कहा जा रहा है कि अजित पवार के साथ केवल 14 ही विधायक है जिसमें से नौ मंत्री बन गये हैं और शरद पवार ने साफ इशारा दे दिया है कि 23 जुलाई से होने वाले सत्र में दिख जायेगा कि 40 से ज्यादा विधायक अब भी शरद पवार के पास है। तब खेल एकदम से पलट जायेगा। इस एक वार से पवार ने जहां एक तरफ अपने भतीजे को एक्सपोज करते हुए बेटी सुप्रिया की राह एकदम साफ कर दी है क्योंकि अब न तो कार्याध्य़क्ष प्रफुल्ल पटेल रहेंगे ना अजित पवार और ना ही ओबीसी के चेहरे छगन भुजबल। यही कारण है कि शायद प्रफुल्ल पटेल के सबसे करीबी और केस में फंसे होकर भी अनिल देशमुख उनके साथ नही गये और पटेल की ही उपज नरेंद्र वर्मा भी खिलाफ में बोल रहे हैं।
कहने वालों का दावा है कि इस खेल में देवेंद्र फणनवीस जो हमेशा से शरद पवार से पंगा लेते रहे है उनसे भी शरद पवार ने बदला ले लिया क्योंकि इस बार भी इस शपथग्रहण की रचना देवेंद्र ने रची थी। कहा ये भी जा रहा है कि दिल्ली से अमित शाह ने ये होने दिया क्योकिं पिछली बार देवेंद्र ने उनसे राष्ट्रपति शासन हटवाकर उनको नीचा दिखा दिया था।
एक तीर से कई शिकार होंगे - शरद पवार एक तरफ सारे विधायकों को वापस लाकर अपनी साख बचा लेंगे, उनकी बेटी की राह आसान हो जायेगी। साथ ही शऱद पवार के साथ सकल मराठा समाज की सहानुभूति भी होगी।
एनसीपी के कई विधायकों ने माना कि जब तक शऱद पवार है वो उनके खिलाफ नहीं जा सकते। कहा ये जा रहा है कि शरद पवार को इस गेम की भनक दो महीने पहले ही लग गयी थी जब अजित पवार ने अमित शाह से चुपचाप जाकर मुलाकात की थी उसके बाद उन्होनें पहले तो शिवसेना के संजय राउत से कहलवाया कि अजित पवार बीजेपी के साथ जा सकते हैं। उसके बाद से वो लगातार अपने भतीजे अजित पवार को किनारे कर रहे थे और इसलिए उन्होंने पहले खुद के इस्तीफे का नाटक किया और जानबूझकर बेटी के साथ प्रफुल्ल पटेल को भी कार्याध्यक्ष बनवाया ताकि पटेल जब चले जायें तो केवल सुप्रिया ही बची रहे।
अगर सचमुच अटकलों में दम है और पवार इस गेम में कामयाब रहे तो वो भारत और महाराष्ट्र की राजनीति के असली चाणक्य होंगे।