यदि सोना गिरवी रखकर बैंक से कर्ज लिया तो लोग कर्ज तय समय में क्यों चुका नहीं पा रहे हैं? ऐसा करने वालों की संख्या अचानक से क्यों बढ़ गई? अब हालात ऐसे हो गए हैं कि बैंकों को उन कर्जों को एनपीए यानी नॉन पर्फोर्मिंग एसेट्स में डालना पड़ रहा है। तो सवाल है कि ऐसी स्थिति क्यों आन पड़ी? क्या लोगों की इतनी आमदनी कम हो गई? क्या अर्थव्यवस्था की नब्ज ठीक नहीं है?
ये सवाल इसलिए कि अप्रैल-जून में गोल्ड लोन एनपीए में 30% की बढ़ोतरी हुई है। यदि सिर्फ़ वाणिज्यिक बैंकों की बात करें तो इन्होंने जून 2024 तक गोल्ड लोन एनपीए में 62 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है, जो मार्च 2024 में 1,513 करोड़ रुपये से बढ़कर जून में 2,445 करोड़ रुपये हो गया। यानी सोना गिरवी रखने वाले ग्राहकों के बीच चूक में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है। ये आँकड़े आरबीआई ने द इंडियन एक्सप्रेस को एक आरटीआई के जवाब में उपलब्ध कराए हैं।
आरबीआई के आँकड़ों में क्या-क्या हैं, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर गोल्ड लोन एनपीए में इतनी बढ़ोतरी क्यों हुई।
सोने के ऋण डिफॉल्ट में बढ़ोतरी का कारण बढ़ता हुआ कर्ज है। धीमी अर्थव्यवस्था ने लोगों की आय को प्रभावित किया है। इस वजह से उधार लेने वालों के लिए ऋण चुकाना मुश्किल हो गया है। लोगों की आय का सीधा संबंध देश की अर्थव्यवस्था की हालत से भी है। अर्थव्यवस्था की हालत का संकेत कंपनियों की स्थिति और उनके उत्पादन से भी मिलता है।
देश की सबसे बड़ी पेंट कंपनी और शेयर बाजार का सुरक्षित निवेश मानी जानेवाली एशियन पेंट्स ने अपनी बिक्री में दस प्रतिशत से ज्यादा गिरावट दर्ज की है। ऐसा कंपनी के इतिहास में लंबे समय बाद हुआ है। सबसे बड़ी कंज्यूमर कंपनी हिंदुस्तान यूनिलिवर की बिक्री दो साल से स्थिर है। यही हाल नेस्ले, मैरिको और डाबर जैसी बड़ी कंपनियों के है। उनकी बिक्री या तो स्थिर है या फिर घट रही है।
भारत जिस तरह की पूँजीवादी अर्थव्यवस्था पर चल रहा है, उसका मुख्य आधार उपभोग है। उपभोग तभी बढ़ेगा जब आम आदमी के हाथ में पैसा होगा।
महंगाई को लेकर हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी। द हिंदू की इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अक्टूबर 2024 में औसतन स्वस्थ भोजन की लागत पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 52% बढ़ गई। इस बीच औसत वेतन और मजदूरी में 9 से 10% की वृद्धि हुई है। वैसे तो ऐसी स्थिति होने से सभी लोग प्रभावित हुए हैं, लेकिन दिहाड़ी मज़दूरों और कम वेतन पाने वालों के लिए यह बेहद ही डरावनी तस्वीर है।
काफी लंबे समय से ऐसी स्थिति दिख रही है। असमानता भी बढ़ी है। 30 हज़ार रुपये के ज़्यादा के फोन की बिक्री बढ़ी है तो उससे कम क़ीमत के फोन की बिक्री घटी है। ऐसी ही स्थिति कारों को लेकर है और महंगी कारें ज़्यादा बिक रही हैं। प्रीमियम और लग्जरी मकान ज्यादा खरीदे जा रहे हैं। तेल, साबुन, बिस्किट, टुथपेस्ट जैसे एफ़एमसीजी की भी वैसी ही स्थिति है। शहरों में तो इसने रफ़्तार पकड़ ली, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह धीमा है।
आर्थिक असमानता पर दुनिया के सबसे बड़े विशेषज्ञों में से एक थॉमस पिकेटी ने इसी साल कहा था कि भारत में विकास का अधिकांश लाभ सबसे अमीर 1% लोग हड़प रहे हैं।
उनकी यह टिप्पणी ऐसे ही नहीं आई है। दरअसल, पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर के अनुसार, कुल आय और संपत्ति में शीर्ष 1% भारतीयों की हिस्सेदारी 2022-23 में सर्वाधिक है। इस पेपर के सह-लेखकों में थॉमस पिकेटी भी शामिल हैं। इन्हें आर्थिक असमानता पर सबसे आधिकारिक आवाज़ों में से एक माना जाता है। वह कहते हैं कि इससे पता चलता है कि सबसे ज़्यादा अमीर भारत के अधिकांश विकास के लाभ को हड़प रहे हैं।
इससे पता चलता है कि देश की बड़ी आबादी किन हालातों में गुज़र बसर कर रही है। अब जो आरबीआई का आँकड़ा आया है वह भी यही स्थिति को पुष्ट करता दिखता है कि आम आदमी की आय कम हुई है, खर्च बढ़े हैं और देश की आर्थिक स्थिति उस तरह की नहीं है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों यानी एनबीएफ़सी के गोल्ड लोन नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए जून 2024 तक 30 प्रतिशत बढ़कर 6,696 करोड़ रुपये हो गए, जो कि तीन महीने पहले 5,149 करोड़ रुपये थे। पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 2022-23 में गोल्ड लोन की वृद्धि केवल 14.6 प्रतिशत थी। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर सूचना के अधिकार अनुरोध के जवाब में आरबीआई ने कहा कि वाणिज्यिक बैंकों ने जून 2024 तक गोल्ड लोन एनपीए में 62 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि दर्ज की है, जो मार्च 2024 में 1,513 करोड़ रुपये से बढ़कर 2,445 करोड़ रुपये हो गई है। एनबीएफ़सी के मामले में यह वृद्धि 24% कम है, जो मार्च 2024 में 3,636 करोड़ रुपये से जून 2024 में 4,251 करोड़ रुपये हो गई है।
चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में बैंकों ने सोने के ऋण में 50.4 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की है। जब सोने की कीमतें बढ़ीं, तो लोगों ने घरेलू खर्च, स्कूल और शिक्षा शुल्क और अस्पताल के खर्चों को पूरा करने के लिए अपना सोना गिरवी रख दिया। उन्होंने ऋण पर चूक की क्योंकि उन्हें पता चला कि ऋण राशि खरीद मूल्य से अधिक है और वे इस तथ्य से अनजान थे कि डिफ़ॉल्ट के बाद उनका क्रेडिट स्कोर कम हो जाएगा। चूंकि ग्राहक ऊंची कीमतों का लाभ उठाने के लिए सोना गिरवी रखने के लिए दौड़ रहे हैं, इसलिए बैंकों का स्वर्ण ऋण बकाया अक्टूबर 2024 तक बढ़कर 1,54,282 करोड़ रुपये हो गया है, जो मार्च 2024 में 1,02,562 करोड़ रुपये था। बैंकों और एनबीएफसी की स्वर्ण ऋण एक साथ 3 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर जाने का अनुमान है।