क्या केंद्र सरकार विश्व हिन्दू परिषद जैसे उग्र हिन्दुत्ववादी संगठनों के दबाव में आकर बीफ़ निर्यात के क्षेत्र में मुसलमानों को निशाने पर ले रही है? क्या निर्यात किए जाने वाले बीफ़ पैकेट पर 'हलाल' नहीं लिखे जाने के फ़ैसले के पीछे यह सोच है कि इससे मुसलमान निर्यातकों को मिलने वाला फ़ायदा नहीं मिलेगा? इसके साथ ही यह सवाल भी है कि क्या इससे बीफ़ निर्यात मे भारतीय कंपनियों को नुक़सान होगा?
मामला क्या है?
सरकारी एजेन्सी एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फ़ूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीईडीए यानी एपेडा) ने सोमवार को एक अहम फ़ैसले में कहा है कि 'रेड मीट' के पैकेट पर अब 'हलाल' शब्द नहीं लिखा जाएगा। इसके साथ ही इसके निर्यात मैनुअल में भी 'हलाल' शब्द निकाल दिया जाएगा।
एपेडा के अनुसार, निर्यात किए जाने वाले मांस को अब हलाल सर्टिफिकेट की ज़रूरत भी नहीं होगी। मैनुअल में अब तक यह लिखा जाता रहा है कि "जानवर को मान्यता प्राप्त इसलामी संगठन की देखरेख में शरियत के नियमानुसार इसलामी तरीके से काटा गया है। हलाल सर्टिफिकेट मान्यता प्राप्त इसलामी संगठन ने दिया है, जिसके प्रतिनिधि की देखरेख में जानवर को काटा गया है।"
इन पंक्तियों को हटा दिया गया है।
पहले लिखा जाता था कि "इसलामी देशों की ज़रूरतों के अनुसार जानवर को हलाल तरीके से काटा गया है।" लेकिन अब लिखा जाएगा कि "आयातक देशों की ज़रूरतों के अनुसार जानवर को काटा गया है।"
गोवंश, भैंस, बकरा, भेंड़ और ऊंट जैसे बड़े जानवरों के मांस को 'रेड मीट' कहते हैं। इस श्रेणी के तहत भारत से मुख्य रूप से बीफ़ का निर्यात होता है, भारत ब्राज़ील के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बीफ़ निर्यातक देश है। बीजेपी सरकार के आने के बाद से इसे 'बफ़ैलो मीट' कहा जाने लगा।
क्या है हलाल?
अरबी भाषा के शब्द 'हलाल' का अर्थ है 'वह जिसकी इजाज़त हो'। सामान्य व्यवहार में इसे उस काम से समझा जाता है कि जिसकी अनुमति इसलाम में दी गई है। खाने-पीने की चीजों में कुछ चीजों पर रोक लगी है, जिसे 'हराम' यानी 'निषिद्ध' कहते हैं, बाकी चीजें 'हलाल' यानी 'जायज़' हैं।
इसलाम में जानवर को काटने का ख़ास तरीका बताया गया है, जिसे 'जिबह' कहते हैं। इस तरीके से काटे गए जानवर के मांस को ही हलाल माना जाता है, यानी मुसलमान इस ख़ास तरीके काटे गए जानवर का ही मांस खाएं।
हलाल तरीके में जानवर को काटने के पहले एक आयत पढ़ी जाती है और जानवर के गले को तेज़ छुरी से काटा जाता है, जिससे उसकी श्वांस नली और खून की नली एक झटके से तुरन्त कट जाती है। माना जाता है कि इससे उस जानवर को कम से कम तकलीफ़ होती है।
हलाल सर्टिफिकेट
निर्यात किए जाने वाले मांस के पैकेट पर हलाल लिखने और उसे हलाल सर्टिफिकेट ज़रूरी करने के पीछे सोच यह था कि इसलामी देश इसे तुरन्त स्वीकार कर लेंगे, वे हलाल के अलावा दूसरा मांस नहीं ले सकते। मध्य-पूर्व बीफ़ का बहुत बड़ा बाज़ार है और उस पर भारत का लगभग एकाधिकार है। ब्राजील और दूसरे देशों का बीफ़ मध्य-पूर्व के इन मुसलिम-बहुल देशों में इसलिए अधिक नहीं बिकता है कि भारतीय मांस का स्वाद अलग होता है, जो इन देशों में पसंद किया जाता है।
हलाल सर्टिफिकेट के ख़िलाफ़ मुहिम
लेकिन विश्व हिन्दू परिषद और बीजेपी इस हलाल सर्टिफिकेट के ख़िलाफ़ रहे हैं। हलाल नियंत्रण मंच ने इसके ख़िलाफ़ मुहिम चलाई थी। इनका तर्क है कि भारत का बीफ़ चीन, वियतनाम, हॉंगकॉग और म्यांमार भी जाता है, जो मुसलिम-बहुल देश नहीं हैं और जिन्हें हलाल मीट की ज़रूरत नहीं है।
हलाल नियंत्रण मंच के हरिंदर सिंह सिक्का ने 'हिन्दुस्तान टाइम्स' से कहा, "कांग्रेस सरकार ने एपेडा को इसके लिए मज़बूर कर रखा था कि हलाल सर्टिफिकेट वाले मांस का ही निर्यात किया जा सकता है, जिस कारण ये निर्यातक सर्टिफिकेट लेने को बाध्य थे।"
वे कहते हैं,
“
"यह कहना सही नहीं है कि भारत का ज़्यादातर बीफ़ मध्य-पूर्व के देशों को जाता है, भारत का सबसे बड़ा बीफ़ आयातक देश चीन है।"
हरिंदर सिंह सिक्का, अध्यक्ष, हलाल नियंत्रण मंच
सिक्का यह भी कहते हैं कि हलाल मीट सिखों के लिए हराम है। सिख संगठनों ने नागरिक विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी से कहा था कि वे हलाल सर्टिफिकेट हटवाएं।
बीफ़ निर्यात
विश्व हिन्दू परिषद के विनोद बंसल ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा कि 'हलालोनॉमिक्स (हलाल आधारित अर्थव्यवस्था) पर रोक लगनी चाहिए। मांस के निर्यात के लिए हलाल सर्टिफिकेट की बाध्यता ख़त्म की जानी चाहिए।'
साल 2019-202 में हुए बीफ़ निर्यात के आँकड़ों पर नज़र डालने से साफ है कि भारतीय बीफ़ निर्यात का बड़ा हिस्सा अब उन देशों को जाता है, जो पहले भारतीय बीफ़ के बड़े आयातक नहीं थे। 'इंडियन' एक्सप्रेस' के अनुसार, वियतनाम को 7,569.01 करोड़र रुपए और हॉंगकॉंग को 857.26 करोड़ रुपए का बीफ़ निर्यात हुआ।
दूसरी ओर सऊदी अरब को 873.56 करोड़ रुपए, मलेशिया को 2,682.78 करोड़, मिस्र को 2,364.89 करोड़, इंडोनेशिया को 1,651.97 करोड़ रुपए और संयुक्त अरब अमीरात को 604.47 करोड़ रुपए का बीफ़ निर्यात किया गया।
किसे नुक़सान?
चीन, वियतनाम और हॉगकॉग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मांस हलाल है या नहीं, यानी वे हलाल मीट भी आसानी से ले सकते हैं। पर मुसलिम देश ऐसा माँस नहीं लेंगे जिसे हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं है।
भारत के मांस उद्योग की सबसे बड़ी कंपनी अल कबीर के मालिक सतीश सब्बरवाल हिन्दू हैं। लेकिन दूसरे बड़े मांस निर्यातक कंपनियों के मालिक मुसलिम हैं। इसी तरह क़त्लख़ाने और मांस प्रसंस्करण के क्षेत्र में हिन्दू-मुसलिम दोनों ही हैं। मांस प्रसंस्करण के क्षेत्र में मोटे तौर पर दलित समुदाय के लोग अधिक हैं।
सवाल यह है कि क्या एपेडा के इस फ़ैसले से मुसलमान ही, नहीं हिन्दुओं खास कर दलित समुदाय के लोगों को भी नुक़सान होगा?