महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद से ही केंद्र की मोदी सरकार, राज्यपाल और बीजेपी के हमले झेल रहे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तगड़ा पलटवार किया है। उद्धव ने फ़ैसला लिया है कि अब सीबीआई को किसी भी मामले में जांच करने से पहले राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। आमतौर पर सीबीआई को राज्य सरकारों से इस तरह की अनुमति की ज़रूरत नहीं होती है। उद्धव से पहले ऐसा ही फ़ैसला ममता बनर्जी भी कर चुकी हैं। उससे पहले राजस्थान सरकार ने भी ऐसा ही फ़ैसला लिया था।
कुछ दिन पहले ही ठाकरे सरकार ने एक और पलटवार करते हुए कहा था कि यदि बॉलीवुड के ड्रग्स मामले में बीजेपी के नेताओं के कनेक्शन की जांच एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने नहीं की तो अगले सप्ताह मामले को मुंबई पुलिस को सौंप दिया जाएगा।
दरअसल, एक विज्ञापन कंपनी गोल्डन रैबिट कम्युनिकेशन की शिकायत पर दो दिन पहले लखनऊ पुलिस ने टीआरपी घोटाले को लेकर एफ़आईआर दर्ज की और उसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले की सीबीआई जांच की सिफ़ारिश कर दी थी।
मीडिया इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को हैरानी तब हुई जब 24 घंटे के अंदर ही केंद्र सरकार ने इसकी सीबीआई से जांच करने की अनुमति दे दी और एजेंसी ने तुरंत मामला भी दर्ज कर लिया। इससे शक पैदा हो रहा है कि क्या किसी को बचाने के लिए सीबीआई जैसी प्रतिष्ठित संस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है।
राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि राज्य सरकार को इस बात की आशंका थी कि टीआरपी घोटाले की जांच को सीबीआई को देने के पीछे कोई राजनीतिक खेल हो सकता है, इसलिए उद्धव सरकार ने ये फ़ैसला लिया। उन्होंने कहा कि हालांकि यह एक बेहद प्रोफ़ेशनल एजेंसी है लेकिन इसके राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि आम लोगों में भी इस बात की चर्चा है और आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सरकारें भी इस तरह के आदेश जारी कर चुकी हैं।
जांच एजेंसियों का दुरुपयोग
जिस तरह से विपक्षी दलों वाली राज्य सरकारें सीबीआई के मामले में फ़ैसले ले रही हैं, उसे निश्चित तौर पर उनका इस एजेंसी के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ विरोध कहा जा सकता है। क्योंकि मोदी सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह इनकम टैक्स, सीबीआई, ईडी का दुरुपयोग कर विपक्षी दलों के नेताओं पर दबाव बनाने की कोशिश करती है।
कांग्रेस नेताओं पी. चिदंबरम से लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा, अशोक गहलोत के भाई, डी. शिवकुमार सहित कई नेताओं के वहां ये जांच एजेंसियां छापेमारी कर चुकी हैं।
टीआरपी घोटाले का शोर
महाराष्ट्र सहित देश भर में इन दिनों टीआरपी घोटाले को लेकर जबरदस्त शोर है। कुछ दिन पहले मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने फ़र्जी टीआरपी घोटाले की बात कही थी और रिपब्लिक टीवी समेत 3 टीवी चैनलों का इसमें नाम सामने आया था। टीआरपी मापने वाले संगठन बार्क ने हंसा रिसर्च ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई थी।
मुंबई पुलिस की मानें तो टीआरपी में हेरफेर का यह मामला सिर्फ मुंबई और महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है और इसकी जड़ें अन्य राज्यों तक भी फैली हुई हैं। मुंबई पुलिस अब तक 6 लोगों को इस मामले में गिरफ़्तार कर चुकी है और रिपब्लिक टीवी के कई लोगों से पूछताछ कर चुकी है।
निशाने पर ठाकरे सरकार
ठाकरे सरकार पहले दिन से केंद्र और बीजेपी के निशाने पर है। उद्धव ठाकरे के विधान परिषद सदस्य चुने जाने का मसला हो या फिर सुशांत सिंह प्रकरण, हर जगह ऐसा लगा कि बीजेपी की पूरी कोशिश राज्य की महा विकास अघाडी सरकार को अस्थिर करने की है और वह उसे सत्ता से हटाना चाहती है। महाराष्ट्र बीजेपी के बड़े नेता नारायण राणे इस साल मई में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिले थे और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी।
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दबाव बनाने की कोशिश
बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर आरोप हैं कि महा विकास अघाडी सरकार के दिग्गजों मुख्यमंत्री ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर शिकंजा कसने की कोशिश कर उन्हें दबाव में लेना चाहती है। ये आरोप तब सही साबित होते दिखे थे जब पिछले महीने एनसीपी प्रमुख शरद पवार, उनकी सांसद बेटी सुप्रिया सुले, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उनके बेटे और राज्य सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे को इनकम टैक्स विभाग का नोटिस मिला था।
बीजेपी की छटपटाहट
महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी बुरी तरह अधीर है। वह जानती है कि अगर महा विकास अघाडी की सरकार 5 साल तक चल गई तो बृहन्मुंबई महानगर पालिका का चुनाव हो या जिला परिषदों का या फिर विधानसभा या लोकसभा का, उसके लिए अपने अस्तित्व को जिंदा रखना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए, जब भी उसके नेता राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करते हैं या सरकार चला रहे नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियां दबाव बनाती हैं, तो यह आरोप फिर से जिंदा होता है कि क्या बीजेपी पर ठाकरे सरकार को अस्थिर करने के लग रहे आरोप सही हैं
जनवरी में प्रदेश में कई महानगरपालिकाओं के चुनाव होने हैं और उनके परिणाम यह सिद्ध करेंगे कि क्या प्रदेश में गठबंधन की सरकार जमीनी स्तर पर वोटों को भी जोड़ पायी है। यदि इसमें वह सफल रही तो आने वाला समय बीजेपी के लिए काफी मुश्किल भरा रहेगा।