श्रम क़ानूनों को सरल और आधुनिक बनाने वाले श्रम सुधार क्या जल्द ही लागू हो जाएँगे? केंद्र सरकार ने मौजूदा श्रम कानूनों को चार कोड यानी संहिताओं से बदलने का प्रस्ताव रखा है। श्रम मंत्रालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 मार्च, 2025 तक चार श्रम कोडों के नियम का मसौदा तैयार करना है। तो सवाल है कि क्या राज्य ऐसा कर पाएँगे? और क्या पूरे देश में इसे लागू करना इतना आसान है?
श्रम मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में क्या कहा गया है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर श्रम सुधार क्या है और इसमें क्या अड़चनें आ सकती हैं। दरअसल, श्रम कानून संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं। इसलिए, केंद्र और राज्य दोनों को नियम बनाने का अधिकार है। लेकिन राज्य और केंद्रीय कानूनों के बीच टकराव की स्थिति में, केंद्रीय कानून को आम तौर पर प्राथमिकता दी जाती है, जब तक कि राज्य के कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी न मिली हो।
श्रम कानून दशकों पहले बने थे और तब से दुनिया और बाज़ार में काफी बदलाव आए हैं। बदलते हालात के मद्देनज़र श्रम कानूनों में भी सुधार की ज़रूरत बताई जाती रही है। इसको आसान बनाने के लिये और कार्य-दशाओं में सुधार के लिये सरकार द्वारा कई विधायी और प्रशासनिक पहलें की गई हैं।
कम-से-कम पिछले 17 वर्षों से विचाराधीन 44 केंद्रीय कानूनों को एक कर श्रम क़ानूनों को 4 कोडों में सरल बनाने का प्रयास किया गया है। इसे अभी लागू किया जाना है। ये कोड हैं-
- वेतन संहिता, 2019
- औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020
इनको लागू करने में देरी हो रही है क्योंकि राज्यों द्वारा इन संहिताओं के तहत अपने नियमों को अंतिम रूप दिया जाना अभी बाक़ी है।
श्रम सुधारों में क्या ख़ास
श्रम सुधारों में सबसे बड़ी चुनौती रोजगार वृद्धि को आसान बनाना है और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करना है। मुख्य बहसें छोटी फर्मों के कवरेज, छँटनी के लिए पूर्व अनुमति के लिए सीमा तय करने, श्रम प्रवर्तन को मजबूत करने, श्रम के लचीले रूपों की अनुमति देने और सामूहिक सौदेबाजी को बढ़ावा देने से संबंधित हैं। इसके अलावा, वक़्त बदलने के साथ ही ऐसे प्रावधान भी किए जाने चाहिए जो गिग वर्कर्स जैसे श्रम के उभरते रूपों की ज़रूरतों को पूरा कर सकें।
कहा जा रहा है कि ये 4 कोड यानी संहिताएँ उद्योग और रोज़गार को एक बड़ा प्रोत्साहन देंगी। ये संहिताएँ विवादों का त्वरित निपटान कर सकेंगी। कई अर्थशास्त्रियों और उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि इन सुधारों से निवेश को बढ़ावा मिलेगा और कारोबार के लिए सुगम स्थिति बनेगी। उनका अनुमान है कि इन सुधारों से आंतरिक अंतर्विरोधों में कमी आएगी, लचीलेपन में वृद्धि होगी और सुरक्षा एवं कार्य स्थिति निमयों का आधुनिकीकरण होगा।
यह भी कहा जा रहा है कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं को रात्रिकालीन कार्य कर सकने की अनुमति दी जानी चाहिये जहाँ नियोक्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके लिये पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था हो और इस संबंध में महिला कर्मियों की पूर्व-सहमति ली जाए।
श्रम मंत्रालय ने क्या कहा?
बहरहाल, श्रम मंत्रालय द्वारा शनिवार को जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा 31 मार्च, 2025 तक चार श्रम संहिताओं के तहत मसौदा नियमों को पूरा कर लिए जाने की उम्मीद है। अब तक, पाँच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़कर अन्य सभी ने नियमों का पूर्व-प्रकाशन कर दिया है। इससे अगले साल तक चार संहिताओं के लागू होने के लिए मंच तैयार हो गया है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि श्रम मंत्रालय लगातार राज्यों में चार संहिताओं के तहत नियमों के सामंजस्य के लिए काम कर रहा है। इस साल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नियम बनाने में सुविधा देने के लिए अगस्त और अक्टूबर के बीच छह बैठकें की गईं।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि संहिताओं के माध्यम से कई छोटे अपराधों को अपराध से मुक्त किया गया, जबकि कौशल विकास और विवाद समाधान को उचित प्राथमिकता दी गई है। इस बीच, मंत्रालय गिग वर्कर्स और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा कवरेज के लिए एक रूपरेखा विकसित करने की दिशा में भी काम कर रहा है। इसके लिए उनसे जुड़े संगठनों, हितधारकों और राज्य सरकारों के साथ राय-मशविरा लिया जा रहा है।
इसके अलावा इनसे जुड़े विभिन्न फ़ैक्टरों का व्यापक रूप से आकलन करने के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के साथ एक अध्ययन किया जा रहा है।