ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सऐप जैसी कंपनियों में छंटनी के बाद अब अमेज़न ने भी बड़ी संख्या में कर्मचारियों को निकालने की घोषणा की है। अमेज़ॅन ने कहा है कि वह 18,000 से अधिक नौकरियों में कटौती करेगा। इसकी घोषणा करते हुए उसने अनिश्चित अर्थव्यवस्था का हवाला दिया है। यह वही कंपनी है जिसने कोरोना महामारी के दौरान भी किसी कर्मचारी को नहीं निकाला था, बल्कि उसने नयी भर्तियाँ की थीं।
अमेज़न ने इस मामले में एक लंबा चौड़ा बयान जारी किया है। उसने अपने बयान के लिंक को ट्वीट करते हुए लिखा है, 'हमारे सीईओ एंडी जेसी ने अभी-अभी अमेज़न के कर्मचारियों के लिए एक संदेश साझा किया है।'
सीईओ एंडी जेसी ने अपने कर्मचारियों को संबोधित बयान में कहा, 'नवंबर में हमने जो कटौती की थी और जिसे हम आज साझा कर रहे हैं, हम सिर्फ 18,000 से अधिक भूमिकाओं को ख़त्म करने की योजना बना रहे हैं।' कंपनी ने नवंबर में 10,000 छँटनी की घोषणा की थी।
बयान में कहा गया है कि कंपनी का नेतृत्व पूरी तरह से जानता था कि ये नौकरियाँ ख़त्म करने से लोगों के लिए मुश्किलें होंगी, और हम इन फैसलों को हल्के में नहीं लेते हैं। प्रभावित कर्मचारियों को 18 जनवरी से सूचित किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि यह अचानक घोषणा की जा रही है क्योंकि हमारे साथियों में से एक ने इस जानकारी को बाहर लीक कर दिया था। उन्होंने कहा है, 'हम आम तौर पर इन परिणामों के बारे में बातचीत करने तक इंतज़ार करते हैं जब तक कि हम उन लोगों से बात नहीं कर लेते जो सीधे प्रभावित होते हैं। चूँकि, क्योंकि हमारे एक साथी ने इस जानकारी को बाहर लीक कर दिया था, इसलिए हमने तय किया कि इस समाचार को पहले साझा करना बेहतर होगा ताकि आप जानकारी सीधे मुझसे सुन सकें। हम 18 जनवरी से प्रभावित कर्मचारियों को संदेश भेजने की सोच रहे हैं।'
बयान में जेसी ने कहा है कि अमेजन ने पहले भी अनिश्चित और मुश्किल अर्थव्यवस्थाओं का सामना किया है, और हम ऐसा करना जारी रखेंगे।
इससे पहले फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सऐप ने भी नवंबर महीने में छँटनी की घोषणा की थी। मेटा प्लेटफॉर्म्स के तहत आने वाले फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सएप में कर्मचारियों की छंटनी की यह योजना तब आई है जब मुनाफे के संदर्भ में उनका निराशाजनक प्रदर्शन रहा है और बिक्री में गिरावट आई है। माना जा रहा है कि इसी को देखते हुए कंपनी ने लागत में कटौती की रणनीति बनाई है और छंटनी इसी योजना का हिस्सा है।
सितंबर के अंत में मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कर्मचारियों को बताया था कि मेटा ने ख़र्च कम करने और टीमों को पुनर्गठित करने की योजना बनाई है।
बता दें कि कुछ समय पहले ही कंपनी ने नयी भर्ती पर रोक लगा दी थी। रिपोर्टों में कहा गया है कि मेटा की योजना है कि 2022 की तुलना में 2023 में कर्मचारियों की संख्या कम हो।
इससे पहले ट्विटर ने भी बड़े पैमाने पर अपने कर्मचारियों को बाहर निकाला है। रिपोर्ट तो यह है कि इसने 90 फ़ीसदी भारतीय कर्मचारियों को छुट्टी कर दी है और अब बस कुछ गिनती भर कर्मचारी रह गए हैं। कहा जा रहा है कि दुनिया भर में ट्विटर के क़रीब आधे कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है।
बड़ी-बड़ी कंपनियों में यह सब तब हो रहा है जब दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है और इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। यह असर मामूली नहीं है, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख देने वाला है। यह मंदी लाने वाला है। यह बात शोधकर्ता ही कह रहे हैं। सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च के अनुसार, दुनिया की अर्थव्यवस्था 2023 में मंदी की ओर बढ़ रही है।
महंगाई और बेरोजगारी 2022 की सबसे बड़ी चिंताएँ थीं जो वो विरासत में 2023 को सौंप गया है। और साथ में सौंप गया है एक ख़तरनाक, लंबी और तकलीफदेह मंदी की आशंका। दुनिया के ज्यादातर अर्थशास्त्री यही कह रहे हैं कि इस साल, खासकर आर्थिक मोर्चे पर, भारी उतार चढ़ाव देखने पड़ेंगे। 2008 की आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी करनेवाले अर्थशास्त्री नूरिएल रुबिनी तो कह चुके हैं कि दुनिया 1970 के दौर जैसी विकट आर्थिक स्थिति की ओर जा रही है।
डॉ. डूम यानी अनिष्ट के प्रतीक कहलानेवाले रुबिनी का कहना है कि विकास दर में गिरावट और महंगाई में तेज़ी से पैदा हुआ संकट बहुत गहरा है और इस बार जो मंदी आएगी वो बहुत लंबी और तकलीफदेह होगी। इसकी एक बड़ी वजह उनकी नज़र में यह है कि पश्चिमी दुनिया यानी अमीर देशों के केंद्रीय बैंक नोट छाप छापकर महंगाई को काबू करने में अपना पूरा शस्त्रागार झोंक चुके हैं और उनकी सरकारों पर कर्ज का बोझ भी इतना बढ़ चुका है कि अगर महंगाई अभी तक काबू में नहीं आई है तो आगे इसे रोकने के लिए उनके पास हथियार नहीं बचे हैं।