मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर यह आरोप लगाए जाने के बाद कि उन्होंने निलंबित पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाजे को हर महीने 100 करोड़ रुपये उगाही का लक्ष्य दिया था, महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया है। बीजेपी के तमाम आरोपों के बीच शिव सेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में लिखे ताज़ा संपादकीय में उस पर पलटवार किया है।
शिव सेना ने ‘सामना’ में लिखा है, “परमबीर सिंह भरोसे लायक अफ़सर बिल्कुल नहीं हैं। उन पर विश्वास नहीं रखा जा सकता है, कल तक बीजेपी का ऐसा मत था परंतु उसी परमबीर सिंह को आज बीजेपी सिर पर बैठाकर नाच रही है।”
आगे लिखा गया है कि परमबीर सिंह को राज्य सरकार ने पुलिस आयुक्त पद से हटा दिया है। एंटीलिया विस्फोटक मामले में एपीआई सचिन वाजे एनआईए की हिरासत में हैं। वह ये पूरा मामला सही ढंग से संभाल नहीं पाए व पुलिस विभाग की बदनामी हुई, ऐसा मानकर सरकार ने उन्हें पुलिस आयुक्त को पद से हटा दिया।
‘सचिन वाजे को हटाकर क्या फायदा? पुलिस आयुक्त को हटाओ’, बीजेपी की यही मांग थी। अब उसी परमबीर सिंह को बीजेपी वाले कंधे पर उठाकर बाराती की तरह मस्त होकर नाच रहे हैं और यह राजनीतिक विरोधाभास है।
देखिए, इस विषय पर चर्चा-
पत्र लिखने पर सवाल
संपादकीय में लिखा है, “सरकार ने परमबीर सिंह के खिलाफ कार्रवाई की है इसलिए उनकी भावनाओं का विस्फोट समझ सकते हैं। परंतु सरकारी सेवा में अत्यंत वरिष्ठ पद पर विराजमान व्यक्ति द्वारा ऐसा पत्राचार करना नियमोचित है क्या? गृह मंत्री पर आरोप लगाने वाला पत्र मुख्यमंत्री को लिखा जाए और उसे प्रसार माध्यमों तक पहुंचा दिया जाए, यह अनुशासन के तहत उचित नहीं है।”
संपादकीय में परमबीर सिंह की तारीफ़ करते हुए कहा गया है कि उन्होंने कई जिम्मेदारियों का बेहतरीन ढंग से निर्वहन किया। इनमें सुशांत राजपूत प्रकरण और कंगना रनौत के मामले का जिक्र किया गया है। हालांकि यह भी कहा गया है कि परमबीर सिंह को थोड़ा संयम रखना चाहिए था।
संपादकीय में सवाल उठाया गया है कि ऐसी शंका है कि क्या ठाकरे सरकार को परेशानी में डालने के लिए कोई परमबीर सिंह का इस्तेमाल कर रहा है?
यह भी सवाल उठाया गया है कि जिस सचिन वाजे के कारण ये पूरा तूफान खड़ा हुआ है, उन्हें इतने असीमित अधिकार दिए किसने? संपादकीय में लिखा है, “सचिन वाजे ने बहुत ज्यादा उधम मचाया। उसे समय पर रोका गया होता तो मुंबई पुलिस आयुक्त पद की प्रतिष्ठा बच गई होती। परंतु इस पूर्व आयुक्त द्वारा कुछ मामलों में अच्छा काम करने के बावजूद वाजे प्रकरण में उनकी बदनामी हुई।”
‘सामना’ में आगे लिखा गया है कि देवेंद्र फडणवीस दिल्ली जाकर मोदी-शाह से मिलते हैं और दो दिन में परमबीर सिंह ऐसा पत्र लिखकर खलबली मचाते हैं। उस पत्र के आधार को लेकर विपक्ष जो हंगामा करता है, यह एक साजिश का ही हिस्सा नजर आता है।
महाराष्ट्र में विपक्ष ने केंद्रीय जांच एजेंसियों का निरंकुश इस्तेमाल शुरू किया है, महाराष्ट्र जैसे राज्य के लिए ये उचित नहीं है। एक तरफ राज्यपाल राजभवन में बैठकर अलग ही शरारत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों के माध्यम से दबाव का खेल खेल रही है।
संपादकीय में लिखा है, ‘कहीं किसी हिस्से में चार मुर्गियां और दो कौवे बिजली के तार से करंट लगने से मर गए तब भी केंद्र सरकार महाराष्ट्र में सीबीआई अथवा एनआईए को भेज सकती है, ऐसा कुल मिलाकर नजर आ रहा है।’
‘सामना’ में लिखा गया है, “महाराष्ट्र के संदर्भ में कानून व व्यवस्था आदि ठीक न होने का ठीकरा फोड़ा जाए और राष्ट्रपति शासन का हथौड़ा चलाया जाए, यही महाराष्ट्र के विपक्ष का अंतिम ध्येय नजर आता है और इसके लिए नए प्यादे तैयार किए जा रहे हैं। परमबीर सिंह का इस्तेमाल इसी तरह से किया जा रहा है, यह अब स्पष्ट दिखाई दे रहा है।”
यह भी लिखा गया है कि परमबीर सिंह के निलंबन की मांग कल तक महाराष्ट्र का विपक्ष कर रहा था और आज परमबीर सिंह विरोधियों की ‘डार्लिंग’ बन गए हैं और उनके कंधे पर बंदूक रखकर सरकार पर निशाना साध रहे हैं।
सरकार के पास है बहुमत
अंत में संपादकीय कहता है कि महाविकास आघाड़ी सरकार के पास आज भी अच्छा बहुमत है। बहुमत पर हावी होने की कोशिश करोगे तो आग लगेगी, यह चेतावनी न होकर वास्तविकता है। किसी अफ़सर के कारण सरकार बनती नहीं और गिरती भी नहीं है, यह विपक्ष को भूलना नहीं चाहिए।