पीएम चादर भेज रहे हैं तो दरगाह को 'बचाने' के लिए कुछ करते क्यों नहीं?

02:30 pm Jan 03, 2025 |

प्रधानमंत्री मोदी की अजमेर शरीफ़ की दरगाह पर चादर भेजने की ख़बर क्या आई, कई दक्षिणपंथियों ने जहर क्यों उगलना शुरू कर दिया? वैसे, ये दक्षिणपंथी वही हैं जो कहीं न कहीं बीजेपी की विचारधारा का अक्सर समर्थन करते रहे हैं। पीएम मोदी ने अजमेर शरीफ़ की दरगाह के लिए चादर भेजी है जिसे 4 जनवरी को चढ़ाया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी इस साल 11वीं बार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 813वें उर्स के दौरान अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाएंगे।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर भेजे जाने के बाद दरगाह की खुदाई कराने और इसके नीचे शिव मंदिर होने का दावा करने वाले विष्णु गुप्ता ने तो इस पर आपत्ति की ही है, दूसरे दक्षिणपंथी लोगों ने भी नाराज़गी जताई है। दक्षिणपंथी विचारधारा वाले माने जाने वाले अजीत भारती ने उस ख़बर को रिपोस्ट करते हुए तंज में लिखा है, 'सर दीवार पर मार लो हिंदुओ!'

दरगाह के लिए चादर भेजे जाने पर पीएम मोदी को निशाना बनाए जाने की बात खुद पीएम के कट्टर समर्थक तक सोशल मीडिया मंचों पर खुलेआम लिख रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फॉलो किए जाने वाले एक एक्स यूज़र हार्दिक भावसार ने लिखा है, 'चादर भेजने पर जो लोग मोदी को मौलाना कह रहे, उन्हें बता दें कि वो जिस पद पर बैठे हैं उस पद की वर्षों से चली आ रही परंपरा निभा रहे हैं!'

प्रधानमंत्री द्वारा फॉलो किए जाने वाले हार्दिक भावसार ने यह भी लिखा है कि चादर भेजने का मतलब यह नहीं है कि दरगाह की खुदाई रुक जाएगी। तो सवाल है कि इसका क्या मतलब है? क्या यह साफ़ नहीं है कि बीजेपी की रणनीति अल्पसंख्यकों को लेकर नहीं बदलेगी? भावसार ने आगे कहा है, '...दूसरी बात यह है कि उनके चादर भेजने से खुदाई रुकने वाली नहीं है, जहाँ भी सबूत मिलेंगे प्रशासन अपना काम करेगा। बाबा का बुलडोजर रुकने वाला नहीं है'।

हार्दिक भावसार के इस ट्वीट पर अजीत भारती ने प्रतिक्रिया में लिखा है कि 'इफ्तार क्यों बंद करवा दिया फिर? टोपी पहन कर क्यों नहीं घूमते? कुछ भी!'

हिंदू सेना प्रमुख और दरगाह के ख़िलाफ़ अदालत पहुँचने वाले विष्णु गुप्ता ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर अनुरोध किया है कि अजमेर दरगाह पर चादर चढ़ाने की परंपरा स्थगित कर दें। 

पीएम मोदी को पत्र में हिंदू सेना प्रमुख ने क्या लिखा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि उन्होंने आख़िर अजमेर की स्थानीय अदालत में अजमेर दरगाह को लेकर मुकदमा क्यों दायर किया है। दरअसल, उन्होंने वहाँ शिव मंदिर होने का दावा किया है। इस मामले की अगली सुनवाई 24 जनवरी को होनी है।

विष्णु गुप्ता द्वारा दरगाह के सर्वेक्षण की मांग करने के लिए लगाई गई याचिका में अदालत के सामने दावा किया गया है कि दरगाह सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा एक शिव मंदिर था।

इस पर अदालत ने दरगाह के सर्वेक्षण की मांग करने वाली विष्णु गुप्ता की याचिका पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किया है। 

याचिका में अपने दावे के समर्थन में गुप्ता ने कहा है कि ब्रिटिश शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण पद संभालने वाले हर बिलास सारदा ने 1910 में एक हिंदू मंदिर की मौजूदगी के बारे में लिखा था। उन्होंने कहा कि एक न्यायाधीश, राजनीतिज्ञ और एक शिक्षाविद सारदा ने अपनी एक किताब में दरगाह के बारे में लिखा, 'परंपरा कहती है कि तहखाने के अंदर एक मंदिर में महादेव की छवि है, जिस पर हर दिन एक ब्राह्मण परिवार द्वारा पूजा की जाती थी, जिसे आज भी दरगाह द्वारा घरयाली (घंटी बजाने वाला) के रूप में रखरखाव किया जाता है।'

उन्होंने दावा किया, 'अजमेर में सारदा के नाम पर सड़कें हैं, इसलिए हमने कहा कि अदालत को उनकी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए, कम से कम एक सर्वेक्षण तो होना चाहिए ताकि सच्चाई सामने आए।' गुप्ता ने दावा किया कि 'अजमेर की संरचना हिंदू और जैन मंदिरों को ध्वस्त करके बनाई गई थी'।

विष्णु गुप्ता ने नवंबर महीने में द इंडियन एक्सप्रेस से कहा था कि अजमेर शरीफ दरगाह में भी 'काशी और मथुरा की तरह' एक मंदिर है। हालाँकि, दरगाह के गद्दी नशीन सैयद सरवर चिश्ती ने कहा है कि मुस्लिम समुदाय के प्रति नफरत पैदा करने के लिए यह मामला दर्ज किया गया है। 

पीएम को ख़त क्यों लिखा

बहरहाल, अब विष्णु गुप्ता ने पत्र में कहा है, 'देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हर साल अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने की शुरुआत की थी और तब से यह औपचारिकता जारी है, यहां तक ​​कि वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के प्रधानमंत्री काल में भी।' एबीपी न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार पत्र में विष्णु गुप्ता ने यह भी कहा है कि उन्होंने प्राचीन मंदिर की मौजूदगी के बारे में साक्ष्य पेश किए हैं, जिसके बारे में उनका दावा है कि इसका निर्माण चौहान वंश ने कराया था। उन्होंने अपने दावों के समर्थन में और सबूत जुटाने के लिए एएसआई के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए आवेदन दाखिल करने का भी उल्लेख किया।

उन्होंने पत्र में लिखा, 'जब तक कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, मैं आपसे अनुरोध करना चाहूँगा कि तब तक प्रधानमंत्री कार्यालय के माध्यम से भेंट के रूप में चादर भेजने की इस औपचारिकता को स्थगित कर दिया जाए।' विष्णु गुप्ता ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से चादर भेजते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन अगर वे इसे संवैधानिक पद से भेजते हैं, तो इससे उनके मामले पर असर पड़ेगा। 

वैसे, बीजेपी की सरकारों पर धर्म के आधार पर नफ़रत फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने के विवाद को भी बीजेपी समर्थकों से जोड़कर देखा जाता रहा है। देशभर में कई जगहों पर हिंदू संगठनों या दक्षिणपंथियों द्वारा मस्जिदों के नीचे मंदिर होने के दावे किए गए हैं।

अजमेर में दरगाह के पास की ऐतिहासिक 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' के लिए भी इसी तरह की मांग उठाई गई। अजमेर के उप महापौर नीरज जैन ने दावा किया है कि यहाँ एक संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं। हालाँकि, इसका दावा अभी तक अदालतों तक आगे नहीं बढ़ा है, लेकिन कुछ लोग लगातार इस मुद्दे को हवा देने में लगे हैं। मई महीने में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कुछ जैन मुनियों के दावे और वहाँ के दौरे के बाद उस स्थल पर एएसआई सर्वेक्षण की मांग की थी। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों के साथ दौरा किया था। उन्होंने दावा किया था कि उस स्थान पर कभी एक संस्कृत विद्यालय और एक मंदिर हुआ करता था।

इससे पहले उत्तर प्रदेश के संभल में ऐतिहासिक मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा किया गया। स्थानीय अदालत द्वारा सर्वे का आदेश दिए जाने के बाद हिंसा हुई थी। इसी तरह मस्जिदों के नीचे मंदिर होने के दावे मथुरा, वाराणसी जैसे कई शहरों में किए जा रहे हैं।