भारत के चीफ जस्टिस एन.वी.रमना ने पत्रकारों को नसीहत देते हुए कहा है कि अगर पत्रकार खुद को किसी विचारधारा या सरकार (स्टेट) से जोड़ता है तो यह उसकी बर्बादी का नुस्खा है।
सीजेआई रमना का यह बयान ऐसे मौके पर आया है, जब देश के तमाम नामी गिरामी पत्रकार टीवी से लेकर अखबारों तक में सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी का समर्थन करते हुए नजर आते हैं। यही वजह है कि इन्हें 'गोदी मीडिया' नाम दिया गया। टीवी चैनलों की बहसों से और अखबारों के पन्नों से जनता के मुद्दे गायब होते जा रहे हैं।
चीफ जस्टिस ने बुधवार को मुंबई प्रेस क्लब के एक पुरस्कार समारोह को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए यह बात कही। वो दसवें रेडइंक्स पुरस्कार समारोह के वर्चुअल मुख्य अतिथि थे। मुंबई प्रेस क्लब पत्रकारिता में शानदार काम करने वालों को रेडलिंक पुरस्कार से सम्मानित करता है।
चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि बेहतर लोकतंत्र तभी आगे बढ़ेगा जब उस देश का मीडिया आजाद और निडर होगा। लेकिन मीडिया वैचारिक पूर्वाग्रहों से बचे। आजकल खबरों में वैचारिक रुझान और पूर्वाग्रह साफ दिखाई देता है।
उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकार भी किसी जज की तरह ही होते हैं। जिस तरह जज अपनी विचारधारा और आस्था को एक तरफ रखकर किसी से प्रभावित हुए बिना फैसले लेते हैं, ठीक उसी तरह प्रेस को भी काम करना चाहिए। पत्रकार सिर्फ तथ्य बताएं और उस मामले की सच्ची तस्वीर पेश करें। प्रेस को न्यायपालिका पर विश्वास करना चाहिए।
सीजेआई ने कहा -
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इन दिनों सोशल मीडिया पर अदालतों के फैसलों की अपने-अपने ढंग से व्याख्या की जा रही है। जरूरी है कि मीडिया न्यायपालिका पर यकीन करे और उसे ऐसे हमलों से बचाए।
चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि प्रेस का यह भी काम नहीं बल्कि कर्तव्य है कि वो न्यायपालिका को बुरी ताकतों के हमलों से बचाए। उन्होंने मीडिया और न्यायपालिका के साथ-साथ चलने पर जोर देते हुए कहा कि मिशन लोकतंत्र और राष्ट्रीय हितों के लिए हम लोगों को साथ-साथ चलना होगा।