मराठा आरक्षण की लड़ाई का अंजाम क्या होगा, यह कहा नहीं जा सकता लेकिन महाराष्ट्र के सैकड़ों विद्यार्थी ऐसे हैं जो इस लड़ाई में त्रिशंकु जैसे हालात में हैं। इन विद्यार्थियों या यूं कह लें सरकारी नौकरियों के परीक्षार्थियों की हालत यह है कि वे क्या करें! परीक्षा उन्होंने उत्तीर्ण कर ली है, लेकिन राज्य सरकार से नौकरी का बुलावा नहीं आया। ऊपर से सुप्रीम कोर्ट का मराठा आरक्षण को रद्द करने का आदेश। अब ये परीक्षार्थी इस दुविधा में हैं कि उनका क्या होगा।
इस दुविधा में वे परीक्षार्थी भी हैं जिन्हें आरक्षण का फ़ायदा मिलना था, और वे भी जो सामान्य वर्ग से आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
महाराष्ट्र में मराठा समाज को सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़े वर्ग (SEBC) के आधार पर प्रदेश सरकार ने आरक्षण दिया था। 9 सितंबर, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्थगन लगाने का आदेश दिया और 5 मई 2021 को अपने आदेश में SEBC आरक्षण को रद्द कर दिया। इस आदेश का असर महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (MPSC) की परीक्षा में चुने गए 413 परीक्षार्थियों पर पड़ा।
दूसरे परीक्षार्थी भी अटके
इन परीक्षार्थियों की पिछले एक साल से नियुक्तियां रुकी पड़ी हैं। इन 413 में से 48 परीक्षार्थी SEBC यानी मराठा आरक्षण के कोटे से चुने गए हैं जबकि 365 अन्य तथा खुले प्रवर्ग से चुने गए। लेकिन इन 365 में मराठा समाज के 79 और परीक्षार्थी हैं जो खुले प्रवर्ग से उत्तीर्ण हुए हैं। सरकारी नौकरियों में मराठा आरक्षण 13 प्रतिशत लोगों को दिया गया था लेकिन इस आरक्षण की वजह से 87 प्रतिशत दूसरे वर्गों से आने वाले परीक्षार्थी भी अटके हुए हैं।
SEBC का लाभ नहीं ले पाने वाले 413 में से 365 परीक्षार्थियों ने अपना रोष प्रकट करना शुरू भी किया है लेकिन सिर्फ आश्वासनों के अलावा उन्हें कुछ हासिल नहीं हो रहा है।
इन परीक्षार्थियों के साथ क्या हो रहा है, इसके लिए इस घटनाक्रम को समझना होगा। 1 दिसंबर, 2018 से महाराष्ट्र में SEBC के अंतर्गत मराठा समाज के लिए आरक्षण लागू किया गया। यह आरक्षण 16 प्रतिशत था। 10 दिसंबर, 2018 को MPSC ने 420 स्थानों के लिए विज्ञापन प्रकाशित कराया।
इस विज्ञापन में उप जिलाधिकारी (वर्ग -अ), पुलिस उपअधीक्षक/सहायक पुलिस आयुक्त (वर्ग -अ), सहायक संचालक, महाराष्ट्र वित्त व लेखा सेवा (वर्ग -अ), उपमुख्य कार्यकारी अधिकारी/प्रखंड विकास अधिकारी (वर्ग -अ), तहसीलदार (वर्ग -अ), उप शिक्षाधिकारी, महाराष्ट्र शिक्षा सेवा (वर्ग -ब), कक्ष अधिकारी (वर्ग -ब), सहायक प्रखंड विकास अधिकारी (वर्ग -ब), नायब तहसीलदार (वर्ग -ब) पदों के लिए परीक्षा थी।
इस विज्ञापन के तहत 17 फरवरी, 2019 को राज्य सेवा की पूर्व परीक्षा ली गयी। मुंबई सहित 37 जिला केंद्रों पर यह परीक्षा ली गयी। इस परीक्षा में 3,60,990 परीक्षार्थी बैठे थे जिसमें से 6,825 उत्तीर्ण हुए।
बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला
13 से 15 जुलाई, 2019 को इन परीक्षार्थियों की मुख्य परीक्षाएं आयोग ने आयोजित की। महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (MPSC) की ये परीक्षाएं चल रहीं थी कि उसी दौरान जयश्री पाटील ने देवेंद्र फडणवीस सरकार द्वारा दिए गए 16 प्रतिशत आरक्षण के निर्णय को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी। 27 जून 2019 को इस याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट का निर्णय आया। हाई कोर्ट ने फडणवीस सरकार के मराठा समाज को दिए गए आरक्षण को कायम रखा लेकिन उसका प्रतिशत शिक्षा में 12 और नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया।
MPSC की मुख्य परीक्षा का परिणाम 14 जनवरी, 2020 को आया जिसमें 1,326 लोगों को इंटरव्यू के लिए चुना गया। 3 फरवरी, 2020 को इंटरव्यू शुरू हुए और 21 मार्च, 2020 तक वे पूरे कर लिए गए। इन इंटरव्यू के तहत बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखते हुए 13 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को ध्यान में रखकर अंतिम सूची तैयार की गयी। 19 जून, 2020 को MPSC ने अंतिम सूची प्रकाशित भी की जिसमें 413 में से 13 प्रतिशत के हिसाब से 48 लोगों का चयन SEBC प्रवर्ग के तहत किया गया।
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
इसी बीच जयश्री पाटिल ने बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितम्बर, 2020 को मराठा आरक्षण को स्थगित कर दिया। यह आदेश देते समय कोर्ट ने कहा, “सरकार के अधीन सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्ति अधिनियम में दिए गए आरक्षण को लागू किए बिना की जाएगी।"
यानी SEBC लागू न करते हुए सरकारी सेवा में नियुक्तियां की जा सकती थीं। 413 में से अन्य वर्ग के 365 (87%) पात्र परीक्षार्थियों को नियुक्तियां मिल सकती थीं। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
रास्ता निकाल रही सरकार
वैसे, सामान्य वर्ग के अलावा मराठा समाज के विद्यार्थियों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि आरक्षण को अदालत ने रद्द कर दिया, इसमें हमारी गलती क्या है। हमने तो परीक्षा पास की है। मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनायी गयी मंत्रिमंडल उप समिति के अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने 8 मई, 2021 को इस संबंध में पत्रकार परिषद की थी। इसमें उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव इस मुद्दे पर कोर्ट के आदेश का निष्कर्ष निकाल रहे हैं।
परीक्षार्थी भी मुश्किल में
चव्हाण ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितम्बर, 2020 तक हुई नियुक्तियों को संरक्षित किया है। नौकरी भर्ती और चयन दो अलग-अलग पहलू हैं और सरकार उसमें कोई रास्ता निकालने के पक्ष में है और विधि विशेषज्ञों से भी सलाह ली जा रही है। लेकिन जो परीक्षार्थी कड़ी मेहनत के बाद इस आस में बैठे थे कि वे बड़े सरकारी पदों पर जल्दी ही आसीन होने वाले हैं, वे असमंजस की स्थिति में हैं। उनके सवाल यही हैं कि सरकार सूची प्रकाशित होने के बाद ही उनकी नियुक्तियां प्रारम्भ कर देती तो आज यह स्थिति देखने को नहीं मिलती।