शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा भले ही कांग्रेस से निकलकर अपनी अलग से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना ली, लेकिन वे राजनीति में कांग्रेसी संस्कृति के समर्थक रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का कद ऐतिहासिक रूप से छोटा होने पर उन्होंने चिंता जताई थी। और 2019 में जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आये और प्रदेश में नया राजनीतिक समीकरण बनने लगा तो भी उन्होंने यह बात दोहराई थी। उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र ही नहीं, देश को भी कांग्रेस संस्कृति वाली राजनीति की ज़रूरत है क्योंकि इसी के माध्यम से विविधता से भरे देश की एकता को मज़बूती प्रदान की जा सकती है। लेकिन क्या कांग्रेसी राजनीति के समर्थक शरद पवार किसी नए राजनीतिक समीकरण की जोड़ तोड़ में लगे हुए हैं?
शनिवार को एक गुजराती समाचार पत्र में ख़बर प्रकाशित हुई कि गौतम अडानी के फ़ार्म हाउस पर शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल और अमित शाह की मुलाक़ात हुई और यह बैठक देर रात तक चली। इस ख़बर के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में बयानबाज़ी शुरू हो गयी कि क्या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिलाकर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन करने वाली है।
शिवसेना की तरफ़ से ऐसी किसी मुलाक़ात को खारिज किया गया और कहा गया कि यह ख़बर झूठी है। बाद में संजय राउत का बयान आया कि कोई बड़ा नेता यदि केंद्रीय गृह मंत्री से मिलता है तो इसमें ग़लत क्या है। राष्ट्रवादी कांग्रेस ने भी उस ख़बर पर अपनी सफ़ाई दी थी।
राजस्व मंत्री और कांग्रेस नेता बालासाहेब थोरात का भी इस संबंध में बयान आया था। उन्होंने कहा, शरद पवार के स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिए उनकी सुप्रिया सुले से फ़ोन पर लम्बी बात हुई थी। चर्चा के दौरान सुप्रिया सुले ने ही इस बैठक का ज़िक्र किया और बताया कि किस तरह से विपक्षी दल के लोग प्रदेश की सरकार के लिए अड़ंगे डालने का प्रयास कर रहे हैं। थोरात ने कहा कि ऐसी ख़बरों को हम लोग कोई महत्व देते नहीं हैं। लेकिन इन सबके बावजूद होली के रंगों से ज़्यादा महाराष्ट्र की राजनीति में इस ख़बर का रंग चढ़ा रहा। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल तक अनेक नेताओं ने पवार-शाह बैठक पर बयान दिए। यह संकेत दिए कि बैठक हुई है और लम्बी चर्चा भी।
बीजेपी नेताओं की इस प्रकार की बयानबाज़ी कुछ अलग ही संकेत देती है। एक बात जो स्पष्ट रूप से नज़र आती है वह यह कि जब से प्रदेश में नयी सरकार बनी है कोई भी महीना ऐसा नहीं गुजरा होगा जब बीजेपी ने उद्धव ठाकरे की सरकार को अस्थिर नहीं बताया हो! पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हों या उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी या फिर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल, सबने यह सरकार कब गिरेगी इसकी तारीख़ें तक घोषित की थी। लेकिन उसके बावजूद ऐसा कुछ नहीं हुआ। बीजेपी नेताओं के सरकार को लेकर बयान अब किसी रणनीति का हिस्सा लगते हैं। महाविकास आघाडी के संख्या बल को देखते हुए तो सरकार गिराना मुश्किल खेल लगता है। और शायद इसी के चलते यह रणनीति तय की गयी हो कि सरकार के भविष्य को लेकर सवाल उठाते रहो। और इस रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका मीडिया निभा रहा है।
देवेंद्र फडणवीस दिल्ली जाकर मोदी या शाह से मुलाक़ात भी करते हैं तो मुंबई में मीडिया में ख़बरें बनने लगती हैं ‘उद्धव सरकार ख़तरे में’।
लेकिन इसके विपरीत जो धरातल पर दिख रहा है वह यह कि स्थानीय निकायों में बीजेपी में तेज़ी से टूट हो रही है। सांगली और जलगांव महानगरपालिका में इस टूट के कारण बीजेपी की सत्ता चली गयी। यही नहीं, विधानसभा चुनावों से पहले जो नेता राष्ट्रवादी और कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे उनकी भी घर वापसी शुरू हो चुकी है। और शायद यही बीजेपी की रणनीति होगी कि सरकार की अस्थिरता की बात दोहराते रहो ताकि दूसरे दलों से आये कार्यकर्ताओं और नेताओं का मोहभंग न हो।
ताज़ा घटनाक्रम को भी बीजेपी नेताओं ने कुछ इसी तर्ज पर भुनाने की कोशिश की। हालाँकि आज सुबह प्रफुल्ल पटेल की तरफ़ से बयान आया और इस बात का खुलासा किया गया कि ऐसी कोई बैठक नहीं हुई। अब सवाल उठता है कि शरद पवार जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या किसी अन्य बड़े बीजेपी नेता से मिलते हैं तो यह सवाल क्यों उठने लगते हैं कि कुछ खिचड़ी पक रही है? महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस में नए गठबंधन की जब कवायद चल रही थी, उस दौरान भी पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की थी। उस समय भी यही ख़बरें चलीं कि पवार और मोदी के बीच कुछ गठजोड़ को लेकर चर्चा हुई। लेकिन बाद में प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा, रातों रात हटा, देवेंद्र फडणवीस के इशारे पर अजीत पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस तोड़ने की कोशिश भी की और उस पूरे खेल का पर्दाफाश करते हुए पवार ने महाविकास आघाडी की सरकार भी बनवाई।
लेकिन किंगमेकर और महाविकास आघाडी सरकार के गार्डियन की भूमिका निभा रहे शरद पवार की विश्वसनीयता पर ही सवाल क्यों खड़े हो जाते हैं? क्या पवार विश्वसनीय नहीं हैं? महाराष्ट्र में शरद पवार की राजनीति को समझने वाले या उन्हें क़रीब से देखने वाले लोग अक्सर कहते हैं कि पवार के वक्तव्यों और उनकी राजनीतिक चालों को समझ पाना बहुत मुश्किल है। गंभीर मुद्दे पर भी जिस सहजता से वह प्रतिक्रिया देते हैं, उससे आप यह अंदाज नहीं लगा सकते हैं कि उनकी रणनीति क्या होगी। महाराष्ट्र में अजीत पवार के देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिलाने वाले सवाल पर भी पवार ने सहजता से यह बात कह डाली थी कि अजीत ने उनसे कुछ बीजेपी नेताओं से सरकार बनाने को लेकर चर्चा चलने की बात कही थी। इस ताज़ा घटनाक्रम में भी प्रफुल्ल पटेल की तरफ़ से खुलासा आया। यह खुलासा जल्दी भी आ सकता था। लेकिन इस खुलासे में देरी को भी एक रणनीति ही कहा जा रहा है।
पिछले तीन दिन से बयानबाज़ी पवार-शाह की बैठक पर केंद्रित हो गयी। परमबीर सिंह, सचिन वाजे का मुद्दा चर्चा के केंद्र से हट गया। यही नहीं, कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले, अजीत पवार और संजय राउत में भी जो आपसी बयानबाज़ी चल रही थी, उस पर भी विराम लग गया। लेकिन क्या राजनीति यहीं थम जाएगी या फिर ‘राजनीति में कोई किसी का स्थायी दुश्मन या स्थायी मित्र नहीं होता’ जैसी कहावत पर अटकलों का दौर या साथी दलों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहेंगे?