शेयर बाज़ार लगातार रिकॉर्ड बना रहा है। सेंसेक्स 72000 के भी पार जा चुका है तो निफ्टी भी 22000 के क़रीब पहुँच चुकी है। यह भले ही चकाचौंध वाली तस्वीर पेश करे, लेकिन क्या यह भारत की अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को बयाँ करती है? जिस मांग और आपूर्ति को अर्थव्यवस्था का मूल पैमाना माना जाता है, उस पैमाने पर क्या अर्थव्यवस्था की चमचमाती तस्वीर दिखती है?
मांग और आपूर्ति की नब्ज कहे जाने वाले मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की स्थिति हाल के दिनों में ठीक नहीं दिख रही है। कहा जा रहा है कि मांग में कमी और कच्चे माल की बढ़ती लागत की वजह से विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि में गिरावट आई है। एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स के अनुसार, भारत का विनिर्माण उद्योग 2023 में थोड़ा अस्थिर रहा। दिसंबर में कारखाने की वृद्धि घटकर अठारह महीने के निचले स्तर पर आ गई।
सर्वेक्षण के अनुसार, दिसंबर में भारतीय विनिर्माताओं को दिए गए नए ऑर्डरों में तेजी से कुछ हद तक वृद्धि हुई। वृद्धि की गति 18 महीनों में सबसे धीमी देखी गई।
एसएंडपी ग्लोबल, सूचकांक नवंबर के 56.0 से गिरकर दिसंबर में 54.9 पर आ गया। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, एसएंडपी ग्लोबल द्वारा संकलित मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स अक्टूबर में आठ महीने के निचले स्तर 55.5 पर आ गया था, जो सितंबर में 57.5 था। हालाँकि, गिरावट के बावजूद महीनों से पीएमआई 50 अंक से ऊपर रहा है और इसको सकारात्मक रूप में देखा जा रहा है।
उपभोक्ता वस्तुओं में गिरावट उल्लेखनीय रही है। मांग में वृद्धि धीमी हो गई है। नवंबर महीने में आई रिपोर्ट में कहा गया था कि नए ऑर्डर उप-सूचकांक एक वर्ष में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए। अंतरराष्ट्रीय मांग की वृद्धि दर भी चार महीने के निचले स्तर पर आ गयी।
एफडीआई में गिरावट
एफडीआई में 2023 में भारी गिरावट आई है। यह गिरावट 2020 के बाद सबसे ज़्यादा है। 2020 में भारत में एफ़डीआई से 74.4 बिलियन डॉलर का निवेश आया था। लेकिन 2023 में उससे भी कम निवेश हुआ है। 2021 और 22 में यह जहाँ 82 और 84.8 बिलियन डॉलर निवेश हुआ था वहीं, 2023 में यह घटकर 70.9 बिलियन डॉलर रह गया।
हालाँकि, एफ़डीआई गिरने के बाद भी शेयर बाजार उछाल पर है और नये रिकॉर्ड बना रहा है। तो सवाल है कि इसकी वजह क्या है?
कहा जा रहा है कि अच्छे रिटर्न के लिए शेयर बाज़ार में सैलरी वाले लोग और मध्यवर्ग अपनी बचत के पैसे लगा रहा है। ये लोग सकारात्मक दिख रहे शेयर बाज़ार में मुनाफा कमाने का अवसर देख रहे हैं।
वैसे, अर्थव्यवस्था की विकास दर भी कम होती हुई दिख रही है। पहली तिमाही में भारत की ग्रोथ रेट 7.8 फीसदी रही थी। उसके बाद दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था ने 7.6 फीसदी की दर से बढ़ी। तीसरी और चौथी तिमाही में इसके और कम होने के अनुमान हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का मानना है कि तीसरी तिमाही में भारत की ग्रोथ रेट 6 फीसदी रह सकती है, जो कुछ कम होकर चौथी तिमाही में 5.7 फीसदी पर आ सकती है। पूरे वित्त वर्ष के लिए रिजर्व बैंक का अनुमान 6.5 फीसदी की दर से ग्रोथ का है। भारत सरकार को भी चालू वित्त वर्ष में ग्रोथ रेट 6.5 फीसदी रहने की उम्मीद है। विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट नयी चिंताएँ पैदा करती है!