चुनाव आयोग मतदाता पहचान कार्ड नंबर विवाद में फँस गया है। एक से अधिक लोगों की वोटर आईडी कार्ड यानी ईपीआईसी संख्या एक ही होने के आरोपों पर चुनाव आयोग की सफ़ाई के बाद और गंभीर सवाल उठने लगे हैं। पार्टी ने दावा किया है कि चुनाव आयोग मतदाता सूची में धोखाधड़ी को छुपाने की कोशिश कर रहा है। टीएमसी ने चुनाव आयोग द्वारा दी गई सफ़ाई को चुनाव आयोग की ही गाइडलाइंस के आधार पर 'फ्रॉड' बता दिया है।
टीएमसी ने मंगलवार को किस तरह के आरोप लगाए हैं, यह जानने से पहले यह जान लें कि यह विवाद क्या है। ममता बनर्जी ने 27 फ़रवरी को आरोप लगाया था कि कई मतदाताओं के पास एक ही ईपीआईसी संख्या है। इस पर चुनाव आयोग ने एक बयान जारी कर कहा कि ईपीआईसी संख्या में दोहराव का मतलब डुप्लिकेट या नकली मतदाता नहीं है। इसने कहा था कि 'मैनुअल त्रुटि' से दो राज्यों के मतदाताओं की ईपीआईसी संख्या एक हो गई। इसके बाद ही टीएमसी ने सोमवार को चेतावनी दी थी कि यदि चुनाव आयोग 24 घंटे में गड़बड़ी को मानकर नहीं सुधारता है तो टीएमसी ऐसी ही गड़बड़ियों के और दस्तावेज मंगलवार को जारी करेगी। बहरहाल, टीएमसी ने मंगलवार को कहा है कि 'चुनाव आयोग की झूठी सफ़ाई' उनके अपने नियमों के ख़िलाफ़ है।
इस मामले में टीएमसी के नेता साकेत गोखले ने कहा है कि चुनाव आयोग ने जो सफ़ाई दी है वो उनके अपने नियमों और दिशानिर्देशों से मेल नहीं खाती। उन्होंने वोटर आईडी कार्ड के रूप में जाने जाने वाले EPIC बनाए जाने की पूरी प्रक्रिया को समझाते हुए चुनाव आयोग की दलीलों को खारिज कर दिया। गोखले ने कहा है कि ईपीआईसी जारी करने की प्रक्रिया चुनाव आयोग की 'हैंडबुक फॉर इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स' में लिखी है।
साकेत गोखले ने क्या कहा है?
साकेत गोखले इसी के आधार पर चुनाव आयोग की 'सफ़ाई' में तीन झूठ बेनकाब करने का दावा किया है-
चुनाव आयोग का दावा 1: उनका कहना है कि एक ही ईपीआईसी नंबर कई लोगों को इसलिए दे दिया गया क्योंकि कुछ राज्यों ने एक ही "अल्फान्यूमेरिक सीरीज" का इस्तेमाल किया।
सच: ईपीआईसी नंबर में 3 अक्षर और 7 नंबर होते हैं। हैंडबुक में साफ़ लिखा है कि ये 3 अक्षर फंक्शनल यूनिक सीरियल नंबर के नाम से जाने जाते हैं। ये 3 अक्षर हर विधानसभा क्षेत्र के लिए अलग होते हैं। मतलब, एक ही राज्य में भी दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के वोटर्स के ईपीआईसी के पहले 3 अक्षर एक जैसे नहीं हो सकते। तो फिर पश्चिम बंगाल के वोटर्स के ईपीआईसी नंबर हरियाणा, गुजरात और दूसरे राज्यों के लोगों को कैसे मिल गए?
चुनाव आयोग का दावा 2: उनका कहना है कि अगर दो लोगों के पास एक ही ईपीआईसी नंबर है, तो भी वे अपने-अपने क्षेत्र में वोट डाल सकते हैं जहां उनका नाम दर्ज है।
सच : फोटो वाली मतदाता सूची में वोटर की तस्वीर ईपीआईसी नंबर से जुड़ी होती है। अगर बंगाल का कोई वोटर वोट डालने जाए और उसका ईपीआईसी नंबर किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति को भी दिया गया हो तो मतदाता सूची में उसकी तस्वीर अलग दिखेगी। इससे फोटो न मिलने की वजह से उसे वोट डालने से रोका जा सकता है। एक ही ईपीआईसी नंबर अलग-अलग राज्यों में देकर उन वोटर्स को वोटिंग से रोका जा सकता है जो बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट दे सकते हैं।
चुनाव आयोग का दावा 3: उनका कहना है कि एक ही ईपीआईसी नंबर कई लोगों को ग़लती से दे दिया गया और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
सच: चुनाव आयोग के नियम कहते हैं कि ईपीआईसी नंबर देने के लिए जो सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है, वो हर इस्तेमाल और खाली नंबर का हिसाब रखता है ताकि एक ही नंबर दो लोगों को न मिले। ईपीआईसी नंबर वोटर की जानकारी और तस्वीर से जुड़ा होता है और इसे स्थायी यूनिक आईडी माना जाता है। तो ये कैसे मुमकिन है कि 'ग़लती' से एक ही ईपीआईसी नंबर अलग-अलग राज्यों के लोगों को दे दिया जाए? और अगर ईपीआईसी नंबर डुप्लिकेट है, तो वोट डालने से रोका जा सकता है। ये साफ़ तौर पर बीजेपी के पक्ष में मतदाताओं को रोकने की साज़िश लगती है, जिसमें गैर-बीजेपी इलाक़ों के वोटर्स को निशाना बनाया जा रहा है।
क्या सवाल उठते हैं?
साकेत गोखले ने आरोप लगाया है, 'ये सब चुनाव आयोग की कार्रवाई और विश्वसनीयता पर बड़े सवाल खड़े करता है। खासकर अब, जब चुनाव आयुक्तों को मोदी सरकार नियुक्त करती है। 3 सदस्यों वाली कमेटी में 2 लोग- प्रधानमंत्री और अमित शाह- बहुमत से फ़ैसला लेते हैं। अगर चुनाव आयोग बीजेपी के लिए काम कर रहा है, तो निष्पक्ष चुनाव की कोई उम्मीद नहीं है।'
टीएमसी नेता ने कहा है कि चुनाव आयोग को सच बताना चाहिए कि कितने ईपीआईसी कार्ड अभी सक्रिय हैं और उनमें से कितनों के नंबर एक जैसे हैं। गोखले ने कहा कि उन्हें ये दिखावा बंद करके डुप्लिकेट वोटर आईडी घोटाले पर साफ़ जवाब देना चाहिए।
बता दें कि टीएमसी नेताओं ने दावा किया है कि उनके पास ऐसे कई दस्तावेज हैं, जो दिखाते हैं कि एक ही ईपीआईसी नंबर का इस्तेमाल एक ही निर्वाचन क्षेत्र और अलग-अलग राज्यों में किया जा रहा है। पार्टी की उपनेता सागरिका घोष ने कहा, 'हमारे पास सबूत हैं कि गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के लोगों को बंगाल की मतदाता सूची में शामिल किया गया है। यह एक सुनियोजित साज़िश है।'
बीजेपी ने टीएमसी के आरोपों को बेबुनियाद और हताशा का नतीजा बताया है। बंगाल भाजपा के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा, 'टीएमसी खुद फर्जी मतदाताओं को शामिल करने की विशेषज्ञ है। अब जब उनकी साजिश का पर्दाफाश हो रहा है, तो वे चुनाव आयोग पर उंगली उठा रही हैं। जनता सब समझती है।'
टीएमसी के आईटी और सोशल मीडिया के राज्य महासचिव निलांजन दास ने एक ही ईपीआईसी के दो मतदाताओं से जुड़े एक मामले को पोस्ट किया है।
आगे क्या?
यह विवाद पश्चिम बंगाल में सियासी माहौल को और गर्म करने वाला है। टीएमसी ने घोषणा की है कि वे इस मुद्दे को कानूनी और राजनीतिक दोनों स्तरों पर उठाएंगे। दूसरी ओर, चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ रहा है कि वह अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाए। जानकारों का मानना है कि अगर मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप सही साबित हुए तो यह देश के चुनावी लोकतंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर सकता है।
फिलहाल, सभी की नजरें चुनाव आयोग के अगले कदम पर टिकी हैं। क्या यह मामला महज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप बनकर रह जाएगा या सचमुच इसमें कोई बड़ी साजिश छुपी है? अब सवाल ये भी है कि क्या चुनाव आयोग जवाब देगा या ये विवाद और गहराएगा?
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)