देश में जिस धीमी गति से कोरोना के ख़िलाफ़ टीकाकरण हो रहा है उससे अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। फिच समूह की इंडिया रेटिंग्स ने टीकाकरण की रफ़्तार कम होने की वजह से भारत का जीडीपी अनुमान घटा दिया है। इसने कहा है कि जीडीपी वृद्धि दर 2021-22 में 9.6 फ़ीसदी नहीं, बल्कि अब 9.4 फ़ीसदी ही रहने की संभावना है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ ने पिछले महीने के आख़िर में जारी अपनी रिपोर्ट में भारत की अनुमानित विकास दर में कटौती की थी। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर नज़र रखने वाली इस अंतरराष्ट्रीय संस्था ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत की विकास दर 9.5 प्रतिशत होगी। पहले इसने 12.5 प्रतिशत का अनुमान लगाया था। यानी भारत की विकास दर में तीन प्रतिशत प्वाइंट की गिरावट होने का अनुमान है। इस तेज़ गिरावट की वजह कोरोना है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 4 जून को कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर इस दौरान 9.5 प्रतिशत हो सकती है, जबकि पहले उसने 10.5 प्रतिशत विकास दर का अनुमान लगाया था।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी स्टैंडर्ड एंड पूअर यानी एस एंड पी ने पहले कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत की दर से विकास दर्ज कर लेगी, पर बाद में उसने कहा कि इसमें 9.5 प्रतिशत का ही विकास होगा। यानी, पहले के अनुमान से 1.5 प्रतिशत कम विकास होने की संभावना है।
इसी महीने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने भी कहा था कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर जीडीपी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। उन्होंने कहा था कि भारत की विकास दर आईएमएफ़ के हाल के 9.5 प्रतिशत के अनुमान से भी नीचे 7 प्रतिशत तक जा सकती है।
इसी बीच इंडिया रेटिंग्स का यह ताज़ा अनुमान आया है जिसमें जीडीपी विकास दर 9.4 फ़ीसदी रहने की संभावना जताई गई है। इंडिया रेटिंग्स ने पहले कहा था कि अगर देश इस साल 31 दिसंबर तक अपनी पूरी वयस्क आबादी का टीकाकरण करने में सक्षम होता है तो वित्त वर्ष 22 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 9.6 प्रतिशत पर आने की उम्मीद की जा सकती है नहीं तो यह 9.1 प्रतिशत तक फिसल सकती है।
एजेंसी के प्रधान अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा ने कहा कि टीकाकरण की गति को देखते हुए, अब यह लगभग तय है कि भारत 31 दिसंबर 2021 तक अपनी पूरी वयस्क आबादी का टीकाकरण नहीं कर पाएगा।
मौजूदा समय में वैक्सीन की आपूर्ति उतनी नहीं है कि पूरी आबादी को एक भी टीका लगाया जा सके। भारत में लक्ष्य रखा गया है कि इस साल के आख़िर तक पूरी वयस्क आबादी को टीका लगा दिया जाएगा।
केंद्र सरकार ने मई महीने में ही दावा किया था कि अगस्त से दिसंबर तक 216 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध होगी लेकिन जून महीने में सरकार ने कह दिया कि वह 135 करोड़ वैक्सीन ही उपलब्ध करा पाएगी। इसने वैक्सीन उपलब्ध कराने के आँकड़ों को संशोधित कर सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दिया था। केंद्र ने यह हलफ़नामा उस मामले में दिया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने टीकाकरण अभियान को लेकर सवाल उठाए थे।
जबकि हालात ऐसे हैं कि सरकार इस लक्ष्य से भी काफ़ी पीछे चल रही है। अगस्त महीने के आखिर में भी भारत में अब तक क़रीब 57 करोड़ टीके लगाए जा सके हैं। टीके की योग्य आबादी के क़रीब 9.2 फ़ीसदी लोगों को ही दोनों खुराक लगाई गई हैं। औसत रूप से हर रोज़ क़रीब 60 लाख टीके लगाए जा रहे हैं।
सरकार का ही कहना है कि देश में 18 साल से ऊपर के 93-94 करोड़ लोग हैं। यानी इन्हें वैक्सीन की दोनों खुराक लगाने के लिए कुल मिलाकर 186 से लेकर 188 करोड़ वैक्सीन खुराक चाहिए होगी। टीकाकरण जनवरी से शुरू हुआ है और इन आठ महीनों में 57 करोड़ लोगों को टीके लगाए गए हैं। यानी अभी भी क़रीब 4 महीनों में 130 करोड़ टीके लगाए जाने होंगे। इस हिसाब से हर रोज़ क़रीब 1 करोड़ टीके की ज़रूरत होगी। मौजूदा स्थिति में इस लक्ष्य को पाना मुश्किल लगता है।
एजेंसी का भी अनुमान है कि 88 प्रतिशत से अधिक वयस्क आबादी को पूरी तरह से टीकाकरण और अगले साल 31 मार्च तक बाक़ी को एक खुराक देने के लिए 52 लाख टीके हर रोज़ लगाए जाने चाहिए।
कोरोना की दूसरी लहर के बाद तेज़ी से रिकवरी, उच्च निर्यात और पर्याप्त वर्षा आर्थिक विकास को मज़बूती प्रदान करेगी। इस हिसाब से टीकाकरण होने और कोरोना का ख़तरा कम होने पर विकास दर बेहतर होने की उम्मीद थी। लेकिन लगता है कि टीकाकरण की धीमी रफ़्तार इसमें बाधा बन रही है। एक और चिंता यह है कि पूरी तरह टीका लगाए लोग भी कोरोना संक्रमित हो रहे हैं और ऐसे में टीके की एक बूस्टर खुराक को ज़रूरी बताया जा रहा है। लेकिन जब तक पूरी आबादी को टीके नहीं लगेंगे तब तक बूस्टर खुराक देना क्या समझदारी होगी!