इंदौर लोकसभा सीट के लिए 29 अप्रैल को जब नाम वापसी का अंतिम दिन था तो यह सिर्फ़ कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय कांति बम ही नहीं थे जिनके नाम वापसी वालों की सूची में नाम थे। ऐसे उम्मीदवारों में से कम से कम तीन नाम तो ऐसे थे जिनपर कथित तौर पर नाम वापस लेने के लिए काफी दबाव था। आरोप है कि इसके लिए फोन पर बात करने के अलावा, इनके घर पर कई-कई बार लोगों को भेजा गया। इनमें से दो उम्मीदवारों ने तो आरोप लगाए हैं कि जब काफी दबाव के बाद भी उन्होंने नाम वापस नहीं लिए तो किसी ने उनके फर्जी हस्ताक्षर कर नाम वापस लेने वालों की सूची में डाल दिया।
कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बम के 29 अप्रैल को नाम वापस लेने के शोर में बाक़ी उम्मीदवारों की ख़बर उस तरह से सुर्खियाँ नहीं बन पाईं, लेकिन हकीक़त यह है कि उन्होंने तो अपना विरोध जताने के लिए विरोध-प्रदर्शन तक किया था। वे अभी भी इसके लिए लड़ रहे हैं। तो सवाल है कि आख़िर बाक़ी के लोगों के साथ क्या हुआ था और वे किस तरह की गड़बड़ी और दबाव का आरोप लगा रहे हैं?
पूर्व वायु सेना अधिकारी धर्मेंद्र सिंह झाला ने भी इंदौर लोकसभा सीट से निर्दलीय के रूप में नामांकन किया था। वह जब कलेक्टर के कार्यालय अपना चुनाव चिन्ह लेने के लिए पहुँचे तो उन्हें पता चला कि उनका नाम वापस लिए गए उम्मीदवारों की सूची में था। उन्होंने द वायर से कहा, 'उस दिन मुझे केवल इतना पता था कि कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। मुझे पता था कि मुझ पर दबाव डाला जा सकता है, इसलिए मैंने सोचा था कि मैं दोपहर 3 बजे (नामांकन वापस लेने की समय सीमा) के बाद कलेक्टर कार्यालय जाऊँगा और अपना चुनाव चिन्ह ले लूँगा'।
उन्होंने आगे कहा, 'मैंने कार्यालय को क़रीब साढ़े तीन बजे फोन किया और कहा कि मैं अपना चुनाव चिन्ह लेने आ रहा हूं। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैंने अपना नाम वापस ले लिया है। मैंने कहा नहीं और उन्होंने मुझे आने के लिए कहा।
रिपोर्ट के अनुसार झाला ने कहा कि जब वह पहुँचे तो नाम वापस लेने वाले उम्मीदवारों के नाम वाला दस्तावेज उन्हें दिखाया गया, जिसमें उनका भी नाम शामिल था। उन्होंने कहा, 'मैंने सभी को बताया कि मैंने हस्ताक्षर नहीं किया है या नाम वापस नहीं लिया है। मैंने कलेक्टर से मिलने की मांग की। मेरे फॉर्म पर मेरे फर्जी हस्ताक्षर थे और मेरे दस प्रस्तावकों में से एक के भी उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर थे।'
झाला ने कहा कि मैंने कलेक्टर से फर्जी हस्ताक्षर की जांच करने के लिए कहा और कलेक्टर कार्यालय से सीसीटीवी फुटेज मांगा।
उन्होंने कहा कि ऐसा करने का वादा किया गया, लेकिन अभी तक मुझे यह नहीं मिला है। उन्होंने आशंका जताई है कि जब उनके हस्ताक्षर नकली हैं तो उनके प्रस्तावक के भी हस्ताक्षर नकली हो सकते हैं।
झाला ने द वायर से बातचीत में आरोप लगाया कि नाम वापसी से तीन दिन पहले उन्हें भाजपा के कथित शीर्ष नेताओं के फोन आए थे और यहां तक कि इंदौर में उनके घर पर कुछ लोग आए थे। उन्होंने कहा था, '25-26 अप्रैल को, दो अलग-अलग दिनों में, लोगों के दो समूह मेरे घर आए। एक दिन तीन लोगों का समूह था और दूसरे दिन पांच लोगों का समूह था। उन्होंने मेरी फोन पर शीर्ष भाजपा नेताओं से बात कराई, जिन्होंने मुझसे अपना नामांकन वापस लेने के लिए कहा और यहां तक कहा कि आप दौड़ में एकमात्र उम्मीदवार रह जाएंगे, आपकी जमानत जब्त हो जाएगी। मैंने विनम्रता से मना कर दिया और कहा- मैं टिकाऊ हूं, बिकाऊ नहीं।'
झाला ने कहा कि उन्होंने अगले सप्ताह मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका के साथ आरटीआई आवेदन दायर किया। अदालत ने कहा है कि चूँकि चुनाव चल रहे हैं इसलिए वह चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद याचिका पर सुनवाई करेगी।
एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने वाले दिलीप ठक्कर ने द वायर से कहा कि 26 अप्रैल को नामांकन पत्र दाखिल करने के तुरंत बाद उन्हें भाजपा नेताओं के फोन आने लगे थे। ठक्कर पहले कांग्रेस कार्यकर्ता रहे हैं लेकिन इस बार उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा, 'मुझे 26 अप्रैल से ही लगभग चार से पांच कॉल आ रही थीं, जिनमें मुझसे अपना नामांकन वापस लेने के लिए कहा जा रहा था। शीर्ष नेताओं के नंबरों से कॉल नहीं आ रहे थे, लेकिन अन्य लोग कॉल कर रहे थे और अपने फोन पर मुझसे बात करवा रहे थे।'
ठक्कर ने कहा कि दबाव को देखते हुए उन्होंने 26 अप्रैल की रात को तीन दिनों के लिए इंदौर छोड़ने का फैसला किया और वह अपने कुछ प्रस्तावकों के साथ लगभग 100 किमी दूर ओंकारेश्वर के पास एक जगह पर चले गए थे।
ठक्कर ने कहा कि इसके बाद उनके घर पर लोग भेजे गए। उन्होंने तीन दिन के लिए फोन तक बंद कर दिया था। उन्होंने कहा कि जब उनको पता चला कि 29 अप्रैल को बम ने नाम वापस ले लिया तो उन्होंने समर्थन पाने के लिए कांग्रेस नेताओं से संपर्क किया। उन्होंने कहा कि जब वह शाम करीब 4 बजे अपना चुनाव चिन्ह लेने के लिए कलेक्टर कार्यालय गए और उनको तो पता चला कि उनका नामांकन भी वापस ले लिया गया है।
इसके बाद ठक्कर और झाला दोनों कलेक्टर कार्यालय के बाहर विरोध में बैठे और यह जानने की मांग की कि उनके हस्ताक्षर कैसे जाली हैं और दोनों को आश्वासन दिया गया कि अधिकारी इस मामले को देखेंगे। झाला की तरह ठक्कर भी इस मामले में हाई कोर्ट चले गए हैं।
जनता कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार ने नाम वापस लिया
इंदौर के पास महू में जनता कांग्रेस पार्टी का कार्यालय है। पार्टी की भावना सांगेलिया ने इंदौर सीट के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था। पार्टी के एक नेता ने द वायर से बताया कि इसके एक सप्ताह बाद भाजपा युवा मोर्चा से जुड़े लोगों ने 28 अप्रैल को उनके कार्यालय का दौरा किया। उन्होंने कहा कि उनके पास कई बार शीर्ष नेतृत्व का फोन आया।
रिपोर्ट के अनुसार 29 अप्रैल को जब बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया तो जनता कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को यह पूछने के लिए बुलाया कि क्या वे संगेलिया का समर्थन करेंगे। उनकी तरफ़ से जवाब नहीं आया। बाद में सांगेलिया ने नाम वापस ले लिया। सांगेलिया ने द वायर को बताया कि उन्हें खुद बीजेपी से कोई संदेश नहीं मिला है। जब उनसे नाम वापस लेने के फैसले के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'मैंने केवल वही किया जो मेरे पार्टी आलाकमान ने मुझसे करने को कहा था।'
द वायर ने कहा है कि टिप्पणी के लिए इसने राज्य भाजपा, मध्य प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह को लिखा है। ख़बर लिखे जाने तक जवाब नहीं मिला था।