लगा था और इस पर संबंधित देशों ने आपत्ति दर्ज कराई थी। ऐसा करने वालों में भारत भी था।
भारत सरकार ने पिछले साल मई महीने में बी.1.617 को लेकर आपत्ति जताई थी। कोरोना के नये वैरिएंट पर विवाद के बीच ही डब्ल्यूएचओ ने इसके लिए एक समूह का गठन किया था। समूह ने सिफारिश की थी कि नये वैरिएंट के लिए ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों- अल्फा, बीटा, गामा आदि उपयोग किया जाए। समूह की ओर से कहा गया था कि यह ग़ैर-वैज्ञानिक गतिविधियों में चर्चा करने के लिए आसान और अधिक व्यावहारिक होगा। बाद में यही नाम प्रचलन में रहे।
अब वैसा ही कुछ विवाद मंकीपॉक्स नाम को लेकर उठ रहा है। अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर में इस बीमारी के अधिक मामले आए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के किसी भी अन्य शहर की तुलना में यहाँ अब तक 1,092 संक्रमणों का पता चला है। यहीं से आपत्ति भी आई है। 'मंकीपॉक्स' को डब्ल्यूएचओ ने पिछले हफ्ते ही वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है।
एएफ़पी की एक रिपोर्ट के अनुसार, न्यूयॉर्क शहर के सार्वजनिक स्वास्थ्य आयुक्त अश्विन वासन ने डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस एडनॉम को लिखे एक पत्र में कहा, 'हमारी चिंता बढ़ रही है कि 'मंकीपॉक्स' वायरस का संभावित विनाशकारी और कलंक वाले प्रभाव पहले से ही कमजोर समुदायों पर और ज़्यादा हो सकते हैं।'
वासन ने मंकीपॉक्स शब्द के नस्लवादी इतिहास का ज़िक्र किया है जिसमें इस जैसी शब्दावली नस्ल, रंग और समुदायों को नीचा दिखाने के लिए प्रयोग की जाती थी।
उन्होंने आगे कहा है कि मौजूदा प्रकोप को बताने के लिए 'मंकीपॉक्स' शब्द का उपयोग जारी रखना नस्लवाद और कलंक की इन दर्दनाक भावनाओं को फिर से भड़का सकता है। उन्होंने कहा है कि यह शब्द ख़ासकर काले रंग के लोगों और अन्य लोगों के साथ-साथ LGBTQIA+ समुदायों के सदस्यों के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा है कि यह संभव है कि इस नाम के साथ जुड़े कलंक के कारण इस बीमारी से पीड़ित लोग अहम स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से जुड़े ही नहीं।
डब्ल्यूएचओ ने सोमवार को कहा है कि इस साल अब तक 75 देशों में 16,000 से अधिक पुष्ट मामले दर्ज किए गए हैं।
बता दें कि मंकीपॉक्स एक वायरल बीमारी है जिसमें चेचक जैसे लक्षण होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, यह आमतौर पर दो-चार सप्ताह तक दिखने वाले लक्षणों के साथ एक अपने आप ठीक होने वाली बीमारी है। मंकीपॉक्स एक संक्रामक बीमारी है जो संक्रमित जानवरों, आमतौर पर रोडेंट से मनुष्यों में फैलती है।
वायरस संक्रमित व्यक्ति या जानवर के निकट संपर्क में आने से लोगों में फैलता है। वायरस को पहली बार 1958 में मैकाक के एक समूह में खोजा गया था, जिसका अध्ययन अनुसंधान उद्देश्यों के लिए किया जा रहा था।
यह सिरदर्द और बुखार से शुरू होता है। ये सामान्य चीजें हैं जो एक वायरल संक्रमण होने पर शरीर में होती हैं। संक्रमण होने से शरीर की रक्षा प्रणाली काम शुरू करती है और इस वजह से सिरदर्द और बुखार होता है। सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द होता है। फिर, एक या दो सप्ताह के भीतर कुछ लोगों के शरीर पर दाने हो जाते हैं जो फुंसी के रूप में उठ आते हैं। लेकिन जब शरीर की रक्षा प्रणाली पूरी तरह एक्टिव हो जाती है तो वह उस संक्रमण को ख़त्म कर देती है। लेकिन इसके लिए मरीज की अच्छी तरह डॉक्टर की देखभाल की ज़रूरत होती है।